लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सिर्फ 6 विधायकों वाली पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर की जितनी चर्चा होती रहती है उतनी तो बड़ी-बड़ी पार्टियों की भी नहीं हो रही है. यूपी की राजनीति को ओपी राजभर ने चकरघिन्नी बना रखा है. इसका कारण ये है कि वह सबके साथ भी हैं
और सबके खिलाफ भी. पहले भाजपा के साथ, फिर उससे दूरी और सपा के साथ गठबंधन और फिर से सपा से दूरी और भाजपा से नजदीकी. उनके इसी व्यवहार के चलते सूबे में ये चर्चा चलती रहती है कि क्या ओपी राजभर पलटूराम हैं? लोग कहते मिल जाएंगे कि इनका क्या ऐतबार?
आइये जानते हैं कि ओपी राजभर ने कब-कब किस-किस पार्टी के साथ कैसा कैसा गठबंधन किया है. शुरू-शुरू में वह कांशीराम के साथ राजनीति किया करते थे. मायावती काल में बसपा छोड़कर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बना ली. चुनाव भी लड़ते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओपी राजभर को साथ लिया और वह पहली बार विधायक बने. योगी सरकार में उन्हें पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यांग कल्याण और जन विकास मंत्री बनाया गया. कुछ महीनों बाद भाजपा से उनका मन भर गया और उन्होंने गठबंधन तोड़ लिया. 2022 के विधानसभा चुनाव वह अखिलेश यादव के साथ लड़े. खुद भी जीते और उनके और 5 विधायक भी जीते, लेकिन लगता है अब उन्हें अखिलेश यादव का साथ पसंद नहीं आ रहा है.
अखिलेश के खिलाफ बयानबाजी
अखिलेश यादव के खिलाफ वे सार्वजनिक रूप से बयानबाजी कर रहे हैं. अब फिर से उनकी भाजपा से नजदीकी की खबरें आ रही हैं. हालांकि राजभर ने सपा के साथ गठबंधन नहीं तोड़ा है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू जब लखनऊ आयी थीं तो उनकी शान में दिए गए डिनर में राजभर पहुंचे थे. यानी पहले बसपा, उसके बाद भाजपा, फिर सपा और अब एक बार भाजपा से नजदीकी. इन्हीं वजहों से उन्हें पलटूराम का नाम दिया जाने लगा है. लेकिन क्या ऐसी राजनीति सिर्फ राजभर कर रहे हैं? जी नहीं, किसी भी पार्टी का दामन ऐसी राजनीति से खाली नहीं है.
कब किस पार्टी से किया गठबंधन
सबसे पहले बात सपा की. 1993 में मुलायम सिंह बसपा से गठबंधन कर चुके हैं. इसी दौर में नारा लगा था कि मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गये जय श्रीराम. 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव कांग्रेस से गठबंधन कर चुके हैं. तब नारा दिया गया था यूपी के दो लड़के. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा का बसपा से गठबंधन था. पहली बार मायावती और मुलायम सिंह एक साथ एक मंच पर नजर आए थे और तो और मुलायम सिंह भाजपा के दिग्गज पूर्व सीएम कल्याण सिंह से भी गठबंधन कर चुके हैं. दोनों आगरा में एक मंच पर नजर आये थे. ये अलग बात है कि तब कल्याण सिंह भाजपा में नहीं थे. उन्होंने अपनी अलग जल क्रांति पार्टी बनायी थी. यानी ऐसी कोई पार्टी नहीं रही जिससे सपा ने गठबंधन न किया हो.
कब किया बसपा से गठबंधन
अब बात बसपा की. बसपा 1993 और 2019 में सपा के साथ गठबंधन कर चुकी है. 1996 में बसपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन था. भाजपा की मदद से मायावती कई बार सरकार बना चुकी हैं. यानी इस खेल में बसपा भी पीछे नहीं है.
जानें भाजपा के साथ कब किया गठबंधन
अब बात भाजपा की. भाजपा उसी निषाद पार्टी के साथ गठबंधन में है जिस निषाद पार्टी ने 2018 में गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में उसे मात दी थी. योगी सरकार में मंत्री संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद सपा के साथ मिलकर भाजपा को हरा चुके हैं. भाजपा का ओपी राजभर से भी गठबंधन था. फिर वो टूट गया और अब फिर से नजदीकियां बढ़ रही हैं. राष्ट्रीय लोकदल के साथ भाजपा केंद्र में सरकार चला चुकी है लेकिन, अब यूपी में उससे संबंध विच्छेद है. कश्मीर की जिस पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की भाजपा हमेशा आलोचना करती थी उसी के साथ कश्मीर में सरकार चला चुकी है. नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री थे. थोड़ी बात कांग्रेस की भी. कांग्रेस सपा, बसपा और रालोद के साथ गठबंधन में रही है. भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार चला चुकी है.
ऐसा सिर्फ यूपी में ही नहीं है. बिहार से लेकर दक्षिण भारत तक के राज्यों में ऐसे गठबंधन आसानी से नजर आ जाएंगे. तो फिर सवाल उठता है कि सिर्फ ओपी राजभर पर ही पलटूराम होने का दोष क्यों?