VIDEO: कपड़े रफू करने की प्राचीन जापानी कला, सिलने के बाद गायब हो जाता है कटे-फटे का निशान!

पहले के वक्त में सिलाई करना महिलाओं को घर में ही सिखाया जाता था जिससे वो अपने कई प्रकार के कपड़ों को खुद ही सिल लें, मगर धीरे-धीरे ये कला गायब होती जा रही है. अब ना ही औरतों को और ना ही पुरुषों को ये कला सिखाई जाती है जिससे हर कोई दर्जी के पास भागता है.

कपड़ों को ऐसे सिला जाता है जैसे लगता है उनपर जादू कर दिया गया हो. (फोटो: Odditycentral.com)

कपड़ों को सिलने या उन्हें सुधारने की प्रक्रिया यूं तो एक जैसी ही होती है मगर दुनिया के कई देशों में, जहां सालों से सिलाई की जाती है, वहां ऐसी भी कलाएं हैं जो बेहद प्राचीन हैं. ऐसी ही एक कला जापान में है जिसके जरिए कपड़ों को रफू (Japanese technique to mend clothes) किया जाता है.

काकेटसुगी (Kaketsugi Japan cloth mending technique), कपड़ा रफू (clothes mending trick) करने की एक कला है. इस कला के तहत कटे-फटे कपड़ों को इस तरह से सुधारा जाता है कि बनने के बाद पता ही नहीं चलता कि वस्त्र पर छेद भी था. आज के वक्त में चीजें इस्तेमाल कर फेंकने वाली हो चुकी हैं. जैसे ही कोई टीशर्ट या जीन्स थोड़ी सी भी फटी, उसे तुरंत फेंक दिया जाता है. इस कारण से सुई और धागे को भी लोग घरों में नहीं रखते. तुरंत नया कपड़ा खरीद लेते हैं. मगर कई कपड़े ऐसे होते हैं जो बेहद खास होते हैं. कई कपड़ों से आपकी यादें जुड़ी होती हैं तो उन्हें यूं ही फेंक देना मुनासिब नहीं होता. इस वजह से जापानी लोग आज भी काकेटसुगी कला को जिंदा रखे हुए हैं.

इस तरह कपड़ों को सिलते हैं दर्जी
जापान में काकेटसुगी का इस्तेमाल करने वाले कई लोग हैं. ये प्रोसेस काफी लंबा और बोरिंग होता है मगर इसके बाद कपड़ों का लुक पूरी तरह बदल जाता है. कपड़े में से एक छोटा टुकड़ा सबसे पहले ऐसी जगह से निकाला जाता है जहां से काटने पर उससे कोई नुकसान ना हो. इस पीस को ब्रश कर के एसिटोन से धुला जाता है जिससे धागे आसानी से अलग-अलग हो जाएं. जब एक-एक धागा अलग हो जाता है तो फिर उसे फटी हुई जगह पर सिल दिया जाता है. सिलने के बाद उस जगह को इस्त्री किया जाता है. इसके बाद वो छेद बिल्कुल भी नजर नहीं आता.

यूट्यूब पर इस कारीगरी से जुड़ा वीडियो वायरल
यूट्यूब चैनल योशिको गोटो पर कुछ साल पहले एक वीडियो पोस्ट किया गया था जिसमें इस अनोखी कला को दिखाया गया है. लोगों ने वीडियो पर कमेंट कर दर्जी को सर्जन की उपाधी दे दी जो इंसानों की नहीं, कपड़ों की सर्जरी करता है. कई लोगों ने ये भी कहा कि बदलते फैशन और समाज के साथ ऐसी अनोखी कला गुम होती जा रही है.