अजय देवगन, सुशांत सिंह राजपूत, अमृता राव, राज बब्बर, फ़रीदा जलाल, अखीलेंद्र मिश्रा की ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’ ज़्यादातर लोगों ने देखी होगी. डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक. भगत सिंह के बचपन, जवानी और शहादत की कहानी कहती ये फ़िल्म 7 जून, 2002 को रिलीज़ हुई थी.
क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन पर और भी कई फ़िल्में बनीं
1954 में आई ‘शहीद-ए-आज़म भगत सिंह’ भगत सिंह के जीवन पर बनी पहली फ़िल्म में प्रेम अदीब ने भगत सिंह का किरदार निभाया था. 1963 में आई ‘शहीद भगत सिंह’ में शम्मी कपूर ने भगत सिंह का रोल किया था. 1965 में आई ‘शहीद’ में मनोज कुमार भगत सिंह के किरदार में नज़र आये.
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2002 में भगत सिंह पर एक साथ आई दो फ़िल्में
2002 में आई ‘शहीद-ए-आज़म’ में सोनू सूद भगत सिंह बने. इसी साल रिलीज़ हुई थी अजय देवगन स्टारर ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’. इस फ़िल्म में अजय देवगन ने भगत सिंह का किरदार निभाया.
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‘तेरा लुट न जाये मान, जट्टा पगड़ी संभाल’
अजय देवगन स्टारर ‘लीजेंड…’ का एक गाना खूब चला था. इतना कि स्कूल-कॉलेज के फंक्शन में इस पर खूब डांस होता है. वो गाना था ‘तेरा लुट न जाये मान, जट्टा पगड़ी संभाल.’ गाने को स्वर सुखविंदर सिंह ने दिए.
ऐसा ही गाना था 1965 में आई शहीद में. मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में इस गाने के बोल थे-
‘तू धरती की मांग संवारे सोये खेत जगाये
सारे जग का पेट भरे तू अन्नदाता कहलाये
फिर क्यों भूख तुझे खाती है और तू भूख को खाये
लुट गया माल तेरा लुट गया माल
ओये पगड़ी संभाल जट्टा’
एक आंदोलन था ‘पगड़ी संभाल जट्टा’
ब्रिटिश सरकार ने पंजाब लैंज एलियनेशन एक्ट (1907), पंजाब लैंड कॉलोनाइज़ेशन एक्ट (1906) और बारी दोआब एक्ट पारित किया. नहर बनाने के नाम पर किसानों की ज़मीन हथियाना, किसानों ने मनमाना टैक्स वसूलने के ग्रीन टिकट थे ये एक्ट. अंग्रेज़ों के इन ‘कृषि क़ानूनों’ के विरोध में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के पिता, किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और उनके क्रांतिकारी दोस्त, घसीटा राम ने ‘भारत माता सोसाइटी’ बनाई.
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ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था, भगत सिंह के चाचा, अजीत सिंह ने. आज़ादी के पहले के भारत में पंजाब के ल्यालपुर (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में 3 मार्च, 1907 को एक रैली हुई. रैली में ‘झंग स्याल’ नामक अख़बार के संपादक, बांके दयाल ने एक गाना गाया. ये गाना इतना जोशीला और उत्साहवर्धक था कि इस रैली और आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन हो गया.
जनता के पुरजोर विरोध के बाद, अंग्रेज़ों ने क़ानूनों पर मामूल फेर-बदल किये. ये आंदोलन अहिंसक न रह पाया. 21 अप्रैल, 1921 को रावलपिंडी में अजीत सिंह के भाषण के बाद उन पर देशद्रोह का मुक़दमा लगा दिया गया. अजीत सिंह ने अपनी जीवनी मेें लिखा, ‘रावलपिंडी, गुजरांवाला, लाहौर आदि शहरों में दंगे हुये. हिन्दुस्तानियों ने गिरिजाघरों पर मिट्टी फेंकी, दफ़्तर, गिरिजाघरों में तोड़-फोड़ हुईष टेलिग्राफ़ पोल और वायर काटे गये.’
Free Press Journal
मई 1907 में ब्रितानिया सरकार ने तीनों क़ानून वापस ले लिये. भारतीय इतिहास से जुड़े ऐसे लेख पढ़ना चाहते हैं तो हमें ज़रूर बताइये. हम इस तरह की जानकारी आपके लिये लेकर आते रहेंगे.