वोलोडिमिर जेलेंस्की शुरू से ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रबल समर्थक रहे हैं। राजनीति में आने से पहले वह एक हास्य अभिनेता थे। 2014 के बाद से उन्होंने राजनीति में रूचि लेना शुरू किया और 2019 में यूक्रेन के राष्ट्रपति बन गए। ऐसे में बाकी नेताओं की अपेक्षा जेलेंस्की के राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की समझ पर सवाल उठते रहे हैं।
कीव: रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए छह महीने बीत चुके हैं। इसके बावजूद अभी तक न तो रूस की जीत हुई है और ना ही यूक्रेन की हार। पहले ऐसा अंदेशा था कि रूस आसानी से यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा। लेकिन, ताजा हालात यह है कि यूक्रेनी सेना तेजी से रूसी सैनिकों को पीछे ढकेल रही है। यूक्रेन के तगड़े प्रतिरोध के कारण रूसी सैनिक हथियार और गोला-बारूद छोड़कर भाग रहे हैं। इस कारण रूस में भी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को काफी नाराजगी झेलनी पड़ रही है। यूक्रेनी सेना को मिल रही भारी बढ़त से राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेंलेस्की के हौसले काफी बुलंद हैं। वो अब क्रीमिया तक दोबारा कब्जा करने का दावा कर रहे हैं। यह वही जेलेंस्की हैं, जिन्हें युद्ध की शुरुआत में एक खलनायक के तौर पर देखा गया था। खुद उनके ही देश में आलोचकों का मानना था कि फिल्मी एक्टर से राजनेता बने जेलेंस्की ने जान बूझकर यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंक दिया है। उन पर नाटो और रूस के बीच जारी तनाव में यूक्रेन को बेवजह फंसाने का आरोप भी लगा था।
नाटो की चाल को नहीं समझ पाए जेंलेस्की
वोलोडिमिर जेलेंस्की शुरू से ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रबल समर्थक रहे हैं। राजनीति में आने से पहले वह एक हास्य अभिनेता थे। 2014 के बाद से उन्होंने राजनीति में रूचि लेना शुरू किया और 2019 में यूक्रेन के राष्ट्रपति बन गए। ऐसे में बाकी नेताओं की अपेक्षा जेलेंस्की के राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की समझ पर सवाल उठते रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के शुरूआत में ही रूस से की गई संधि को तोड़कर यूक्रेनी संसद में अपने देश को यूरोपीय यूनियन में शामिल करने का संकल्प पारित करवाया। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि उनका देश अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो का भी सदस्य बनेगा। नाटो और यूरोपीय यूनियन ने भी रूस को चिढ़ाने के लिए जेलेंस्की के ऐलान का ऊपरी तौर पर समर्थन कर दिया। लेकिन, जेंलेस्की को यह नहीं पता था कि उन्हें इस ऐलान की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
नाटो और यूरोपीय यूनियन में शामिल क्यों नहीं हुआ यूक्रेन
रूस के साथ जंग यूक्रेन के नाटो और यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के ऐलान के कारण ही शुरू हुई थी। इसके बावजूद दोनों ही संगठनों ने यूक्रेन को अपनी सदस्यता नहीं दी है। वहीं, रूस से सिर्फ खतरा जताने पर फिनलैंड और स्वीडन को नाटो ने खुद अपने संगठन में शामिल होने का न्योता दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नाटो और यूरोपीय यूनियन यूक्रेन को सदस्य की मान्यता क्यों नहीं दे रहे हैं। यूरोपीय यूनियन ने यूक्रेन को कैंडिडेट स्टेटस दिया है, लेकिन सदस्यता पर कोई फैसला नहीं हुआ है। रूस के हमले के बाद यूक्रेन दौरे पर आईं यूरोपीय आयोग की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने यूक्रेन की सदस्यता को लेकर गंभीर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि यूक्रेन को प्रशासनिक सुधारों और अन्य जगहों पर प्रगति के बावजूद, अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि इस देश ने कानून के शासन को मजबूत करने के लिए बहुत कुछ किया है लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए अभी भी सुधारों को लागू करने की जरूरत है।
जेलेंस्की पर यूक्रेन को युद्ध में ढकेलने के आरोप
कोई भी समझदार देश बिना लाभ के जानबूझकर खुद को युद्ध में ढकेलना नहीं चाहता। लेकिन, यूक्रेन के साथ इसका ठीक उलट हुआ। यूक्रेन ने जान बूझकर अपने से कहीं शक्तिशाली देश रूस से झगड़ा मोल लिया। रूस नहीं चाहता था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने और उसकी सुरक्षा को कोई खतरा पैदा हो। लेकिन, जेलेंस्की ने राष्ट्रपति बनते ही नाटो में शामिल होने को लेकर बड़े-बड़े दावे करने शुरू कर दिए। इस कारण रूस को अपने सुरक्षा की चिंता पैदा होने लगी। मार्च 2021 में तो रूस ने चेतावनी के तौर पर यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों की तैनाती की। इसके बावजूद यूक्रेन ने रूस की चेतावनी को तवज्जो नहीं दी। इस कारण नवंबर 2021 से रूस ने दोबारा अपने सैनिकों को यूक्रेन की सीमा पर तैनात करने शुरू कर दिए। तभी से आशंका जताई जाने लगी कि रूस बड़ा मिलिट्री ऑपरेशन करने की तैयारी में है। लेकिन, यूक्रेन ने तब भी माहौल को ठीक ढंग से डील करने की जगह रूस समर्थित अलगाववादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी।
रूस को पीछे खदेड़ क्या हीरो बन जाएंगे जेलेंस्की?
रूस के साथ जंग में यूक्रेन लगभग तबाह हो चुका है। रूसी सेना ने अभी तक यूक्रेन के पांचवे हिस्से पर कब्जा किया हुआ है। यूक्रेन का दावा है कि उसने 6000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा दोबारा हासिल कर लिया है। यह सही बात है कि पूर्वी यूक्रेन के खारकीव, खेरसॉन, सेवेरोडोनेत्स्क, लिसिचांस्क पर फिर से नियंत्रण पाया है। लेकिन, इसे सीधे-सीधे रूस की हार नहीं माना जा सकता है। अगर यूक्रेनी सेना पश्चिम से मिले हथियारों के दम पर रूस को पूरी तरह पीछे खदेड़ देती है तो इसे राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के लिए एक बड़ी जीत मानी जाएगी। यूक्रेन समेत पश्चिमी देशों की मीडिया उन्हें एक नायक के तौर पर जरूर पेश कर सकती है। लेकिन, यह शायद ही संभव हो कि रूसी फौज पूरी तरह से पूर्वी यूक्रेन को खाली कर दे। इतना ही नहीं, जेलेंस्की के सामने अपने देश को फिर से खड़ा करने की चुनौती भी होगी। जंग से हुई तबाही से यूक्रेन को उबरने में दशकों लग सकते हैं।