तिरुपति की रसोई: यहां हर दिन बनते हैं 3 लाख लड्डू और हज़ारों श्रद्धालुओं को परोसा जाता है बढ़िया खाना

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आंध्र प्रदेश राज्य की तिरुमाला पहाड़ियों पर मौजूद तिरुपति बालाजी मंदिर यूं तो अपने धार्मिक महत्व के लिए मशहूर हैं. मगर कुछ और भी है, जो इसे दूसरों से अलग और ख़ास बनाता है.

वो है यहां का किचन, जो दुनिया के सबसे बड़े किचन में से एक है. एक तरफ़ जहां ये किचन अन्नदानम् के रूप में हर रोज़ 60 से 70 हज़ार तीर्थयात्रियों को खाना परोसता है. वहीं, प्रसादम के रूप में यहां हर रोज़ करीब 3 से 4 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं. कहते हैं ये लड्डू इतने स्पेशल होते हैं कि आम से लेकर ख़ास सब इनका स्वाद लेना चाहते हैं. ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि आखिर वो क्या है, जो इनको ख़ास बनाता है.

ख़ुफ़िया रसोई ‘पोटू’ में तैयार किए जाते हैं तिरुपति के लड्डू

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लड्डू मुख्यत: चने के आटे, बेसन, चीनी, घी, किशमिश, मक्खन, काजू और इलायची का इस्तेमाल कर मंदिर की खुफ़ाई रसोई ‘पोटू’ में तैयार किया जाता था. 2006 में इसकी शुरुआती तैयारी के लिए मंदिर के बाहर एक ख़ास जगह सुनिश्चित की गई और वहां एक आधुनिक किचन तैयार किया गया.

सौर ऊर्जा पर आधारित इस किचन में सबसे पहले गर्म घी में चने के आटे से बूंदी तैयार की जाती है. फिर इस बूंदी को एक स्वचालित ट्रे पर बड़े-बड़े बॉक्स में रखा जाता है, जोकि अपने आप उस जगह पर पहुंच जाते हैं, जहां इनको अंतिम स्वरूप दिया जाता है.

लड्डुओं का लाजवाब स्वाद शोध का विषय

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यानी की मंदिर की रसोई पोटू के अंदर. वहां करीब 200 की संख्या में मौजूद ब्राह्मण पुजारी इन्हें अपने हाथ से लड्डू का आकार देते हैं. पुजारियों के हाथ से निकलने के बाद लड्डू पहुंचते हैं क्वॉलिटी चेक टीम के पास. जहां इनकी गुणवत्ता और शेल्फ़ लाइफ़ (लड्डू कितने समय तक चलेंगे) को चेक किया जाता है.

इसके बाद ही इन्हें प्रसादम के रूप में लोगों को दिया जाता है. प्रसाद के रूप में इसे पाने के लिए लोगों को एक सुरक्षा दायरे से होकर गुज़रना पड़ता है. कई लोग आम से दिखने वाले इस लड्डू को घर में बनाने की कोशिश कर चुके हैं. मगर अभी तक किसी को सफ़लता नहीं मिली.

यही कारण है कि यहां के लड्डुओं को GI टैग मिल चुका है. ये सेलेब्रिटी स्टेटस के रूप में भी देखे जाता है. इसका लाजवाब स्वाद लोगों के लिए शोध का विषय बना हुआ है.

रोज 60-70 हज़ार लोगों का खाना तैयार होता है

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तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रतिदिन करीब 60-70 हज़ार लोग भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए आते हैं. कई ख़ास अवसर, जैसे-ब्रह्मोत्सवम पर यह संख्या 1 लाख के ऊपर पहुंच जाती हैं. ऐसे में मंदिर की रसोई उनके लिए खाने का इंतज़ाम भी करती है.

लड्डू की ही तरह यहां तैयार किया गया खाना पहले भगवान को भोग के लिए भेजा जाता है. खाना ज़्यादातर साउथ इंडियन और सात्विक होता है, जिसे श्रद्धालु भगवान को आशीर्वाद समझ कर खाते हैं. किसी भी धर्म के व्यक्ति को इस प्रसाद को गृहण करने की अनुमति है. इसके लिए 4 ख़ास हॉल तैयार किए हैं. प्रत्येक हॉल में 1000 लोग एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं.

खाना बनाने के लिए किचन के अंदर बड़े-बड़े बर्तनों का उपयोग किया जाता है, जिसके अंदर एक हज़ार लीटर तक कढ़ी रखी जा सकती है. रसोई के अंदर करीब 1100 ख़ास लोग नियुक्त होते हैं, जिनके कंधे पर खाने को समय से उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी होती है.

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ये थी तिरुमला तिरुपति मंदिर के किचन से जुड़े कुछ पहलू. अगर आप भी इससी जुड़ी कुछ जानकारी रखते हैं, तो नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स में हमारे साथ शेयर करें.