Good News Dehradun: सचिन कोठारी दिल्ली में कॉरपोरेट कंपनी में काम कर रहे थे। चार साल में उन्होंने चार कंपनियां बदलीं, उनकी सैलरी तो बढ़ी लेकिन हालात बद से बदतर होते गए। काम के बढ़ते घंटे, दबाव ने उनकी सेहत पर बुरा असर दिखाना शुरू कर दिया था। ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। आज वह बहुत खुश हैं।
देहरादून: देहरादून के युवा सचिन कोठारी (sachin kothari) की पूरी जिंदगी उनके लैपटॉप के इर्दगिर्द घूमती थी। साल 2008 से 2011 के बीच उन्होंने दिल्ली में चार नौकरियां बदलीं, सैलरी बेहतर हुई लेकिन हालात नहीं बदले। कॉरपोरेट जॉब का तनाव उनकी सेहत को घुन की तरह खोखला कर रहा था। उनके आंखों के सामने लैपटॉप का स्क्रीन होता और मन पहाड़ों की हरियाली में। लेकिन एक दिन उन्होंने ठान लिया और नौकरी से इस्तीफा देकर वापस घर आ गए। लेकिन उनका फैसला सही साबित हुआ और आज वह अपने मन का काम कर रहे हैं और उतना कमा रहे हैं जितना नौकरी में संभव नहीं था।
असल में सचिन के दिमाग में देहरादून में नर्सरी खोलने का आइडिया था जो उन्हें अपने रिश्तेदार को देखकर आया था। सचिन ने जॉब में रहने के दौरान ही नर्सरी खोलने के विकल्प पर अच्छी तरह से रिसर्च कर ली थी। उन्होंने अपने एक दोस्त की मदद ली जिसके पास जमीन थी। इसके बाद दोनों ने नर्सरी में 6 लाख रुपयों को निवेश करने का मन बनाया।
सचिन के पास 1.5 लाख रुपयों की सेविंग थी और इतने ही उन्होंने अपने पिता से उधार ले लिए। उनके दोस्त ने अपनी तरफ से 3 लाख लगा दिए। इस तरह साल 2012 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने नर्सरी की शुरुआत की। इसका नाम रखा ‘देवभूमि नर्सरी’। उनकी शुरुआत अच्छी नहीं रही। बहुत कोशिशों के बाद भी पौधों में कीड़े लग गए और उनमें से अधिकांश मर गए।
इससे उनके बिजनेस में पार्टनर बने उनके दोस्त की हिम्मत टूट गई और उसने पीछे हटने का फैसला ले लिया। अब सचिन अकेले रह गए। उनके परिवार ने उनसे कहा कि वह भी अब अपने लिए कोई अच्छी नौकरी खोज लें लेकिन सचिन इसके लिए राजी नहीं हुए।
अगले तीन साल, यानी 2015 तक वह नर्सरी को फिर से शुरू करने में जुटे रहे। उन्होंने दूसरे जानकारों से बागवानी सीखी, यूट्यूब से नर्सरी की देखभाल की बारीकियां सीखीं। अपने रिश्तेदार से मार्गदर्शन लिया। इसके बाद उन्होंने शहर से 15 किलोमीटर दूर जमीन किराए पर ली और नर्सरी की शुरुआत की। हालांकि, आज उनके पास खुद की 1500 वर्ग फीट जमीन है।
धीरे-धीरे उनकी नर्सरी चल निकली। उसमें विभिन्न फूलों की करीब 20 वैराइटी हैं। इसके अलावा उसमें ब्रॉकली, टमाटर, बॉक चॉय, बैंगन और फूलगोभी की पौध भी लगाते हैं। इनकी बिक्री से उन्हें हर साल लगभग 30 लाख रुपयों की आमदनी होती है। उनके पौधों की सहारनपुर, गाजियाबाद, चंडीगढ़, दिल्ली, जालंधर, लुधियाना और अमृतसर तक डिमांड है। आज वह खुश हैं कि उनके पास मन का काम है, पैसा है, सेहत है और दिल का सुकून है। उन्होंने नौकरी छोड़ने का जो फैसला लिया था आज भी उन्हें वह सही फैसला लगता है।