किसी देश में शांतिरक्षकों को भेजने का फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद करती है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पर इस अभियान के लिए विस्तारपूर्वक रणनीति बनाने और उसे लागू करने की जिम्मेदारी होती है। वे आम तौर पर अभियान के लिए हजारों कर्मियों को भेजते हैं।
ब्रैडफोर्ड: कांगों में हिंसक प्रदर्शन के दौरान दो भारतीय शांति सैनिकों की मौत के बाद से संयुक्त राष्ट्र शांति सेना काफी चर्चा में है। शांति सेना संयुक्त राष्ट्र का एक ऐसा अंग है जिसे हिंसाग्रस्त देशों में शांति बहाल करने के लिए तैनात किया जाता है। इसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के सैनिक, पुलिस और आम नागरिक शामिल होते हैं। यह उन इलाकों में तैनात किए जाते हैं जहां कोई अन्य देश या संस्था शांति स्थापित नहीं कर सकती है। संयुक्त राष्ट्र के शांतिरक्षा अभियानों का उद्देश्य संघर्ष प्रभावित देशों में सतत सुरक्षा और शांति स्थापित करना है। हालांकि, इसके लिए उन्हें जटिल अंतरराष्ट्रीय राजनीति, संसाधनों और अपने अभियान के प्रबंधन की चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का उद्देश्य क्या है
शीत युद्ध के बाद से संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा अभियानों को युद्ध को जल्द खत्म करने, नागरिकों की रक्षा करने तथा दीर्घकालीन शांति एवं सुरक्षा को समर्थन देने के उद्देश्य से तैयार किया गया। इसके लिए शांति समझौतों को लागू करने में सैन्य कार्रवाई और कूटनीति की आवश्यकता होती है। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा अभियानों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग कम हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय तनाव जैसी चुनौतियां बढ़ रही हैं। हाल के हफ्तों में कांगो गणरज्य में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों के खिलाफ प्रदर्शनों में हिंसा भड़क उठी और कई लोगों को जान गंवानी पड़ी।
1991 में लगातार मिशन को अंजाम दे रही है शांति सेना
शांति रक्षा अभियानों के 1991 से 2011 के बीच के अनुभव दिखाते हैं कि सफलता के लिए उन्हें युद्ध से देशों में पैदा हो रहे व्यापक मुद्दों से निपटने की आवश्यकता होती है। इन मुद्दों में पुलिस, न्याय और सशस्त्र समूहों का निरस्त्रीकरण शामिल है ताकि संघर्ष के बाद वैध और स्थायी सरकार बनायी जा सके, शरणार्थी लौट सकें, महिलाओं को सुरक्षा दी जाए और सशक्त बनाया जा सके तथा रोजगारों का सृजन किया जा सकें।
सुरक्षा परिषद करती है शांति सेना को भेजने का फैसला
किसी देश में शांतिरक्षकों को भेजने का फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद करती है और फिर संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पर इस अभियान के लिए विस्तारपूर्वक रणनीति बनाने तथा उसे लागू करने की जिम्मेदारी होती है। वे आम तौर पर अभियान के लिए हजारों कर्मियों को भेजते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के सैन्य कर्मी होते हैं शामिल
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से सैन्य तथा पुलिस कर्मियों के रूप में योगदान देने का अनुरोध किया जाता है, जिसके लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र निधि से वेतन दिया जाता है। यह कई विकासशील देशों की सशस्त्र सेनाओं के लिए आय का प्रमुख स्रोत है। अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस जैसे अन्य देश अपनी अलग सशस्त्र सेनाएं भी भेज सकते हैं। ये बल संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों का समर्थन करते हैं।
संगठनात्मक चुनौतियां
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय तथा स्थानीय एजेंसियों ने प्रत्येक मिशन के मुद्दों से निपटने के लिए कई कार्यक्रम बनाए हैं। इसी तरह राष्ट्र सरकारों और अंतरराष्ट्रीय गैर लाभकारी संगठनों (एनजीओ) ने अपने कार्यक्रम बनाए हैं। इसमें सैकड़ों संगठन संयुक्त राष्ट्र मिशनों में योगदान देने के लिए हजारों कर्मियों और स्थानीय कर्मियों को जोड़ सकते हैं लेकिन अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर। यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र का इस जटिल शांति रक्षा प्रक्रिया का समन्वय एक वास्तविकता से ज्यादा एक आकांक्षा है। प्रत्येक मिशन की अगुवाई करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के एक उच्च प्रतिनिधि को नियुक्त किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के पास अधिकारों की कमी
ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जब संयुक्त राष्ट्र मिशन भ्रष्टाचार पर ज्यादा कुछ करते दिखायी नहीं दिए। अन्य मामलों में संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षकों ने हिंसा से नागरिकों की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाया जैसे कि दक्षिण सूडान। संयुक्त राष्ट्र के कर्मियों का अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए यौन शोषण की घटनाओं से भी नाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के लिए पर्याप्त अधिकार न होने के कारण इन समस्याओं से निपटना मुश्किल है।
समर्थन कम होना
संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग 2011 के बाद से कम हो गया है। भारत और चीन जैसे कुछ प्रभावशाली देश संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा अभियानों के वृहद रुख को लेकर उदासीन हैं। पश्चिमी देशों से भी पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है खासतौर से ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिका की नीति तथा वित्त पोषण में बदलाव आने के बाद से।