अनोखा मंदिर जहां देवी की आराधना करने आता है भालू का पूरा परिवार! मां की आरती के साथ लेता है प्रसाद

भालू किसी को नुकासन नहीं पहुंचाते और आरती के बाद जंगल में लौट जाते हैं. (फोटो: Twitter/ranvijayT90)

भालू किसी को नुकासन नहीं पहुंचाते और आरती के बाद जंगल में लौट जाते हैं.

नवरात्रि (Navratri) पावन पर्व देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. चारों ओर देवी गीत सुनाई दे रहे हैं और लोग देवी की आराधना में लगे हैं. मंदिरों में श्रद्धालुओं की भी भारी भीड़ देखने को मिल रही है. पर शायद ऐसा लगता है कि देवी के श्रद्धालुओं में सिर्फ इंसान ही नहीं, जानवर भी शामिल हैं. आप सोचेंगे कि ये कैसे संभव है. दरअसल, हम छत्तीसगढ़ के एक मंदिर (Chhattisgarh Chandi Devi temple) के बारे में बात कर रहे हैं जहां देवी के मंदिर में हर दिन दर्शन करने के लिए भालू (Bear temple in Chhattisgarh) का पूरा परिवार आता है.

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव (Ghunchapali, Mahasamund) में चंडी देवी का मंदिर (Chandi devi mandir) है जिसमें लोगों की काफी आस्था है. लोगों का दावा है कि ये मंदिर करीब 150 साल पुराना है. पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है मगर सबसे खास भक्तों में भालू (Bears visit devi temple) शामिल हैं. जी हां, इस मंदिर में माता का दर्शन करने भालू आते हैं. हैरानी इस बात की है कि भालू किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते और चुपचाप दर्शन कर के चले जाते हैं.

chhattisgarh chandi devi temple 1

भालुओं ने कभी नहीं पहुंचाया किसी को नुकसान
रिपोर्ट्स की मानें तो भालू आरती के वक्त आते हैं और माता की मूर्ति की परिक्रमा भी करते हैं. उसके बाद वो प्रसाद भी लेते हैं. कई बार तो पुजारी अपने हाथों से उन्हें प्रसाद खिला देते हैं. जो लोग इस मंदिर में दर्शन करने गए हैं, उनका दावा है कि भालू मंदिर में ऐसे पेश आते हैं जैसे वो कोई पालतू जानवर हों. उनका व्यवहार बहुत सरल और सीधा-सादा होता है. प्रसाद लेकर वो जंगल की ओर दोबारा लौट जाते हैं.

तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध था मंदिर
ग्रामीणों में मान्यता है कि भालू जामवंत के परिवार का हैं और वो देवी के भक्त हैं इसलिए वहां आते हैं. निवासियों का ये भी कहना है कि उन्होंने आज तक किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया है. आपको बता दें कि पुराने वक्त में ये मंदिर तंत्र साधना के लिए जाना जाता था. यहां साधु-महात्मा का डेरा था जो तंत्र साधना करते थे, मगर 1950-1951 के वक्त ये मंदिर आम जनता के लिए खोल दिया गया. इस मंदिर में निर्माण कार्य कई बार हुआ है क्योंकि लोगों का दावा है कि देवी की मूर्ति अपने आप बढ़ती जा रही है.