दिल्ली एमसीडी चुनाव की संभावना को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। बीजेपी निगम में अपनी 15 साल पुरानी सत्ता को बरकरार रखने के लिए रणनीति बना रही है तो आप निगम में भी काबिज होने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है।
दिल्ली एमसीडी चुनाव (Delhi MCD Election) की संभावना को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। बीजेपी निगम में अपनी 15 साल पुरानी सत्ता को बरकरार रखने के लिए रणनीति बना रही है तो आम आदमी पार्टी विधानसभा के बाद निगम में भी काबिज होने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। दिल्ली की सियासत की मजबूत खिलाड़ी रही कांग्रेस भी एमसीडी चुनाव के जरिए प्रदेश में अपनी वापसी की कोशिश कर रही है। लेकिन कांग्रेस की जमीनी स्थिति देखते हुए पिछले एमसीडी चुनाव की जमीन बचाना भी कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
पिछले एमसीडी चुनाव में कांग्रेस ने 21.09 प्रतिशत वोट शेयर के सहारे 31 सीटों पर सफलता पाई थी। 272 वॉर्ड वाले निगम में उसकी सीट संख्या बहुत नहीं थी, लेकिन वोट प्रतिशत अभी भी उसे दिल्ली की सियासत में महत्वपूर्ण बना रहा था। इसके बाद दिल्ली ने दो चुनाव 2019 का लोकसभा चुनाव और 2020 का विधानसभा चुनाव देखे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में कोई सीट नहीं जीत सकी, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 2014 की तुलना में 7.41 प्रतिशत बढ़कर 22.51 प्रतिशत हो गया। मत प्रतिशत के मामले में वह आम आदमी पार्टी को पीछे छोड़कर दूसरे नंबर पर आ गई थी। लेकिन 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 4.26 प्रतिशत वोट मिले।
विकल्प नहीं बन पा रही कांग्रेस
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को भी पीछे छोड़ दिया, जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह एक बार फिर फिसड्डी साबित हुई। इसका सीधा अर्थ है कि मतदाता बेहद परिपक्वता से उन दलों को अपना मत देने को प्राथमिकता दे रहे हैं जो उनके मत को सार्थ कर सके। राष्ट्रीय स्तर पर चुनावों में गैर भाजपाई मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी की जगह कांग्रेस को महत्व दिया, लेकिन विधानसभा में यही मत एक बार फिर आम आदमी पार्टी की और मुड़ गया। इससे यह साबित होता है कि यदि कांग्रेस स्वयं को मजबूत कर सके और वह मतदाताओं में यह भरोसा पैदा कर सके कि वह उनकी आवाज बनकर उभर सकती है तो उसे अभी भी लोगों का प्यार हासिल हो सकता है। लेकिन क्या एमसीडी चुनाव में ऐसा होने जा रहा है?
किसी सीट पर आमने-सामने की लड़ाई के लिए लगभग 50 फीसदी वोटों की आवश्यकता होती है, जबकि त्रिकोणीय लड़ाई होने पर भी लगभग एक-तिहाई वोटों की जरूरत पड़ेगी। सामान्य तौर पर मजबूत उम्मीदवार अपने दम पर 10-15 प्रतिशत वोट तक हासिल कर पाते हैं, जबकि बाकी का काम पार्टी आधार पर मिले वोटों से पूरा होता है। लेकिन कांग्रेस के मामले में आज की स्थिति में यह कहना मुश्किल है कि वह अपने उम्मीदवारों को कितने प्रतिशत मत दिलाने में समर्थ होगी। यही कारण है कि इस बार नगर निगम चुनाव में पार्टी का पिछला प्रदर्शन बरकरार रख पाना भी एक चुनौती बना हुआ है। पार्टी नेताओं में अभी भी यह बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है।
पार्टी का आधार कितना मजबूत
एमसीडी चुनाव टाले जाने से पूर्व कांग्रेस ने उन कार्यकर्ताओं से नाम मांगे थे जो निगम चुनाव में अपने क्षेत्रों से दावेदारी करने को इच्छुक थे। पार्टी को लगभग 1200 कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों से नाम भेजे थे। नये परिसीमन को देखते हुए अब सीटों की संख्या 250 रह गई है और पार्टी ने एक बार फिर चुनाव लड़ने को इच्छुक कार्यकर्ताओं से नाम मांगे हैं। 28 अक्टूबर को नाम भेजने की तिथि समाप्त होने तक काफी संख्या में कार्यकर्ताओं ने इसके लिए नाम भेजे हैं। लेकिन इनमें मजबूत उम्मीदवारों की संख्या नाममात्र को ही है जो अपने दम पर पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता रखते हैं।
मजबूत वापसी करेगी कांग्रेस- मुदित अग्रवाल
हालांकि, कांग्रेस नेता दिल्ली एमसीडी चुनाव से प्रदेश की राजनीति में वापसी करने की दावेदारी कर रहे हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष मुदित अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि नगर निगम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर वे प्रदेश की राजनीति में जोरदार वापसी करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि नगर निगम में 15 साल शासन कर चुकी भाजपा ने लोगों को निराश किया है। दिल्ली अब साफ़ शहरों की लिस्ट में नहीं, बल्कि प्रदूषित शहरों की लिस्ट में गिनी जाती है। वह अब अपने लालकिले और कुतुबमीनार के कारण नहीं, बल्कि गंदगी के पहाड़ के लिए जानी जा रही है। यह शर्मनाक है।