उषा मेहता: वो स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान चलाया था रेडियो प्रसारण

Indiatimes

साल 1942 में जब गांधी जी ने देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बजाया तो पूरा देश उनके साथ चल पड़ा. आंदोलन को रोकने के लिए अंग्रेजों ने 9 अगस्त 1942 को गांधी समेत अन्य कांग्रेसियों को जेल में डाल दिया और भारत में चलने वाले सभी रेडियो स्टेशन को बंद करा दिया. उस वक्त नरीमन प्रिंटर और नानक मोटवानी की मदद से रेडियो प्रसारण किया गया और कांग्रेस के गुप्त रेडियो प्रसारण में पहली आवाज स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता (Usha Mehta) की थी.

बचपन से ही गांधी के विचारों से रही प्रभावित

 Indiatimes.comIndiatimes.com

25 मार्च 1920 को गुजरात के सूरत में जन्मी उषा मेहता जब छोटी थी तब उनके गांव में एक बार गांधी जी (mahtama gandhi) की सभा हुई और वह गांधी के विचारों और फिलोस्फी से इतना प्रभावित हुई कि उनके मन में भी क्रांति की ज्वाला भड़क गई और उन्होंने सभी सुख-सुविधाएं त्यागते हुए अपने पिता से कहा कि वह आगे की पढ़ाई अभी नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें देश को आजाद कराने के लिए बाहर आना होगा.

8 साल की उम्र में साइमन के विरोध आंदोलन में लिया भाग

 BBCBBC

इसके बाद उषा मेहता ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे कैंप में जाकर खादी कपड़ा बनाना सीखा और उसे पहना भी. जब उषा केवल 8 साल की थी तब उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में हिस्सा लिया था. उनका पहला नारा था साइमन वापस जाओ. साल 1930 में उनके पिता जब जज के पद से रिटायर हो गए तो उनकी पूरी फैमिली बंबई आ गई. यहां पर उषा ने आगे की पढ़ाई शुरू की.

यहां पर भी उषा दोस्तों से मिलने और अपने रिश्तेदारों को चिट्ठी भेजने के बहाने मारकर क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल होने लगी. उन्होंने दर्शनशास्त्र से स्नातक किया और कानून की पढ़ाई शुरू कर दी. जब अंग्रेजों ने भारत में विभाजन की बात कही तब देशभर में तनाव का माहौल पैदा हो गया. उस वक्त बापू ने ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया इसमें पूरे देश में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.

गांधी जी के जेल जाने पर चलाया गुप्त रोडियो प्रसारण

 Daily AdventDaily Advent

अंग्रेजी हुकूमत ने 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी समेत सभी कांग्रेसियों को जेल में बंद कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने भारत में चलने वाले सभी रेडियो ब्रॉडकास्टिंग लाइसेंस को भी रद्द कर दिया. फिर कुछ कांग्रेसियों ने नरीमन प्रिंटर और नानक मोटवानी की मदद से एक गुप्त रेडियो का प्रसारण शुरू किया.

सबसे पहला गुप्त रेडियो प्रसारण 27 अगस्त 1942 को बॉम्बे चौपाटी में सीव्यू बिल्डिंग के सबसे ऊपर वाली मंजिल पर एक ट्रांसमीटर के साथ किया गया. इस पहले प्रसारण में उषा मेहता देश की आवाज बनी. उन्होंने कहा, “आप सुन रहे हैं 41.78 मीटर बैंड जिसे एक अनजान जगह से प्रसारित किया जा रहा है. यह इंडियन नेशनल कांग्रेस का रेडियो है.”

इस रेडियो प्रसारण में भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर देश में ब्रिटिश सरकार की करतूतों के बारे में बताया जाने लगा था. इस गुप्त रेडियो प्रसारण की जगह को हर दिन बदल दिाय जाता था ताकि ब्रिटिश हुकूमत उन तक पहुंच ना पाए. इस गुप्त रेडियो का ट्रांसमिटर पहले 10 किलोवॉट था फिर उसे 100 किलोवॉट कर दिया गया. अंग्रेजों से बचने के लिए 3 महीने तक चलने वाले गुप्त रेडियो स्टेशन को 7 अलग-अलग जगहों से प्रसारित किया गया.

4 साल जेल में काटी सजा

 Free Press JournalFree Press Journal

इस गुप्त रेडियो प्रसारण में मेहता के साथ विठ्टल भाई झावेरी, चंद्रकांत झावेरी और बबलूभाई ठक्कर भी शामिल थे. हालांकि 88 दिनों के प्रसारण के बाद पुलिस ने उषा मेहता समेत तीन और लोगं को पकड़ लिया और उन्हें 4 साल की सजा सुनाते हुए जेल में बंद कर दिया. जेल में उनकी सेहत खराब होने लगी और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा. किसी तरह 4 साल की सजा खत्म हुई और वह 1946 को जेल से रिहा हुई.

1946 में जेल से रिहा होने के बाद उषा मेहता ने पढ़ाई जारी रखी और उन्होने पीएचडी पूरी की. भारत की आजादी के लिए उनका संघर्ष अंतिम सांस तक चलता रहा. 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होने के बाद वह महिला उत्थान और समाज की उन्नति में लग गई.  इस क्रांग्रेस नेता को भारत सरकार ने 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया और 11 अगस्त 2000 को उषा मेहता इस दुनिया को अलविदा कह दिया.