ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे का वीडियो लीक, क्या केस पर पड़ेगा असर?

ज्ञानवापी मस्जिद

इमेज स्रोत,SANJAY KANOJIA/AFP VIA GETTY IMAGES

सोमवार शाम को ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे और उसकी वीडियोग्राफ़ी का फुटेज़ लीक हो गया. ये वीडियो वायरल हो गया और इसे कई सारे न्यूज़ चैनलों ने दिखाया.

कुछ टीवी चैनलों ने एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह की रिपोर्ट के आधार पर चीज़ों को वीडियो में दर्शाने की कोशिश भी की.

ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे, उसकी वीडियोग्राफ़ी और उससे जुड़े तमाम वीडियो अदालत की कार्यवाही के गोपनीय साक्ष्य हैं जो अब बनारस की ज़िला अदालत को एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने सुपुर्द कर दिए हैं.

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दरअसल सोमवार शाम को फुटेज़ लीक होने के चंद मिनटों पहले ही इस मामले में महिला याचिकाकर्ताओं और अंजुमन इन्तेज़ामियां मसाजिद ने सर्वे की वीडियो की कॉपी मांगते हए अदालत में शपथपत्र दिया था कि वह यह वीडियो इसलिए मांग रहे हैं ताकि वो इस मुक़दमे में आवश्यकता पड़ने पर अपने वकील को दिखाकर आपत्ति दाख़िल करेंगे.

इस शपथपत्र में सभी ने लिखा कि वे इस बात की अंडरटेकिंग दे रहे हैं कि सर्वे के वीडियो की नकल का कहीं दुरुपयोग नहीं करेंगे. इस शर्त पर दोनों वादी और प्रतिवादी पक्ष को वीडियो की नक़ल देने का आदेश हुआ.

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महिला याचिकाकर्ता लौटाना चाहती हैं फुटेज़

जैसे ही वीडियो लीक हुआ तो उसके चंद घंटों बाद हिन्दू पक्षकारों ने इसे कोर्ट को लौटाने की बात की.

वीडियो और साक्ष्यों के सील्ड पैकेट को लौटाने की बात करते हुए वकील सुधीर त्रिपाठी ने मीडिया को बताया, “इस पैकेट में सर्वे कमीशन की कार्यवाही की वीडियोग्राफ़ी का चिप या सीडी है. यह हमें न्यायालय द्वारा शुल्क देकर मिला है. लेकिन कोर्ट ने अंडरटेकिंग देकर दिया था कि यह किसी को सार्वजनिक नहीं करेंगे. सिर्फ़ अपने लिए इस्तेमाल करेंगे. शाम 6:30 बजे वो कोर्ट के कैंपस से लेकर बाहर भी नहीं निकल पाईं और यह मीडिया में चलना शुरू हो गया. अभी यह लिफ़ाफ़ा खुला ही नहीं. तो याचिकाकर्ताओं पर आरोप लग सकता है कि आपने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है, इसलिए न्यायालय के संज्ञान के लिए हम इसको वापस कर रहे हैं, इस मांग के साथ की जिसने लीक किया है उसे दंडित किया जाए.”

लिफ़ाफ़े दिखाते हुए वकील सुधीर त्रिपाठी ने कहा की वो सील्ड है और पूरी तरह से पैक है और खुले ही नहीं हैं.

इस बारे में और जानकारी के लिए बीबीसी ने हिन्दू पक्ष के प्रमुख वकील विष्णु जैन और सुधीर त्रिपाठी से भी बात करने की कोशिश की लेकिन दोनों से ही फ़ोन पर संपर्क नहीं हो सका. विष्णु जैन की सहयोगी वकील रंजना अग्निहोत्री ने मस्जिद के सर्वे के वीडियो के लीक होने की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

वो कहती हैं, “कोर्ट के आदेश का पालन होना चाहिए. लेकिन यह कौन षड्यंत्रकारी है जिसने यह हरकत की है, उसका भी पर्दाफ़ाश होने चाहिए. हम तो इसे कोर्ट को दे देंगे, और कोर्ट जो चाहे वो करे. यह तो कोर्ट की संपत्ति थी. कोर्ट के लम्बे हाथ हैं. कोर्ट जो भी चाहे करे.”

लेकिन क्या इससे अदालत की कार्यवाही पर असर पड़ेगा?

रंजना अग्निहोत्री का मानना है, “हमारे हिसाब से कोर्ट की कार्यवाही पर इसका कोई असर नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन जो अपराधी हैं जो षडयंत्रकारी हैं, उनका पता लगाना ज़रूरी है.”

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वीडियो लीक पर मस्जिद समिति के वकीलों की राय

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ज्ञानवापी मस्जिद समिति अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद ने भी वीडियो की नक़ल मांगी थी और साथ ही शपथपत्र भी दिया. लेकिन उनके वकीलों ने सोमवार की शाम सर्वे वीडियो की नक़ल नहीं ली क्योंकि उनके मुताबिक़ वो अदालती कामकाज में व्यस्त थे.

इस वीडियो के लीक के बारे में सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद समिति के वकील फ़ुजैल अयूबी का कहना है, “सुप्रीम कोर्ट से साफ़ निर्देश थे कि इस मामले पर कोई सनसनी नहीं होगी और मीडिया को कुछ लीक नहीं किया जाएगा और हमें इससे बचना है. जब एक बात सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कही है तो वो सभी पक्षों को देखना चाहिए था.”

फुटेज़ की नक़ल मांगने पर फ़ुजैल अयूबी सवाल उठाते हैं, “जब आपके सामने वीडियोग्राफ़ी हुई है तो फिर आपको उसकी नक़ल की क्या ज़रुरत है? ऑब्जेक्शन के लिए लेना है वो ठीक है. लेकिन उसका नतीजा यह हुआ कि वो लीक हो गया.”

सवाल यह है कि एक हाई प्रोफ़ाइल मामले में, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट तक कर चुका है उसमें क्या इस कदर रिपोर्ट और वीडियो लीक होते पहले कभी देखा गया है?

बनारस की अदालत में मस्जिद समिति के वकील अभय यादव कहते हैं, “मैंने कभी ऐसा होते कभी नहीं देखा है. मेरी जानकारी में यह पहली बार हुआ है. यह इतना संवेदनशील मामला है. पूरे देश की निगाहें इस पर लगी हुई हैं, मीडिया में कवरेज हो रहा है. ऐसे केस में तो गोपनीय होना बहुत ज़रूरी है. और यह हम सब की ड्यूटी है कि कुछ लीक ना हो.”

तो क्या इस लीक के बाद मुस्लिम पक्षकार क्या सर्वे के वीडियो की नक़ल क्या अदालत से लेंगे ? मस्जिद समिति के वकील अभय यादव कहते हैं, “यह बहुत संगीन मामला है. हम लेकर क्या करेंगे. अब तो हम पूरी तरह से कमिश्नर की रिपोर्ट को ही चुनौती देंगे. और कमीशन की कार्यवाही को ख़ारिज करने की अर्ज़ी देंगे.”

अभय यादव का कहना है कि उन्हें पहले से इस बात की आशंका थी. वो कहते हैं, “हमको तो शुरू से ही संदेहास्पद लग रहा था. प्रारम्भ से ही मैंने अर्ज़ी दे दी थी कि अधिवक्ता कमिश्नर अजय मिश्र को सर्वे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. फिर भी कोर्ट ने उन्हें रखा. और उनके साथ दो वकीलों को रख दिया. मेरी संदेह अब विश्वास में बदल गया है.”

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मीडिया की भूमिका पर सवाल

देश के कई सारे न्यूज़ चैनल ने इस लीक हुए वीडियो प्राइम टाइम में दिखाया और उस पर डिबेट भी किए.

मीडिया की भूमिका के बारे में हैदराबाद की नेशनल एकेडमी ऑफ़ लीगल स्टडीज़ एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, “मीडिया की ड्यूटी है कि कोर्ट की कार्यवाही की सच्चाई को रिपोर्ट करे. मीडिया को अधिवक्ता कमिश्नर की गोपनीय रिपोर्ट नहीं ब्रॉडकास्ट करना चाहिए क्योंकि वो कमिश्नर कोर्ट को सौंपते हैं. ऐसा तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी नहीं जाती है और उस वीडियो को कोर्ट में दिखाया नहीं जाता है.”

हमने हिन्दू पक्ष की वकील रंजना अग्निहोत्री को बताया इस मामले में वकील हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन इस लीक हुए फुटेज़ पर आधारित एक टीवी डिबेट में हिस्सा ले रहे थे.

ऐसे संवेदनशील मामले में मीडिया की भूमिका के बारे में रंजना अग्निहोत्री कहती हैं, “मीडिया के लोगों ने जो दिखाया है, उन्हें कोर्ट के आदेश का सम्मान करना चाहिए था, अवहेलना नहीं करनी चाहिए थी. अब इसमें लोग सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. और ज़िला अदालत भी एक्शन ले सकती है. यह संवेदनशील है, अति संवेदनशील है.”

मीडिया की भूमिका के बारे में मस्जिद समिति के वकील अभय यादव कहते हैं, “मीडिया को भी यह बात मालूम थी कि ऐसे वीडियो को नहीं दिखाना है. अगर मीडिया के पास यह आया भी, तब भी मीडिया को इसे दिखाना नहीं चाहिए था.”

वीडियो के लीक होने से अदालती कार्यवाही में दख़ल के बारे में अभय यादव कहते हैं, “हमें यह लगता है कि यह लोग जो है, इस लड़ाई को कोर्ट के बहार ले जाना चाहते हैं. तभी यह सब दिखाया जा रहा है. कोर्ट के साथ-साथ पैरेलल मीडिया की कोर्ट चल रही है.”

सवाल यह भी उठता है कि क्या ज्ञानवापी मस्जिद का वीडियो जनहित का तर्क देकर मीडिया में दिखाया जा सकता है?

इस बारे में मस्जिद समिति के वकील अभय नाथ यादव कहते हैं, “यह जनहित में दिखाना बिकुल ग़लत है क्योंकि कोर्ट ने उस पर पाबंदी लगाई है. क्या मीडिया तय करेगी की यह दिखाना जनहित में है या नहीं? आप जनहित की बात करते हैं, लेकिन आपको जनहित तो दोनों पक्षों का देखना चाहिए ना? मीडिया या कोई भी व्यक्ति स्वयं कैसे आधारित कर देगा की मिली आकृति शिवलिंग ही है? यह सब जांच का विषय हैं.”

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वीडियो लीक होना क्या अदालत की अवमानना है?

क़ानून के जानकार प्रोफ़ेसर फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं कि, “लीक तो नहीं होना चाहिए क्योंकि जो चीज़ कोर्ट के सामने रखी गयी है वो पब्लिक में नहीं आनी चाहिए. कोर्ट शायद उनको इसमें फटकार लगाएगा.”

तो क्या यह कोर्ट की अवमानना का मामला बनता है?

प्रोफ़ेसर फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, “यह तो कोर्ट पर निर्भर करता है कि वो इस लीक को कैसे इसे देखती है. आम तौर पर कंटेम्प्ट की पावर का इस्तेमाल तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट करती हैं. जिसे हम क़ानूनी तौर पर कोर्ट ऑफ़ रिकॉर्ड कहते हैं.”

क्या इस मामले में सुप्रीम कोर्ट दख़ल दे सकता है?

इसके बारे में प्रोफ़ेसर फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, “मीडिया जैसे इसमें होने वाली पल पल की ख़बर दे रहा है, सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की कार्यवाही नहीं होती है. एक निचली अदालत में मामला चल रहा है उसे चलने दीजिए. अगर निचली अदालत का कोई फ़ैसला आएगा तो उस पर बहस होगी. सिविल प्रोसिडिंग्स हैं, पता नहीं कितने साल चलेगी यह.”

इस बारे में अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद के वकील अभय नाथ यादव कहते हैं, “अदालत इस लीक का स्वतःसंज्ञान ले सकती है. और अगर नहीं लेते हैं तो हम लिखित में आपत्ति देंगे ताकि हमारी आपत्ति फ़ाइल पर रहे. कोर्ट इसमें जांच बिठा सकती है, कोर्ट मजिस्ट्रेट से जांच करवा सकती है. अगर जांच में कोई दोषी पाया जाता है तो उसमें अदालत की अवमानना की कार्रवाई हो सकती है.”

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अभय यादव के मुताबिक़ कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट में जेल और जुर्माना दोनों हो सकते हैं.

क्या वीडियो लीक होकर वायरल होने से अदालती में चल रही सुनवाई पर कोई असर होगा?

इसके बारे में प्रोफ़ेसर फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, “सैद्धांतिक तौर पर जजों पर इसका कोई असर नहीं पड़ना चाहिए, नहीं पड़ता है.”

अब देखना यह है कि बनारस के ज़िला जज इस लीक से जुड़ी शिकायतों और मांगों को लेकर क्या आदेश करते है. फ़िलहाल इस मामले ज़िला जज इस पूरे मुक़दमे की मेनटेनेबिलिटी पर दोनों पक्षों की बहस सुन रहे थे और अब इस मामले की अगली सुनवाई 4 जुलाई को होने का आदेश है.