4 साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे बॉलीवुड के किंग खान शाहरूख ने पठान फिल्म से ऐसा धमाका किया कि लोग थिएटर आने को मजबूर हो गए। बीते 2 दिनों से देशभर के सारे थिएटर, मल्टीप्लेक्स हाउसफुल जा रहे हैं। लोग पठान के साथ खूब झूम रहे हैं। वहीं कोविड के बाद से बॉलीवुड में गायब हुई रंगत फिर लौट आई है।
चार साल के अंतराल पर आई शाहरुख की इस फिल्म का उनके फैंस ने जिस तरह से स्वागत किया, उससे एक बार फिर यह स्थापित हुआ कि बॉलिवुड में शाहरुख की बादशाहत का फिलहाल कोई तोड़ नहीं है। हॉल के बाहर टिकट न पा सकने वालों की मायूस भीड़ और थिएटरों के अंदर गानों पर नाचते-गाते लोगों की तस्वीरें और विडियो बता रहे हैं कि हिंदी फिल्म के जो दर्शक थिएटर में फिल्म देखना भूलते जा रहे थे, वे इस फिल्म का भरपूर मजा ले रहे हैं। यह फिल्म इंडस्ट्री के कोविड बाद के मायूसी भरे दौर से उबरने का संकेत है। थिएटरों को उनके दर्शक मिल चुके हैं। ऐसे दृश्य सिर्फ मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों के मल्टिप्लेक्सों में ही नहीं दिखे। यूपी और राजस्थान में बंद होने के कगार पर पहुंचे सिंगल स्क्रीन थिएटरों को भी इस फिल्म ने जैसे नई जिंदगी दे दी है।
सबसे बड़ी बात यह कि कैंसल कल्चर को भी इस फिल्म ने बड़ा झटका दिया है। पिछले कुछ समय से यह ट्रेंड सा बनता जा रहा था कि जब भी कोई नई फिल्म रिलीज होने को होती, किसी न किसी बहाने उसके बॉयकॉट की अपील की जाने लगती। ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसी बड़ी फिल्म के कम बिजनेस करने के पीछे इन अपीलों का भी असर माना गया। फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज निजी बातचीत में ही नहीं, सार्वजनिक रूप से भी इस ट्रेंड पर चिंता जताने लगे थे। इसे फिल्म इंडस्ट्री के ग्रोथ के लिए खतरा माना जा रहा था। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पार्टी के एक कार्यक्रम में फिल्मों पर उलटे-सीधे बयान देने वाले नेताओं पर नाराजगी जताई थी। इसके बावजूद ‘पठान’ के बॉयकॉट की अपीलें पूरी तरह नहीं थमीं। रिलीज के बाद भी कई शहरों में थिएटरों के सामने प्रदर्शन किए गए और स्क्रीनिंग को बाधित करने की कोशिश की गई। मगर फिल्म की अपार सफलता ने साबित किया कि विराट हिंदुस्तानी समाज की उदारता के सामने संकीर्णता दर्शाने वाली ये प्रवृत्तियां नगण्य ही हैं।