उत्तरकाशी के द्रौपदी का डांडा में आए हिमस्खलन में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में ट्रेनिंग ले रहे 41 पर्वतारोहियों में से 14 को रेस्क्यू कर लिया गया है। सबसे दुखद खबर यह है कि एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा चुकीं युवा पर्वतारोही सविता कंसवाल की मौत हो गई है।
नई दिल्ली/उत्तरकाशी: हे द्रौपदा! उनकी रक्षा करना। दिल से यही निकल रहा है। द्रौपदी के डांडा से चार की मौत की खबर आ चुकी है। इसमें उत्तराखंड की बेहद होनहार और साहसी बेटी सविता कंसवाल भी शामिल है। वह कुछ महीने पहले ही एवरेस्ट और मकालू को 16 दिन में लांघ आई थी। 14 रेस्क्यू कर लिए गए हैं, लेकिन 26 पर्वतारोही अभी भी लापता हैं। वे किन हालात में हैं, कुछ पता नहीं है। बर्फ के तूफान में फंसे इन सभी के लिए दिल धड़क रहा है। माना जा रहा है ये सभी किसी क्रेवास यानी की बर्फ की दरारों में फंसे हुए हैं। क्रेवास हिमालय की चोटियों में मौत के अंधे कुएं जैसे होते हैं। बड़ा से बड़ा पर्वतारोही इनसे डरता है। गहरी दरार के ऊपर बर्फ की एक कच्ची सी परत। पैर पड़ा नहीं कि पर्वतारोही उसमें समा जाता है। इसीलिए सभी रस्सी से बंधकर चलते हैं। उम्मीद यही है कि यह दरार बहुत गहरी न हो। सभी सुरक्षित हों। वे निकल जाएं। द्रौपदा उनकी रक्षा कर रही होंगी, ऐसा विश्वास है।
द्रौपदी का यह कैसा रौद्र रूप!
उत्तराखंड के डांडा-कांठ्यों में पांडव आज भी हैं! लोकविश्वास में। जागरों, पांडव नृत्यों में (देवगान) में नृत्य करते हुए। द्रौपदा भी नाचती हैं। पूजी जाती हैं। उन्हीं के नाम पर द्रौपदा का डांडा है। डांडा यानी चोटी। द्रौपदी की चोटी। उत्तरकाशी से करीब 70 किलोमीटर दूर साढ़े 18 हजार फीट ऊंची।धवल। चांदी सी चमकती हुई। अपने पास बुलाती हुई। मान्यता है कि पांडवों के साथ स्वर्गारोहण कर रहीं द्रौपदा ने उत्तरकाशी के इसी पहाड़ पर अपना शरीर त्यागा था। वह यहां पूजी जाती हैं। जान हथेली पर रखकर इन हिमशिखरों पर चढ़ने वाले भटवाड़ी, भुक्की गांव से होकर ही शीश झुकाते हुए द्रौपदा के डांडा पर बढ़ते हैं। उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) के अडवांस्ड कोर्स के 41 ट्रेनीज का ग्रुप यहीं से आगे बढ़ा था। माहिर पर्वतारोही सविता कंसवाल इस ग्रुप में बतौर इंस्ट्रक्टर शामिल थीं।