Tiger rescue: रेस्क्यू टीम के सामने समस्या यह थी कि बाघ रास्ता भटककर नेपाल की सीमा में दाखिल हो सकता था। बाघ को बचाने के लिए टीम ने आखिर में पानी का बहाव कम कराया।
नेपाल के पहाड़ों पर भारी वर्षा के कारण कतर्नियाघाट के समीप बह रही गेरूआ में पानी काफी बढ़ गया है। यह नदी नेपाली नदी कौड़ियाली से जुड़ी हुई है इसलिए इसका बहाव भी काफी तेज़ है इसलिए बाघ का बस नदी में नहीं चल पा रहा था। वह तैर कर नदी पार करने के चक्कर में नदी में फंस गया।
नाव से शेर का रास्ता बदलने की कोशिश
प्रभागीय वनाधिकारी कतर्नियाघाट आकाश बधावन ने बताया कि उन्हें 11 बजे सूचना मिली कि एक टाइगर नदी में फंसा हुआ है तो उन्होंने फौरन STPF की टीम के मुखिया अब्दुल सलाम को फौरन ही मौके पर भेजा। उन्होंने ड्रोन से टाइगर की स्थित पता की और नाव लगा कर टाइगर को रेत के मैदान की तरफ ले जाने की कोशिश की गई लेकिन नदी में पानी ज़्यादा और बहाव तेज़ होने के कारण कामयाबी नहीं मिल पा रही थी।
बैराज के गेट बंद कराए
तब कतर्नियाघाट के रेंजर राम कुमार ने सिंचाई विभाग से सम्पर्क कर चौधरी चरण सिंह बैराज के तावे बन्द करा दिए तब नदी का पानी और करन्ट कम हुआ तब कुछ सफलता मिल सकी।
टाइगर के इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन को खुद प्रभागीय वनाधिकारी कतर्नियाघाट आकाश बधावन लीड कर रहे थे और उन्हें भी कर्मचारियों को निर्देश देने के लिए घुटने-घुटने पानी में जाना पड़ा। कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग 550 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें लगभग इस वक्त 30 टाइगर यहाँ निवास करते हैं, वन विभाग एक-एक टाइगर की मॉनिटरिंग भी करता है।
इस टाइगर के रेस्क्यू ऑपरेशन में विभाग को इतनी जद्दोजहद इसलिए भी करनी पड़ी क्योंकि बैराज के पास जिस जगह पर यह टाइगर फंसा था वहां पर थोड़ी सी भी चूक हो जाती तो या तो टाइगर नेपाल चला जाता या लखीमपुर की ओर निकल जाता लेकिन रेस्क्यू के बाद वन विभाग ने चैन की सांस ली क्योंकि बाघ को कतर्नियाघाट के कोर ज़ोन में ही पहुँचा दिया गया।