Tulsi Vivah 2022 katha: देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है। इस बार देव उठनी एकादशी 04 नवंबर को है इसलिए आज ही तुलसी विवाह कराया जाएगा। तो आइए जानते हैं तुलसी विवाह से जुड़ पौराणिक कथा। आखिर क्यों कराया जाता है तुलसी विवाह।
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Tulsi Vivah 2022 Date: पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम जालंधर था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। उसे हरा पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था। उसके शक्तिशाली होने का कारण था। उसकी पत्नी वृंदा। दरअसल, उसकी पत्नी बहुत ही पतिव्रता थी। उसके प्रभाव से जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था। धीरे धीरे उसके उपद्रव के कारण देवतागण परेशान होने लगे। तब सभी देवतागण मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचा और उन्हें सारी व्यथा सुनाई। इसके बाद समाधान यह निकाला गया की क्यों न वृंदा के सतीत्व को ही नष्ट कर दिया जाए।
तब भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वृंदा के पास जा पहुंचे। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे। जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गई। ऋषि ने वृंदा के सामने दोनों को भस्म कर दिया। इसके बाद वृंदा ने अपने पति के बारे में पूछा जो कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के साथ युद्ध कर रहा था। ऋषि ने अपनी माया से दो वानर को प्रकट किया। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था और दूसरे के हाथ में उसका धड़। अपनी पति की ऐसी स्थिति को देखकर वृंदा मूर्छित हो गई। जब वह होश में आई जो उसने ऋषि से विनती की कि वह उसके पति को जिंदा कर दें।
इसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी माया से जालंधर का सिर फिर से धड़ से जोड़ दिया। लेकिन वह साथ ही उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को भगवान के इस छल का जरा भी पता नहीं चला। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी। जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया और ऐसा होते ही वृंदा का पति युद्ध हार गया।
इन सबके बारे में जब वृंदा को पता चला तो उसने क्रोध में आकर उसने भगवान विष्णु को हृदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गए। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रह्मांड में असंतुलन हो गया। इसके बाद सभी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की वह जल्द ही भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दें। इसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु को तो श्राप मुक्त कर दिया लेकिन, उसने खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई वहां तुलसी का पौधा उग गया।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि वह उनके सतीत्व का आदर करते हैं। लेकिन, वह तुलसी के रूप में सदा तुम मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक माह की देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने कहा कि जो व्यक्ति भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा।
ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में भी तुलसी मौजूद होती है वहां यम के दूत असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में डालकर निकलते हैं वह पापों से मुक्ति हो जाता है और बैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।