राजस्थान के उदयपुर में नुपूर शर्मा के समर्थन में पोस्ट करने के मामले में एक दर्जी की गला रेतकर हत्या करने का मामला लगभग सभी अख़बारों की अहम सुर्खियां हैं.
इस हत्या की कहानी दर्जी कन्हैयालाल के कारीगर गिरीश शर्मा ने बताई है. गिरीश शर्मा की आपबीती हिन्दी अख़बार दैनिक भास्कर ने पहले पन्ने की लीड स्टोरी बनाई है. दैनिक भास्कर की यह स्टोरी पढ़िए-
मैं पिछले 10 साल से उदयपुर के भूत महल (मालदास स्ट्रीट) में सेठजी (कन्हैयालाल) के पास टेलरिंग करता रहा हूँ. मंगलवार दोपहर दो तीन बजे दो युवक (मोहम्मद रियाज़ अत्तारी और ग़ौस मोहम्मद) दुकान में आए. बोले कि झब्बा-पायजामा सिल दोगे क्या? सेठजी बोले बिल्कुल सिलेंगे.
रियाज़ झब्बा-पायजामा का नाप देने लगा. ग़ौस खड़ा रहा. मैं और मेरा साथी राजकुमार कपड़े सिल रहे थे. तभी चिल्लाने की आवाज़ आई. मुड़कर देखा तो सेठजी पर हमला कर रहे थे. मैं बाहर भागा. बगल वाली दुकान में पहुँचा तो पता चला कि मेरे सिर और बाएं हाथ पर भी धारदार हथियार लगने से ख़ून बह रहा है. सेठजी दुकान पर लहूलुहान पड़े थे और ख़ून बह रहा था. मेरे साथ जैसे-तैसे राजकुमार भी भाग गया. सेठजी हमेशा कहते थे कि ऐसे कपड़े सिलो कि आदमी सज जाए.
क्या पता था कि वे जिन्हें सजाने के लिए नाप ले रहे हैं, वे ही उनको कफ़न में बंधवा देंगे. सेठजी ने 10-15 दिन पहले सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली थी. इस पर विवाद हुआ था. तब पुलिस उन्हें पकड़कर ले गई थी और मामला रफा-दफा कर दिया. ख़ौफ़नाक यह है कि मारने वालों ने पहले ही सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर गला रेतने की धमकी दी थी. वे दुकान आकर गला रेतकर भी गए. सोशल मीडिया पर क़बूलनामा भी डाला. पीएम मोदी को भी मारने की धमकी दी.
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रियाज़ और ग़ौस कौन हैं?
दैनिक भास्कर के अनुसार, मोहम्मद रियाज़ मूलतः भीलवाड़ा के आसींद के हैं. वह उदयपुर के खांजीपीर में किराए पर रहते हैं. मस्जिदों में खिदमत से जुड़ा काम करते हैं. वहीं ग़ौस मोहम्मद राजसमंद में भीम के हैं. वह भी उदयपुर के खांजीपुर में किराए पर रहते हैं. उनका वेल्डिंग और ज़मीन से लेन-देन से जुड़ा काम है.
टेलर कन्हैयालाल साहू की मंगलवार दोपहर दुकान में घुसकर निर्मम हत्या की गई थी. अभियुक्तों ने इस वारदात का वीडियो भी बनाया और प्रधानमंत्री मोदी को भी धमकी दी. परिजनों ने हत्या के बाद कुछ मांग रखी थीं. इस पर सहमति बनने के बाद कन्हैयालाल का शव मुर्दाघर में रखवाया गया है. पोस्टमॉर्टम के बाद अंतिम संस्कार किया जाएगा. परिजनों को 31 लाख रुपए और दोनों बेटों को भी नौकरी का आश्वासन दिया गया है. लापरवाही बरतने के लिए धानमंडी थाने के एएसआई भंवरलाल को निलंबित कर दिया गया है.
हत्या के बाद विरोध में सड़कों पर उतरे लोग क़रीब सात घंटे बाद रात 10 बजे शव उठाने पर राजी हुए. शव उदयपुर के अस्पताल में रखवाया गया है. बुधवार सुबह पोस्टमॉर्टम कराया जाएगा. इससे पहले हाथीपोल चौराहे पर पहुंचे लोगों और पुलिस की झड़प हुई. इसमें भाजपा युवा मोर्चा का एक कार्यकर्ता घायल हो गया.
उदयपुर: पैग़ंबर का हवाला देकर दर्जी की हत्या की, वीडियो में पीएम मोदी को भी धमकी
मुस्लिम बहुल आबादी वाली सीटों पर भी बीजेपी कैसे जीत रही
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ड्रामा क्वीन
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उत्तर प्रदेश के रामपुर और आज़मगढ़ लोकसभा क्षेत्र को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता था. यहाँ हुए उपचुनाव में बीजेपी की जीत से समाजवादी पार्टी कैंप में निराशा का माहौल है.
लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि इस जीत को लंबी अवधि के लिए सुनिश्चत किया जाए. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए यादव मुस्लिम गठजोड़ एक चुनौती रही है लेकिन इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में जीत के बाद एक संदेश गया है कि इस गठजोड़ को तोड़ा जा सकता है.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने आज इसी विषय पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. प्रेस रिव्यू की लीड में आज इसी रिपोर्ट को पढ़िए. रामपुर और आज़मगढ़ में बीजेपी की जीत उसके मिशन 2024 के लिए काफ़ी मुफ़ीद है. हालिया विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी की अच्छी चुनौती दी थी. बीजेपी ने अब इन दोनों सीटों को जीतकर एक संदेश दिया है.
रामपुर में क़रीब 60 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है और आज़मगढ़ में भी मुसलमानों की तादाद क़रीब 30 फ़ीसदी है. आज़मगढ़ में मुस्लिम और यादवों की आबादी 40 फ़ीसदी से ज़्यादा है. पार्टी नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ उभरते ग़ुस्से का फ़ायदा उठाया है और दोनों सीटों पर जीत के लिए अलग रणनीति अपनाई.
इंडियन एक्सप्रेस से पार्टी के एक नेता ने कहा, ”रामपुर को आज़म ख़ान के क़िले के तौर पर देखा जाता था. बीजेपी को कामयाबी मिली जबकि समाजवादी पार्टी ने कमज़ोर प्रत्याशी को उतारा था. वहीं आज़मगढ़ में बीएसपी के कारण बीजेपी को जीत मिली.”
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आज़म ख़ान मुलायम सिंह की पीढ़ी के नेता हैं और अब वह पार्टी में ख़ुद को हाशिए पर पाते हैं. कहा जा रहा है कि जिस तरह से रामपुर में समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार का चयन किया, उससे भी पता चलता है कि पार्टी के भीतर सब ठीक नहीं है.
आज़म ख़ान हाल ही में जेल से बाहर आए हैं. वह कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. रामपुर में सपा ने आसिम राजा को उतारा था और इसे आज़म ख़ान की पसंद बताया जा रहा है. हालांकि राजा को कमज़ोर उम्मीदवार के तौर पर देखा गया. रामपुर सीट आज़म ख़ान के इस्तीफ़े के कारण ख़ाली हुई थी. आज़म ख़ान ने विधायक बनने के बाद लोकसभा सांसदी से इस्तीफ़ा दे दिया था.
दूसरी तरफ़ बीजेपी ने घनश्याम लोधी को रामपुर से उम्मीदवार बनाया. लोधी की क़रीबी आज़म ख़ान से भी बताई जाती है. भले समाजवादी पार्टी यहाँ हार गई लेकिन कहा जा रहा है कि आज़म ख़ान की जीत लोधी की जीत में भी है.
बीजेपी के एक सूत्र ने बताया, ”रामपुर के नतीजे से आज़म ख़ान ने स्पष्ट कर दिया है कि संकट के घड़ी में अखिलेश यादव उनके साथ खड़े नहीं रहे ऐसे में उन्हें बीजेपी में एक सांसद दोस्त मिला गया और बीजेपी इसके लिए आभार भी रहेगी. इससे उन्हें मुक़दमों से छुटकारे में मदद भी मिल सकती है. इसके अलावा उन्होंने अखिलेश यादव को अपनी अहमियत भी बता दी.”
आज़मगढ़ में बीजेपी को बहुजन समाज पार्टी की मौजूदगी का फ़ायदा मिला. हालिया विधानसभा चुनाव में मायावती को महज़ एक सीट पर जीत मिली थी. मायावती के पास खोने के लिए कुछ नहीं था और अगर उनके उम्मीदवार ने सपा को उसके गढ़ में ही जीत से रोक दिया तो ये उनकी कामयाबी है.
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बीएसपी उम्मीदवार के तौर पर गुड्डू जमाली को मुस्लिम वोट काफ़ी मिले और यह समाजवादी पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह रही. बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को 8,600 वोटों से हरा दिया. चुनावी नतीजे के बाद मायावती ने कहा कि केवल बीएसपी ही बीजेपी को रोक सकती है.
आज़मगढ़ सीट को समाजवादी पार्टी ने न केवल 2014 की मोदी लहर में जीता था बल्कि 2019 में भी यहाँ अखिलेश यादव को जीत मिली थी. विधानसभा चुनाव में भी आज़मगढ़ में पाँच विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी. बीजेपी नेताओं का कहना है कि इन दोनों सीटों की रणनीति अमित शाह ने तैयार की थी और पार्टी महासचिव (संगठन) सुनील बंसल ने इसे लागू किया था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथा का भी साथ मिला. मुख्यमंत्री ने दोनों सीटों पर जमकर चुनाव प्रचार किया था.
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी मुस्लिम बहुल आबादी वाली सीटों पर बीजेपी की जीत को लेकर एक विश्लेषण छापा है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस विश्लेषण में लिखा है कि 2014 में बीजेपी की जीत के बाद जिस तरह की राजनीति को बढ़ावा मिला, ये उसी की परिणति है.
2014 के बाद बीजेपी ने मुसलमानों को टिकट देना लगभग बंद कर दिया था. यह केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि लगभग सभी राज्यों में किया गया. इस विश्लेषण में लिखा गया है कि बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके भविष्य पर मुस्लिम मतों का असर नहीं पड़ेगा. 2014 के बाद बीजेपी को उत्तर प्रदेश और ख़ासकर हिन्दी भाषी प्रदेशों में उन सीटों पर भी जीत मिली, जहाँ मुस्लिम आबादी अच्छी ख़ासी है.