हिमाचल प्रदेश में स्थित चंबा जिले की विश्व विख्यात मणिमहेश यात्रा का आज शाही स्नान है. कोरोनाकाल के चलते 2 साल के अंतराल के बाद इस बार मणिमहेश यात्रा में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ देखने को मिली. हलांकि इस बार मौसम की खराबी की वजह से श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसके बावजूद श्रद्धालुओं ने बड़े ही भक्ति भाव से इस मणिमहेश यात्रा में भाग लिया.
जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन के बाद राधा अष्टमी को शाही स्नान होता है. भाद्रपद की शुक्ल सप्तमी को शिव के गुर यानी चेले डल झील में प्रवेश कर इसे तोड़ते हैं. कार्तिक स्वामी के चेले की अगुवाई में सेंचुई के शिव चेलों ने शुक्रवार को मणिमहेश डल झील को पार किया, इसके बाद हजारों श्रद्धालुओं ने डल झील में आस्था की डुबकी लगाई. शुक्रवार दोपहर 2:00 बजे डल झील की परिक्रमा करने के बाद शिव चेलों ने डल झील को जब तोड़ा उस समय यह नजारा देखते ही बनता था.
जिस समय शिव चेलों ने डल झील में प्रवेश किया उस समय कई श्रद्धालुओं ने उन्हें कंधों पर उठा लिया और डल झील को पार करवाया. उस समय पूरा कैलाश पर्वत हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा. इस बार इस डल झील तोड़ने की तिथि शुक्रवार दोपहर 1:52 से शुरू होकर आज 12: 29 मिनट तक रहेगी. उसके बाद राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त होगा. अलग-अलग देव स्थानों से आई पवित्र छड़ियों को डल झील में स्नान करवाया जाएगा. उसके पश्चात लोग पवित्र डल झील में स्नान कर पाएंगे. शनिवार दोपहर 12:29 को शाही स्नान शुरू होगा और कल दोपहर 10:41 तक लोग पवित्र डल झील में स्नान कर पाएंगे.
मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी का मुहूर्त शुरू होते ही डल झील के पानी का जलस्तर बढ़ने से वहां एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है. राधा अष्टमी के दिन पवित्र कैलाश पर रात्रि के समय और ब्रह्म मुहूर्त में अलौकिक मणि के भी दर्शन होते हैं. लोगों ने बड़े ही श्रद्धा भाव से डल झील में स्नान कर कैलाश पर्वत के दर्शन किए.
इस पवित्र मणिमहेश यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए भरमौर के मुख्य पुजारी ने बताया कि इन्हीं पर्वतों की वजह से गौरा माता का नाम पार्वती पड़ा. उन्होंने कहा कि पार्वती माता ने गौरी कुंड में तपस्या कर भगवान शंकर को प्राप्त किया था. इस पर खुश होकर भगवान शंकर ने उन्हें वरदान दिया था. उसके बाद कृष्ण जन्माष्टमी को यहां पर यह स्नान की परंपरा रही है.