किसानों की स्थिति क्या है, यह किसी से नहीं छिपी है. लेकिन, झारखंड के देवरी के रहने वाले भागमनी तिर्की, उनके पति और गांव वालों ने साल 2018 में खेती-किसानी का तरीका बदला और अब उनकी आमदनी बढ़ी और जिंदगी की तस्वीर बदल गई.
ये सब हो पाया है बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (BAU) की वजह से. यूनिवर्सिटी ने इलाके में अलो वेरा की खेती शुरू की. ये खेती ट्राइबल सब प्लान के जरिए की जिसे फंड इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चर रिसर्च (ICAR) के फंड से किया.
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इस प्रोजेक्ट के जरिए एक्सपर्ट ये जानना चाह रहे थे कि क्या औषधीय पौधों की खेती से किसानों की आय बढ़ सकती है. यह राज्य के लिए अलग ही अनुभव है क्योंकि वहां ज्यादातर किसान परंपरागत खेती ही करते आ रहे हैं.
खेती के लिए ठीक है जगह
क्षेत्र का एग्रो-क्लाइमेटिक स्थित अलोवेरा की खेती के लिए ठीक है और जल्द ही किसानों की बेहतर आमदनी हो जा रही है. दूसरे किसानों को भी प्रेरित करने की कोशिश है कि वे भी इससे प्रभावित हों. देवरी को अलोवेरा गांव के तौर पर विकसित करने की कोशिश हो रही है.
तीन साल में बढ़ी आमदनी
न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बिरसा ओरियन कहते हैं, तीन साल पहले मैंने इसकी खेती शुरू की. इसके बाद मेरी अच्छी कमाई होने लगी. उनकी पत्नी का कहना है कि फूलगोभी, टमाटर और दूसरी खेती की जगह अलोवेरा से अच्छी कमाई हो पा रही है.
अलोवेरा की बढ़ी डिमांंड
अलोवेरा का काफी डिमांड है. उसकी पूर्ती नहीं हो पा रही है. कोविड के दौर में काफी चीजों की डिमांड घटी थी, लेकिन अलोवेरा की डिमांड काफी बढ़ी है. ऐसे में किसानों के लिए ये काफी फायदे का काम है.