Acharya Vinoba Bhave: ग्रेजुएशन के दौरान ही उनकी रुचि अध्यात्म की ओर बढ़ने लगी।
कॉलेज छोड़ा लेकिन पढ़ाई रही जारी
11 सितंबर 1895 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र) के गागोडे के परिवार के घर जन्मे आचार्य विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। उनके पिता नरहरि शंभू और मां रुक्मिणी देवी थीं। अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़े आचार्य पर उनकी मां का गहरा प्रभाव था। 1916 में उन्होंने महात्मा गांधी के कोचरब आश्रम में जाने के बाद 21 वर्ष की आयु में ही कॉलेज छोड़ दिया लेकिन पढ़ाई करनी नहीं छोड़ी। उन्होंने कॉलेज छोड़ने के बाद भी गीता, बाइबिल, कुरान, रामायण, अर्थशास्त्र आदि जैसी किताबों का साथ नहीं छोड़ा। ग्रेजुएशन के दौरान ही उनकी रुचि अध्यात्म की ओर बढ़ने लगी।
लिखने में थी रुचि
विनोबा भावे को लिखने में काफी दिलचस्पी थी जो हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत और गुजराती जैसी कई भाषाओं में महारत हासिल थी। वे गांधी जी से बेहद प्रभावित थे। जब उन्हें वर्धा आश्रम को संभालने की जिम्मेदारी दी गई उसी समय उन्होंने महाराष्ट्र धर्म के नाम से एक मासिक पत्रिका भी निकाली और वह मराठी में प्रकाशित होती थी। इसके अलावा आचार्य ने गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति जैसी कई महत्वपूर्ण किताबें भी लिखी।
भूदान आंदोलन
आजादी के बाद देश ने एक बड़ा विभाजन देखा जिसके कारण पूरे भारत में अशांति का माहौल था। इसी अशांति के दौरान आंध्र प्रदेश भूमिहर किसानों का आंदोलन चल रहा था। 18 अप्रैल 1951 को किसानों से मिलने के लिए नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। आंदोलन में सम्मिलित किसानों की मांग थी की उन्हें अपनी जीविका चलाने के लिए 80 एकड़ जमीन की मांग की थी।
किसानों ने भी उनसे कहा कि यदि उन्हें जमीन मिल जाए तो उनका गुजारा हो सकता है। आचार्य ने किसानों की मांग को जमींदारों के सामने रखा और उनकी बातों से प्रभावित होकर एक जमींदार ने अपनी 100 एकड़ जमीन दान करने का निर्णय लिया। इस घटना ने एक आंदोलन का रूप ले लिया और विनोबा भावे की अगुआई में यह 3 सालों तक चलता रहा। आंदोलन के दौरान उन्होंने कई जगहों पर यात्री की और गरीब किसानों के लिए 44 लाख एकड़ जमीन हासिल की।