पुतिन ने अपनी ‘पसंद’ के एक लंबे युद्ध के लिए अपनी सेना की तत्परता को आंकने में गलती की। अब रूस एक महंगे और कुछ हद तक ‘अपमानजनक’ लड़ाई में फंस गया है जिसमें उसका दुश्मन भले सैन्य रूप से कमजोर हो लेकिन उसके इरादे बेहद दृढ़ हैं। एक ओर यूक्रेनी अपनी मर्जी से अपने देश के लिए लड़ने और बलिदान के लिए तैयार हैं। दूसरी ओर रूसी सैनिक अपनी इकाइयों को छोड़कर भाग रहे हैं। पुतिन के आंशिक सैनिकों की लामबंदी के आदेश के बाद भी बड़े पैमाने पर रूसी देश छोड़कर भाग रहे हैं।
कीव को लेकर गलत साबित हुआ अनुमान
यूक्रेन की ताकत को लेकर गलतफहमी रूसी राष्ट्रपति की दूसरी सबसे बड़ी गलती थी। रूस को उम्मीद थी कि कीव कुछ ही दिनों में घुटने टेक देगा। उन्होंने यूक्रेन के कब्जे के प्रतिरोध और स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को कम करके आंका। पुतिन का तीसरा सबसे गलत अनुमान नाटो को लेकर था। उन्हें लग रहा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण ने नाटो को कमजोर कर दिया है। लिहाजा पूर्व की घटनाओं पर उसकी प्रतिक्रिया सुस्त होगी। उनका मानना था कि रूसी तेल और गैस पर यूरोप की निर्भरता यूक्रेन पर मॉस्को के साथ संबंधों को तोड़ना मुश्किल कर देगी, लेकिन वह गलत थे।
नहीं लगा पाए अमेरिका की ताकत का अंदाजा
पुतिन अमेरिका की ताकत का अंदाजा लगाने में भी गलत साबित हुए। वह समझ रहे थे कि अफगान और इराक में फेल होने के चलते अमेरिका कमजोर स्थिति में है और चीन की बढ़ती ताकत के अलावा तमाम आर्थिक और घरेलू चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक बार फिर पुतिन गलत साबित हुए। यूक्रेन युद्ध को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मॉस्को के खिलाफ पूरे पश्चिम को एकजुट करने और रूसी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।
पश्चिम पर थोपी अपनी गलती
रिपोर्ट के अनुसार लड़ाई में कई मोर्चों पर असफल होने के बाद भी अपने फैसले को सही ठहराना पुतिन की सबसे बड़ी गलती है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं या अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को खारिज करते हुए पुतिन ने युद्ध का एकतरफा फैसला लिया। रूसी राष्ट्रपति का सबसे बड़ा तर्क था कि पश्चिम ने उनके सामने हमला करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है। जबकि पश्चिम, जो पुतिन को ‘तानाशाह’ कहता है, का कहना है कि उन्होंने जानबूझकर युद्ध को चुना।