आदिवासी तय करेंगे कौन मनाएगा दिवाली, कांग्रेस के गढ़ में कितनी सफल होगी मोदी-शाह की रणनीति?

राज्य के आदिवासी मतदाताओं पर लंबे समय तक कांग्रेस की मजबूत पकड़ हुआ करती थी। लेकिन 1990 के बाद इस वोट बैंक में बंटवारा हो गया। आज भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस वोट बैंक के अपने साथ होने का दावा करती हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह
पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह

गुजरात में 15 प्रतिशत वोट बैंक के सहारे आदिवासी मतदाता सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 विधानसभा सीटों के आलावा भी लगभग दो दर्जन सीटों पर इनका प्रभाव है। यही कारण है कि कांग्रेस अपने इस पारंपरिक वोट बैंक को संभालने के लिए सक्रिय हो गई है तो भाजपा भी आदिवासी गौरव यात्रा निकालकर इन्हें अपने पाले में लाने की कोशिशें शुरू कर चुकी है। इस बार विधानसभा चुनाव में यह वर्ग किस दल को वोट करेगा, इस पर सबकी नजरें लगी हुई हैं।

 राज्य के आदिवासी मतदाताओं पर लंबे समय तक कांग्रेस की मजबूत पकड़ हुआ करती थी। लेकिन 1990 के बाद इस वोट बैंक में बंटवारा हो गया। आज भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस वोट बैंक के अपने साथ होने का दावा करती हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भी इन मतदाताओं पर दावेदारी जताने के लिए मैदान में है। ऐसे में माना जा रहा है कि मतदाताओं के थोड़े से बंटवारे से भी चुनाव परिणाम किसी भी पक्ष में मुड़ सकता है।

कांग्रेस कैसे बचा रही अपनी जमीन
कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनावों में आदिवासियों के वोटों की सबसे बड़ी दावेदार बताई जा रही है। इसका बड़ा कारण उसके पास आदिवासियों के मजबूत नेता के रूप में अनंत पटेल का होना है। पटेल आदिवासी युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं और वे लंबे समय से आदिवासियों के अधिकारों के लिए आंदोलनरत हैं। आदिवासियों का मुद्दा गंभीरता के साथ उठाने के कारण समुदाय के लोगों के बीच उनकी छवि मजबूत हुई है। कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है।

पार्टी ने गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं (केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट, दमन गंगा-पिंजल प्रोजेक्ट, पार-तापी-नर्मदा, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पनेर और पनेर-कावेरी प्रोजेक्ट) में आदिवासी समुदाय के लोगों की जमीन छिनने और उन्हें पर्याप्त मुआवजा न मिलने का मुद्दा उठाया है। अनंत पटेल के नेतृत्व में पार्टी ने कई प्रदर्शन किए हैं जिनमें भारी संख्या में लोगों की भागीदारी यह तय करने के लिए काफी है कि इस चुनाव में उनका झुकाव किस ओर हो सकता है। अनंत पटेल पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के गृह क्षेत्र में हुए हमले ने इस मामले को और ज्यादा भड़काने का काम किया है। कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है।

मुर्मू और कल्याणकारी योजनाएं भाजपा की ताकत
भाजपा यह बात बखूबी समझ रही है कि यदि आदिवासी मतदाताओं को संभालने का काम नहीं किया गया तो दक्षिण गुजरात के गढ़ में उसका जीतना मुश्किल हो जाएगा। यह उसके विजय का रथ भी रोक सकता है। यही कारण है कि पार्टी इन मतदाताओं को रिझाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। पार्टी ने अपने अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में ‘गुजरात आदिवासी गौरव यात्रा’ निकालकर इन मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है।

भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्रियों, राज्य सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की पूरी टीम आदिवासियों के क्षेत्रों में जाकर उन्हें यह याद दिलाने की कोशिश कर रही है कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकार भाजपा ने उन्हें ऐतिहासिक गौरव दिलाने का काम किया है। पार्टी लगातार आदिवासियों के क्षेत्रों में आवास योजनायें चला रही है, आदिवासी महिलाओं को स्वरोजगार हासिल करने में मदद की गई है तो आदिवासी युवाओं को स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश कर उनका जीवन स्तर सुधारने की कोशिश की गई है। पार्टी को उम्मीद है कि इन कल्याणकारी योजनाओं और आदिवासी गौरव के नाम पर वह आदिवासी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहेगी।

केजरीवाल करेंगे खेल
गुजरात की राजनीति के जानकार कृष्ण भाई छावारिया ने अमर उजाला को बताया कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने आदिवासियों के गौरव को आसमान वाली ऊंचाई दी है। विशेषकर समुदाय की महिलाएं भाजपा के पक्ष में मजबूती से जुड़ सकती हैं। उसने महिला केंद्रित योजनाओं के केंद्र में भी आदिवासी महिलाओं को प्राथमिकता देकर इनका दिल जीतने की कोशिश की है। उसे इसका लाभ मिल सकता है।

लेकिन गुजरात की जमीनी सच्चाई यह है कि आदिवासी युवाओं में बेरोजगारी अभी भी बहुत ज्यादा है। चूंकि कांग्रेस आदिवासियों को ज्यादा मुआवजा देने और युवाओं को रोजगार देने का मुद्दा जोरशोर से उठा रही है, उसे इसका लाभ मिल सकता है। भाजपा के पास स्थानीय मजबूत आदिवासी नेतृत्व के न होने का उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि आदिवासी समुदाय अपने हितों की बात अपने समुदाय के नेता की भाषा में ज्यादा अच्छी तरह समझता है।

लेकिन इसी बीच आदिवासी समुदाय के वोटरों पर दावेदारी जताने के लिए अरविंद केजरीवाल भी मैदान में हैं और उन्होंने गरीब आदिवासियों के बीच एक नई उम्मीद पैदा की है, कुछ मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ भी हो रहा है। यदि वे आदिवासी मतदाताओं के एक हिस्से का भी वोट पाने में सफल रहते हैं तो इससे वोटों का बंटवारा होगा और इस स्थिति में जीत किसी की ओर भी मुड़ सकती है।