जंगल में छोटे-बड़े जानवरों से बचने के लिए ये मकड़ी करती हैं चींटिंयों की मिमिक्री, जाल नहीं बुनती, बनाती हैं छोटा सा घोंसला

New species of spider: झारखंड के जंगल कई अदभुत रहस्यों से भरे हुए हैं। हजारीबाग वन्यजीव अभयारण्य में एक ऐसी मकड़ी मिली है, जो चींटियों की तरह मिमिक्री करती है। दो महीने के अपने संपूर्ण जीवनकाल में ये आठ पर केंचुल बदलती हैं। लेकिन छठी बार केंचुल बदलने पर यह पूरी तरह से चींटियों की तरह ही नजर आने लगती हैं।

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हजारीबाग : झारखंड के जंगल कई रहस्यों से भरे पड़े हैं। झारखंड का छोटनागपुर पठार वैज्ञानिकों के लिए किसी खजाने से कम नहीं है। हजारीबाग का पठार जैवविविधता से परिपूर्ण है। इसी संदर्भ में विनोबा भावे यूनिवर्सिटी हजारीबाग के जंतु शास्त्र विभाग से पीएचडी कर रहे राहुल कुमार ने मकड़ी की एक नई प्रजाति की खोज की है। वे मगध विश्वविद्यालय के शिवदेनी साव कॉलेज में सहायक प्राचार्य के रूप में पदस्थापित हैं।
हजारीबाग के जंगलों से हुबहू चींटी की तरह दिखने वाली मकड़ी की हुई खोज
जंतु वैज्ञानिक राहुल कुमार ने हजारीबाग वन्यजीव अभयारण्य से एक ऐसी मकड़ी की खोज की है , जो हुबहू काली चींटी की तरह दिखती है। उनका कहना है की इस मकड़ी की विश्व में सिर्फ पांच ही प्रजातियां पाई जाती हैं। उनमें से भारत में सिर्फ एक ही प्रजाति पाई जाती है, जिसका नाम ‘मीरमाप्लाटा पलाटेलियोडेस’ है। सामान्यतः यह मकड़ी लाल रंग की होती है लेकिन राहुल कुमार ने इस मकड़ी की एक काली उपप्रजाति की खोज की है, जो कैंपिनोटस कमप्रेसस प्रजाति की काली चींटियों की मिमिक्री करती हैं। मिमिक्री अर्थात वो अपने स्वभाव और स्वरूप दोनों में चींटियों की नकल करती हैं।

जीवनकाल में आठ बार बदलती है केंचुल
जंतु वैज्ञानिक राहुल कुमार ने इस मकड़ी के जीवन चक्र का विस्तार से अध्ययन किया है। यह मकड़ी अपने लगभग दो महीने के जीवन काल में आठ बार केंचुल बदलती हैं। छठी बार केंचुल परिवर्तन करने के बाद वो चिटियों जैसा रंग रूप प्राप्त कर लेती हैं।

मादा और नर चींटियों में अंतर
मादा और नर चीटिंयों कई अंतर होते है। मादा मकड़ी हुबहू चींटी जैसी दिखती है। जबकि पुरुष मकड़ी इस तरह नजर आती है, जैसे एक चींटी किसी दूसरी मरी हुई चींटी को उठाकर ले जाती नजर आती है। चींटियों में भी यह खासियत होती है अपने किसी साथी की मौत हो जाने के बाद उसे उठाकर अपने साथ ले जाती हैं।

चींटियों की ही कॉलोनी के निकट घोंसला बनाती हैं ये मकड़ियां
चींटियां सामाजिक प्राणी की तरह कॉलोनी में रहती है। उसी तरह से ये मकड़ियां भी चींटियों की कॉलोनी के निकट ही घोसला बना लेती हैं। जैसे-जैसें इनका केंचुल बदलता जाता हैं, ये पूरी तरह से चींटियों की तरह नजर आने लगती है।

चींटियों सा शक्ल देखकर कोई हमला नहीं करता
चींटियों की भीड़ में अपनी शक्ल वाली मकड़ी को देखकर सभी भ्रम में रहती है। सभी चींटियां उन्हें अपने समुदाय की सदस्य समझती है, इस कारण उन पर कभी हमला नहीं करती है।

जाल नहीं बुनती, बनती हैं छोटा घोंसला
ये मकड़ियां जाल नहीं बुनती, बल्कि छोटा-छोटा घोंसला बनाकर निवास करती है। इस प्रजाति की मकड़ियों की खोज करने वाले जंतु वैज्ञानिक राहुल कुमार बताते है कि ये मकड़ियां अपने रेसे से अन्य मकड़ियों की तरह से जाल नहीं बुनती है, बल्कि रेसे से चींटियों की कॉलोनी की तरह ही छोटा-छोटा घोंसला बनाती हैं।
अन्य मकड़ियों से भिन्न 8 आंख होती है
इस प्रजाति की मकड़ियों में 8 आंखें होती हैं। जबकि मकड़ियों की अलग-अलग प्रजातियों में 2 से 6 आंखें तक होती हैं। परंतु हजारीबाग के वन्य अभयारण्य में निवास करने वाली इन मकड़ियों में 8 आंखें होती हैं।

चींटियों की तरह दिखने के लिए 2 पैर को छिपाकर चलती हैं
चीटिंयों के साथ रहने वाली इन मकड़ियों में 8 टांगें होती हैं। जबकि चीटिंयों की 6 टांगें होती हैं। ऐसे में चीटियों की तरह दिखने के लिए ये अपने दो पैर को छिपाकर चलती हैं। ताकि चिंटियां भी भ्रम में रहे और वे आराम से उनके साथ चलती रहीं।

20 अंडे देती है, सितंबर में संख्या बढ़ जाती है
कैंपिनोटस कमप्रेसस प्रजाति की चींटियां प्रजनन के वक्त 20 अंडे देती है। इस अंडे की विशेषता यह होती है कि माइक्रोस्कोप से देखने पर अंडे में अलग-अलग खाने में भी नजर आते है। सामान्य तौर पर इनका प्रजनन काल सालों भर रहता हैं, लेकिन सितंबर महीने में इनकी संख्या तेजी बढ़ती है।
चीटिंयों से अलग होकर शिकार खोजती है
ये मकड़ियां अधिकांश समय चींटयों के साथ ही समय व्यतीत करती हैं,लेकिन अपने भोजन की तलाश के लिए कुछ समय के लिए इनसे अलग हो जाती है। शिकार करने के बाद ये फिर से चीटिंयों की झुंड में वापस आ जाती हैं,परंतु कभी भी चींटियों को अपना शिकार नहीं बनाती है।

शेर जैसे जानवर भी चींटियों से नहीं लेते पंगा
शेर जैसे बड़े-बड़े जानवर चींटियों से पंगा नहीं लेते। चींटियों के समूह से बड़े-बड़े जानवर डरते हैं। मकड़ियों की चींटियों की मिमिक्री उन्हें दूसरे जानवरों का शिकार होने से बचाती हैं। यही नहीं यह मकड़ी सातवीं और आठवीं बार केचुली बदल कर अलग अलग आकर वाले काली चींटियों की तरह प्रतीत होने लगते हैं। जिसके कारण चींटियों को भ्रम होता है कि ये मकड़ियां उन्ही में से एक हैं और वो उनको कोई क्षति नहीं पहुंचती।

नीदरलैंड की पत्रिका में शोध प्रकाशित
सच में प्रकृति कितनी अदभुत है। यह अध्ययन इसी महीने नीदरलैंड जूलॉजिकल सोसाइटी की शोध पत्रिका एनिमल बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। यह पत्रिका जंतु शास्त्र के क्षेत्र में शोध कार्य प्रकाशित करने वाली विश्व की सबसे पुरानी पत्रिकाओं में से एक है। इस शोध कार्य को जंतुशास्त्री राहुल कुमार ने रॉयल एन्टोमोलॉजिकल सोसाइटी, लंदन के एक कॉन्फ्रेंस में भी प्रेजेंट किया था। झारखंड के जंगल इस तरह के कई अदभुत रहस्यों से भरे हुए हैं। इन रहस्यों की खोज के लिए जैवविविधता का अध्ययन करने की जरूरत है।
मकड़ियां की 50 हजार प्रजातियां
मकड़ियां उन जीवों में हैं, जिनकी हजारों प्रजातियां है। वर्ल्ड स्पाइडर कैटलॉग के अनुसार मकड़ी की 50 हजार से अधिक प्रजातियां अब तक मिल चुकी है। मकड़ियों के पेट में एक थैली होती है, जिससे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है, इनसे ये जाल बुनती है। मकड़ियां मांसाहारी जंतु है। जाल में कीड़े-मकोड़ो को फंसाकर खाती है।