डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में बॉलीवुड पर कटाक्ष करते हुए काफी कुछ कहा है। उन्होंने ये तक कह दिया कि ‘कुछ कुछ होता है’ जैसी फिल्मों ने बहुत कुछ बर्बाद किया है।
‘कश्मीर फाइल्स’ के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री कई मुद्दों पर खुलकर बातत करते हैं। वो अपने ट्विटर अकाउंट पर लगभग हर चीज के बारे में बोलते हैं। लेकिन इन सबसे हटकर विवेक बॉलीवुड में कई बातों को लेकर मुखर रहे हैं। हाल ही में विवेक ने बॉलीवुड के पतन पर अपने विचार बताए हैं और उन्होंने कहा कि शाहरुख खान जैसे सितारे और ‘कुछ कुछ होता है’, ‘दिल चाहता है’, और ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ जैसी फिल्में सिनेमा की परिभाषा को बदलने के लिए जिम्मेदार हैं।
साल 2000 के बाद सब बदल गया
‘ब्रूट’ से बात करते हुए विवेक (Vivek Agnihotri) ने दर्शकों के बॉलीवुड फिल्मों को ठुकराने के बारे में अपने विचार शेयर किए। निर्देशक ने कहा कि 2000 के बाद की फिल्में बदल गई हैं और उन्होंने अपनी फिल्मों में वास्तविक भारत को उजागर करना बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि पहले ऐसी फिल्में हुआ करती थीं जिनमें एक्टर कई सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ रहा होता है, जैसे जमींदार, भ्रष्ट पुलिस अधिकारी या लालची मिल मालिक।
‘कुछ कुछ होता है’ ने खराब किया फ्लो
उन्होंने आगे कहा कि धीरे-धीरे, फिल्म निर्माताओं और एक्टर्स ने सिनेमा में बदलाव लाना शुरू कर दिया है और यह वास्तव में सिनेमा के खिलाफ है। उन्होंने कहा, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे तक शाहरुख खान जाते हैं और कहते हैं कि मैं ट्रेडिशनल शादी करूंगा। फिर ‘कुछ कुछ होता है’ के बाद चीजें बदलने लगीं।’
ये असली भारत नहीं है..
विवेक ने आगे कहा, ‘बॉलीवुड संभालने वाले इन युवा लड़कों को विश्वास होने लगा कि वे बदल सकते हैं। चूंकि वे हिंदी नहीं जानते, इसलिए उन्होंने हिंग्लिश का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।’ उन्होंने आगे कहा, ‘दिल चाहता है की सफलता के साथ… या जो कुछ भी उन्होंने सोचा ‘यह भारत है। फिर जिंदगी ना मिलेगी दोबारा आई और लोगों को लगा कि ‘यह भारत है,’ लेकिन यह भारत नहीं है। धीरे-धीरे लोग बॉलीवुड से कटने लगे।’
विवेक की तीखी बातें
विवेक ने आगे कहा कि 2000 के बाद गीतकार, लेखक और निर्देशक हिंदी फिल्में बना रहे हैं, लेकिन उनका दिमाग लंदन या न्यूयॉर्क में फंसा हुआ है, इसलिए उनके एक्टर्स भारतीय नहीं हैं। इस पर वो बोले, ‘उनकी मां असली मां नहीं हैं, उनके पिता असली पिता नहीं हैं, उनकी समस्याएं वास्तविक समस्याएं नहीं हैं और इस तरह लोग उससे जुड़ नहीं पाते हैं। यह असली भारत नहीं है। लोग इन फिल्मों से कैसे जुड़ेंगे?’ निर्देशक ने यहां तक कह दिया कि लोग अब एक-दूसरे के लिए फिल्में बना रहे हैं और उन्हें खुश रख रहे हैं।