ब्रिटेन की स्पेशल फ़ोर्स ने अफ़ग़ानिस्तान में निहत्थे लोगों को मारा- बीबीसी पड़ताल

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अफ़ग़ानिस्तान में काम कर रही ब्रिटेन की एक सैन्य यूनिट SAS ने हिरासत में लिए गए कई निहत्थे लोगों की हत्या की है, बीबीसी की एक जांच में ये बात सामने आई है.

हाल में मिली एक मिलिट्री रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि हो सकता है कि एक यूनिट ने पिछले छह महीने में ग़ैर क़ानूनी तरीके से 54 लोगों की हत्या की.

बीबीसी को मिले सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि स्पेशल फोर्सेस के पूर्व प्रमुख हत्या की जांच के लिए सबूत पेश करने में विफल रहे हैं.

ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ब्रिटेन की इन टुकड़ियों ने “बहादुरी और पेशेवर तरीके से अफ़ग़ानिस्तान में काम किया है.”

बीबीसी को ये समझ में आया है कि यूके स्पेशल फ़ोर्सेस के पूर्व प्रमुख जनरल सर मार्क कार्लटन स्मिथ को इन कथित ग़ैरक़ानूनी हत्याओं से जुड़ी जानकारियां थीं, लेकिन उन्होंने इससे जुड़े सबूत रॉयल मिलिट्री पुलिस को जांच के लिए नहीं दिए.

जनरल कार्लटन स्मिथ, जो कि बाद में सेना के प्रमुख बने और पिछले महीने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया है, उन्होंने इस ख़बर पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.

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सैकड़ों पन्नों का किया अध्ययन

बीबीसी पैनोरमा ने SAS के ऑपरेशनल अकॉउंट के सैंकड़ों पन्नों का अध्ययन किया. इनमें SAS स्क्वॉड्रन द्वारा हेलमंड में 2010/11 में एक दर्जन से ज़्यादा “मारने और पकड़ने के लिए किए गए रेड के दस्तावेज़ भी शामिल है.

उस वक्त इस स्क्वॉड्रन के साथ काम कर चुके लोगों ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने इसके सदस्यों को निहत्थे लोगों को रात की रेड के दौरान मारते देखा था. उन्होंने ये भी कहा कि उन्होंने ऑपरेटिव्स को कथित “ड्रॉप वेपन”का इस्तेमाल करते हुए भी देखा यानी कि वारदात की जगह पर एके-47 को रखते हुए ताकि निहत्थे लोगों की हत्या को जायज़ ठहराया जा सके.

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स्पेशल फ़ोर्सेस के साथ काम कर चुके कई लोगों का ये भी कहना है कि SAS की टुकड़ियों के बीच लोगों को मारने की प्रतिस्पर्धा थी. बीबीसी ने जिन टुकड़ियों की जांच की, वो संभवत दूसरे स्कॉवड्रन से अधिक लोगों की मौत गिनवाने चाहते थे.

आंतरिक ईमेल से पता चलता है कि मुमकिन है कि स्पेशल फ़ोर्स के उच्च अधिकारियों को संभावित ग़ैरकानूनी हत्याओं की जानकारी थी लेकिन उन्होंने इसकी जानकारी मिलिट्री पुलिस को नहीं दी जो कि क़ानूनन अनिवार्य है.

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वो इन आरोपों पर टिप्पणी नहीं कर सकते लेकिन टिप्पणी नहीं करने का मतलब ये नहीं हैं कि वो स्वीकार रहे हैं कि आरोप सही हैं. रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि कि ब्रितानी सेना ने “साहस और पेशेवर”तरीके से काम किया और उन्होंने “उच्च स्तर”को कायम रखा है.

अफ़ग़ानिस्तान

संभावित हत्याओं का एक पैटर्न

2019 में, बीबीसी और संडे टाइम्स ने एक SAS रेड की जांच की, जिसके बाद मामला ब्रिटेन की एक अदालत में पहुंचा और ब्रिटेन के रक्षा मंत्री को मामले से निपटने से जुड़े दस्तावेजों को सामने लाने का आदेश दिया गया.

इस नई जांच के लिए, बीबीसी ने SAS के रात में किए गए छापेमारियों का अध्ययन किया. हमें अफ़ग़ान पुरुषों की गोली मारकर हत्या करने की चौंका देने वाले रिपोर्टों का एक पैटर्न मिला. रिपोर्टों में लिखा गया है कि हिरासत में लिए जाने के बाद उन्होंने पर्दे या अन्य फर्नीचर के पीछे से एके-47 राइफलें या हथगोले का इस्तेमाल किया.

सेना
  • 29 नवंबर 2010 को, स्क्वाड्रन ने एक व्यक्ति को मार डाला जिसे हिरासत में लिया गया था. उसे एक इमारत के अंदर ले जाया गया था. वहां उसने “एक ग्रेनेड के साथ सेना से लड़ने की कोशिश की.

• 15 जनवरी 2011 को, स्क्वॉड्रन ने एक व्यक्ति को मार डाला जिसे हिरासत में लिया गया था. उसे एक इमारत के अंदर ले जाया गया था, जहां वो “एक गद्दे के पीछे पहुंचा, उसने हथगोला निकाला, और उसे फेंकने का प्रयास किया”

• 7 फरवरी को, स्क्वॉड्रन ने एक बंदी को मार डाला. इसके बारे में उन्होंने कहा कि उसने “एक राइफल के साथ गश्ती दल पर हमला करने की कोशिश की”. 9 फरवरी और 13 फरवरी को बंदियों की घातक गोलीबारी के पीछे भी यही तर्क दिया गया.

• 16 फरवरी को, स्क्वॉड्रन ने “पर्दे के पीछे से” छुपकर हथगोला फेंकने की कोशिश करने वाले एक बंदी को मार डाला. वहीं दूसरे ने “एक मेज के पीछे से एके -47 उठा लिया” था.

• 1 अप्रैल को, स्क्वॉड्रन ने दो बंदियों को मार डाला, जिन्हें एक इमारत में ले जाया गया था. इनमें से एक ने “एके-47 उठाया” और दूसरे ने “एक ग्रेनेड फेंकने की कोशिश की”

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किसी जवान के घायल होने की सूचना नहीं

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समाप्त

स्क्वाड्रन के छह महीने के दौरे के दौरान मरने वालों की कुल संख्या सौ से अधिक थी. बीबीसी द्वारा छानबीन किए गए दस्तावेज़ों में किसी भी रेड में SAS के किसी जवान के घायल होने की कोई सूचना नहीं मिली.

यूके स्पेशल फ़ोर्सेज मुख्यालय में काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि स्क्वॉड्रन की रिपोर्ट पर “वास्तविक चिंताएं” जाहिर की गई थीं. उन्होंने कहा, “रात की छापेमारी में बहुत लोग मारे जा रहे थे और इसके लिए दिए गए स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं थे”

“एक बार हिरासत में लिए जाने के बाद, किसी की मौत नहीं होनी चाहिए. ऐसा बार-बार होने के कारण मुख्यालय अलर्ट पर था. उस समय यह स्पष्ट था कि कुछ ग़लत हो रहा है.”

उस समय के आंतरिक ईमेल बताते हैं कि अधिकारियों ने रिपोर्टों पर अविश्वास के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की, उन्होंने इन्हें “काफी अविश्वसनीय” बताया और स्क्वॉड्रन के “नए नरसंहार” का जिक्र किया.

एक ऑपरेशन अधिकारी ने एक सहयोगी को यह कहते हुए ईमेल किया कि “पिछले दो हफ्तों में 10 वीं बार ” स्क्वॉड्रन ने एक बंदी को वापस इमारत में भेजा “और वह वहां एके-47 के साथ दिखाई दिया”

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मिलिट्री पुलिस को नहीं दिए गए सबूत

“फिर वो दूसरे बी (लड़ाका-उम्र-पुरुष) के साथ एक अलग ए (इमारत) में वापस चले गए. फिर उसने पर्दे के पीछे से एक ग्रेनेड पकड़ा और उसे सी (SAS की टीम) पर फेंक दिया. सौभाग्य से , वह फटा नहीं …. यह 8वीं बार हुआ है … आप इसे सच नहीं मान सकते!”

जैसे-जैसे चिंताएं बढ़ीं, देश के सर्वोच्च रैंकिंग वाले विशेष बलों के अधिकारियों में से एक ने एक गुप्त ज्ञापन में चेतावनी दी कि ऑपरेशन में गैरकानूनी हत्याएं “सोचीसमझी नीति” हो सकती है.

वरिष्ठ नेतृत्व इतना चिंतित हो गया कि स्क्वॉड्रन की रणनीति की एक औपचारिक समीक्षा की गई, जो सामान्य बात नहीं है.

लेकिन जब स्क्वॉड्रन के कर्मियों का इंटरव्यू करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में एक विशेष बल के अधिकारी को तैनात किया गया, तो उसने घटनाओं के SAS की दी गई जानकारियों के नज़रिये से ही देखा.

बीबीसी समझता है कि अधिकारी ने रेड की जगहों का दौरा नहीं किया या सेना के बाहर किसी भी गवाह का इंटरव्यू नहीं लिया. अदालती दस्तावेजों से पता SAS यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर ने अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए थे, जिनपर संभावित हत्याओं का आरोप था.

इसके अलावा मिलिट्री पुलिस को कोई सबूत नहीं दिया गया . बीबीसी ने पाया कि चिंताओं वाले बयानों को “एक्सट्राज्यूडिशयल किलिंग से जुड़ी अपुष्ट जानकारियों”वाली क्लासिफ़ाइड फ़ाइल में डाल दिया.

2012 में, जनरल कार्लेटन-स्मिथ को ब्रिटेन के विशेष बलों का प्रमुख नियुक्त किया गया था. बीबीसी समझता है कि उन्हें संदिग्ध हत्याओं से जुड़ी चिंताओं बारे में जानकारी दी गई थी, लेकिन उन्होंने स्क्वॉड्रन को अगले छह महीने के भीतर अफ़ग़ीनिस्तान लौटने की अनुमति दे दी.

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जनरल सर मार्क कार्लटन स्मिथ

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इमेज कैप्शन,जनरल सर मार्क कार्लटन स्मिथ

साल 2013 में रॉयल मिलिट्री पुलिस ने एक रेड के दौरान हुई हत्या की जांच शुरू की. जनरल कार्टन स्मिथ ने पहले की चितांए उनके सामने नहीं रखीं.

साल 2011 में रॉयल मरीन के कमांडर रहे कर्नल ऑलीवर ली ने बीबीसी को बताया कि आरोप “चौंकाने वाले हैं” और इसकी जांच होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि स्पेशल फोर्सेस की लीडरशीप का सबूतों को सामने नहीं रखना “स्वीकार नहीं किया जा सकता”

बीबीसी की जांच के दायरे में एक SAS की टीम थी जो नवंबर 2010 में छह महीने के लिए अफ़ग़ानिस्तान गई थी. ये टुकड़ी मुख्य रूप से हेलमंड प्रांत में काम कर रही थी, जो कि अफ़ग़ानितान के सबसे ख़तरनाक इलाकों में से एक हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के हमले और सड़क पर बमबारी के कारण सेना को काफ़ी नुकसान होता था. इस स्क्वॉड्रन का काम मुख्य काम डिटेंशन ऑपरेशन था जिसे “किल ऑर कैप्चर”कहते थे. इनके निशाने पर तालिबान कमांडर होते थे और उद्देश्य बम बनाने के नेटवर्क को तबाह करना था.

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स्पेशल फ़ोर्सेस के लिए टारगेट चुनने में शामिल रहे कई सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि चुनने की प्रक्रिया के पीछे इंटेलीजेंस में बहुत ख़ामियां थीं और आम लोगों के टार्गेट लिस्ट में आने का ख़तरा रहता था.

हेलमंड में 2011 में टार्गेट चुनने की प्रक्रिया के दौरान शामिल एक ब्रितानी प्रतिनिधि ने बताया कि “इंटेलीजेंस से जुड़े लोग एक लिस्ट बनाते थे जिनमें उनके मुताबिक तालिबान से जुड़े लोग थे. उस पर एक संक्षिप्त बहस होती थी. उसके बाद स्पेशल फ़ोर्सेस को उन्हें मारने या पकड़ने का ऑर्डर दे दिया जाता था.

सूत्रों के मुताबिक टार्गेट के चयन दबाव और जल्दबाज़ी में किया जाते थे. उन्होंने कहा, “इसका मतलब ये नहीं था कि सभी को मारना है, लेकिन दबाव था इसका मतलब है कि इनपर फ़ैसले जल्दी लिए जाए.”

स्क्वॉड्रन की एक प्रक्रिया थी. वो सभी को बिल्डिंग के बाहर बुलाते थे , उनकी तलाशी लेते थे और उनके हाथ बांध देते थे. इसके बाद एक व्यक्ति को बिल्डिंग के अंदर ले जाते थे ताकि वो सर्च में मदद कर सके.

लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों की चिंताएं तब बढ़ी जब जब अंदर ले गए व्यक्ति के हथियार उठाने की खबरें अधिक आने लगीं. इस तरह की घटनाएं की ख़बरे अफ़ग़ानिस्तान में दूसरी ब्रितानी मिलिट्री टुकड़ियों से नहीं मिलती थी.

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रेड की बढ़ती संख्या थी चिंता का विषय

चिंता का एक और कारण ये था कि रेड की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ था और जितने हथियार मिले थे, उनकी तुलना में मारे गए लोगों की संख्या बहुत अधिक थी. ये इशारा था कि SAS निहत्थे लोगों की हत्या कर रहा था.

ऑस्ट्रेलिया में इसी तरह की चिंताओं को उठाए जाने के बाद, एक जज के नेतृत्व में जांच शुरू की गई और पाया गया कि “विश्वसनीय सबूत” दिखाते हैं कि ऑस्ट्रेलियाई विशेष बलों के सदस्यों ने ग़ैर-कानूनी रूप से 39 लोगों की हत्या की, और शूटिंग को सही ठहराने के प्रयास में ‘ड्रॉप वेपन’ का इस्तेमाल किया.

अप्रैल 2011 तक, यूके में चिंताएं इतनी बढ़ गई थीं कि एक वरिष्ठ स्पेशल फ़ोर्सेस के अधिकारी ने विशेष बलों के निदेशक को चेतावनी दी थी कि “हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की जानबूझकर हत्या की गई” और “साबित करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ हुई”

दो दिनों के बाद, यूके स्पेशल फोर्सेज के असिस्टेंट चीफ ऑफ स्टाफ़ ने निदेशक को चेतावनी दी कि SAS “लड़ाई करने वाले एक आयु वर्ग के पुरुषों मारने के लिए एक नीति पर काम कर सकता है, भले ही उन्होंने कोई खतरा पैदा न किया हो”

उन्होंने लिखा कि अगर ये संदेह सच हैं तो SAS स्क्वॉड्रन ” नैतिक और कानूनी व्यवहार से भटक गया था”

बीबीसी ने 2010/11 में SAS स्क्वाड्रन द्वारा रेड किए गए कई घरों का दौरा किया. एक समय में, हेलमंद के नाद अली के एक छोटे से गाँव में, ईंट से बना गेस्टहाउस था जहाँ 7 फरवरी 2011 को तड़के एक किशोर सहित नौ अफ़ग़ान लोगों की हत्या कर दी गई थी.

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SAS के कार्यकर्ता अंधेरे की आड़ में हेलीकॉप्टर से वहां पहुंचे और पास के एक खेत से घर घुस गए. उनके दस्तावेज़ के अनुसार, विद्रोहियों ने उन पर गोलियां चलाईं, जिससे कारण वो वापस गेस्टहाउस में पहुंच सभी को मारने के लिए मजबूर हुए.

SAS के दस्तावेज़ के अनुसार, वहां से केवल तीन एके -47 बरामद किए गए थे. ये स्क्वाड्रन द्वारा मारे गए कम से कम छह छापे में से एक था, जिसमें दुश्मन के हथियारों की संख्या मारे गए लोगों की संख्या से कम थी.

तस्वीरों पर जानकारों ने क्या कहा?

गेस्टहाउस के अंदर, जो गोलियों के निशान मिले हैं वो ज़मीन के पास एक जगह पर हैं. बीबीसी ने इन तस्वीरों को जानकारों को दिखाया जिन्होंने कहा कि गोलियां ऊपर से चलाई गई किसी तरह से मुठभेड़ की आशंका कम नज़र आ रही थी.

हथियारों के विशेषज्ञ लेह नेविल ने कहा कि बुलेट पैटर्न बताते हैं कि “लक्ष्य जमीन पर थे या दीवार के करीब बैठे या झुके हुए थे, लड़ाई के लिए ये एक असामान्य स्थिति है”बीबीसी द्वारा जांच की गई दो अन्य जगहों पर भी यही पैटर्न मिला. तस्वीरों की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों ने कहा कि गोलियों के छेद लड़ाई के बजाय हत्याओं का संकेत दे रहे थे.

नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए, रॉयल मिलिट्री पुलिस के एक जांचकर्ता ने बीबीसी से पुष्टि की कि उन्होंने तस्वीरें देखीं हैं और “गोलियों के पैटर्न चिंता का विषय हैं.”

उन्होंने कहा, “आप देख सकते हैं कि हम क्यों चिंतित थे,”

“दीवारों पर गोलियों के निशान ज़मीन से इतने क़रीब हैं कि स्पेशल फ़ोर्सेस की का वर्ज़न सही नहीं लगता.”

2014 में, रॉयल मिलिट्री पुलिस ने ऑपरेशन नॉर्थमूर शुरू किया, जिसमें SAS स्कवॉड्रन द्वारा कई कथित हत्याओं सहित अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटिश सेना द्वारा 600 से अधिक कथित अपराधों की व्यापक जांच की गई.

लेकिन रॉयल मिलिट्री पुलिस जांचकर्ताओं ने बीबीसी को बताया कि ब्रिटिश सेना ने सबूत इकट्ठा करने के उनके प्रयासों में बाधा डाली.

बोरिस जॉनसन ने कहा है कि वो अभी प्रधानमंत्री बने रहेंगे.

रक्षा मंत्रालय ने क्या कहा

ऑपरेशन नॉर्थमूर 2017 में रोक दिया गया था और अंततः 2019 में बंद कर दिया गया था.

रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि आपराध का कोई सबूत नहीं मिला है. जांच दल के सदस्यों ने बीबीसी को बताया कि वे इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं.

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ब्रितानी सेना ने उच्चतम मानकों का उदाहरण दिया. उनके एक प्रवक्ता ने कहा, कोई नया सबूत पेश नहीं किया गया है, लेकिन अगर कोई नया सबूत सामने आता है तो सर्विस पुलिस उसका संज्ञान लेगी.”

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसका मानना है कि पैनोरमा “आरोपों से अनुचित निष्कर्ष पर पहुंच गया था जिसकी पूरी तरह से जांच की जा चुकी है”

उन्होंने कहा: “हमने पैनोरमा को एक विस्तृत और व्यापक बयान दिया है, जिसमें स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है कि कैसे दो सर्विस पुलिस ऑपरेशन के तहत अफ़ग़ीनिस्तान में ब्रिटेन की सेना के आचरण के आरोपों की व्यापक और स्वतंत्र जांच की गई.”

“किसी भी जांच में मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले. इससे अलग संकेत देना गैर ज़िम्मेदाराना, ग़लत है और हमारे बहादुर सशस्त्र बलों को जोखिम में डालता है.”

“रक्षा मंत्रालय किसी भी नए सबूत पर विचार करने के लिए तैयार है, इसमें कोई बाधा नहीं होगी. लेकिन इसके अभाव में, हम इस तरह की रिपोर्टिंग पर कड़ी आपत्ति जताते हैं.