टैक्‍स, जीएसटी वसूली का नोटिस मिलते ही ‘खेल’ शुरू कर देती थी Uber, तेज सफलता के लिए चुना कानून तोड़ने का रास्‍ता

नई दिल्‍ली. दुनिया की सबसे बड़ी कैब एग्रीगेटर कंपनी उबर (Uber) ने अपना कारोबार फैलाने के लिए कई नियम और कानून तोड़ने के साथ अधिकारियों और सरकारों से साठगांठ भी की. घूस खिलाया और तकनीक का सहारा लेकर कानून की धज्जियां उड़ाई. कंपनी के आंतरिक मेल, बातचीत और मैसेज की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि आरबीआई ने भी कंपनी पर सख्‍त रुख अपनाया था.

उबर ने 2013 में भारत के बंगलूरू शहर से अपनी कैब सेवा शुरू की थी.

इंडियन एक्‍सप्रेसकी खबर के मुताबिक, अंतरराष्‍ट्रीय खोजी पत्रकारों की टीम ने उबर के इंटरनल दस्‍तावेजों की जांच में खुलासा किया है कि भारत में एंट्री के करीब एक साल बाद सितंबर, 2014 में कंपनी को मुंबई में सर्विस टैक्‍स से जुड़ा नोटिस भेजा गया. इस बारे में टॉप एग्‍जीक्‍यूटिव की ओर से कर्मचारियों को दिए गए पॉवरप्‍वाइंट में इसका खुलासा किया था.

 

25 नवंबर, 2014 के एक ई-मेल में अधिकारियों ने कहा था- प्राधिकरणों ने उबर से अपना खाता दिखाने के लिए कहा है और अगर ऐसा नहीं होता है तो आगे जुर्माने और गिरफ्तारी की कार्रवाई की जाएगी. यह मेल उबर के वाइस प्रेसिडेंट और खजांची रहे एलेक्‍स मार्टिनेज की ओर से किया गया था.

ईमेल से पता चलता है कि कंपनी ने नोटिस के बाद टैक्‍स अधिकारियों को ‘मोड़ने’ की कोशिश की और उनसे अपने ऊपर की लाइबिलिटी ड्राइवर से वसूलने को लेकर निगोसिएशन किया. साथ ही अपील की कि कंपनी पर बकाए टैक्‍स का दोबारा मूल्‍यांकन किया जाए. 28 फरवरी, 2015 को जारी केंद्रीय बजट में तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने भी कहा था कि एग्रीगेटर के बकाया पर सर्विस टैक्‍स वसूला जाना चाहिए. इसके बाद 22 अप्रैल, 2015 को उबर ने कहा, हमने अपनी सर्विस टैक्‍स के लिए ढांचा तैयार करने को किराये का स्‍ट्रक्‍चर बदला है. देश के करीब 100 शहरों में अपनी सेवाएं देने वाली यह कंपनी अभी तक कई कोर्ट केस और डिफॉल्‍ट मामलों में फंस चुकी है.

जीएसटी मांग को अदालत में दी चुनौती

उबर न सिर्फ टैक्‍स में हेरफेर के दांव खेलती थी, बल्कि टैक्‍स वसूली का नोटिस मिलने पर उसे कोर्ट में चुनौती के लिए भी तैयार रहती थी. साल 2017 में केंद्रीय उपभोक्‍ता सुरक्षा प्राधिकरण (CCPA) उपभोक्‍ता अधिकारों को न मानने के मामले में उबर को नोटिस जारी की. इसके अलावा जीएसटी विभाग की ओर से कंपनी को 827 करोड़ रुपये के सर्विस टैक्‍स बकाए का नोटिस भेजा गया. इसमें से जीएसटी का मामला बॉम्‍बे हाईकोर्ट में चल रहा है, जबकि उपभोक्‍ता अधिकारों के हनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट उबर के खिलाफ सुनवाई कर रहा है.

एक ही रूट का वसूलती थी अलग-अलग किराया

उबर के खिलाफ CCPA के पास उपभोक्‍ता हितों पर ध्‍यान न देने की सैकड़ों शिकायतें पहुंची थीं. इसमें कस्‍टमर केयर नंबर न होना, शिकायत निवारण अधिकारी की डिटेल न देना, एक ही रूट के अलग-अलग किराये वसूलना और राइड कैंसिल करने पर ढेर सारे अनावश्‍यक शुल्‍क वसूलना जैसे काम शामिल थे. CCPA की चेयरपर्सन निधि खरे का कहना है कि उबर के खिलाफ हमें 770 से भी ज्‍यादा उपभोक्‍ता मामलों की शिकायतें मिल चुकी हैं. अप्रैल 2021 से मई 2022 के बीच मिली इन शिकायतों में से 473 तो सिर्फ सेवा में कमी की थी.

टैक्‍स मांगते ही अड़ जाती है कंपनी

पड़ताल में पता चला है कि उबर से जैसे ही किसी टैक्‍स की वसूली शुरू होती कंपनी उसके विरोध में हो जाती. रजिस्‍ट्रार ऑफ कंनपी ने एक आदेश में कहा था कि 2018-19 के लिए कंपनी के खिलाफ 113.48 करोड़ रुपये का टैक्‍स बकाया है. कंपनी का यह मामला अभी तक आयकर अपीलीय न्‍यायाधिकरण में पेंडिंग है. सितंबर, 2018 को आयकर आयुक्‍त (मुंबई) ने उबर को डिफॉल्‍टर बताकर 24.92 करोड़ रुपये टीडीएस जमा करने का आदेश दिया, लेकिन कंपनी आयकर अपीलीय न्‍यायाधिकरण चली गई, जहां उसे बरी कर दिया गया.

गलत तरीके से भुगतान पर आरबीआई ने लताड़ा

रिजर्व बैंक ने भी उबर को गलत तरीके से भुगतान लेने के मामले में 22 अगस्‍त, 2014 को नोटिस भेजा. इसमें कहा गया कि कंपनी अपनी कैब सेवा के लिए उपभोक्‍ताओं से सीधे पैसे वसूलती है, जो विदेशी मुद्रा व‍िनिमय के नियमों का उल्‍लंघन है. नियम पालन के लिए कंपनी को 31 अक्‍तूबर तक का समय दिया गया, जिसके बाद उबर ने 1 दिसंबर, 2014 से सीधे क्रेडिट कार्ड से भुगतान लेने के बजाए पेटीएम के साथ हाथ मिला लिया. 13 जुलाई, 2015 को फिर कंपनी सीधे क्रेडिट कार्ड से भुगतान लेने लगी.

कंपनी की ओर से लगातार नियमों की धज्जियां उड़ाए जाने के बावजूद संबंधित विभाग पुख्‍ता कार्रवाई करने में असमर्थ रहे. ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं फ्रांस, अमेरिका, यूरोप के अन्‍य देशों सहित कई शहरों में हुआ. रिपोर्ट में पहले ही बताया गया था कि कंपनी की विदेशों में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के साथ होती थी.