
भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने सेक्स वर्कर्स (Indian Sex Workers) के लिए एक बहुत बड़ी बात कही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वेच्छिक सेक्स वर्क गैरकानूनी नहीं है और इसे कानूनी प्रोफ़ेशन (Legal Profession) का दर्जा दिया है. राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों की पुलिस को निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ बदसलुकी करने, उन्हें गालियां देने और उन्हें प्रताड़ित करने का कोई अधिकार नहीं है. पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ भी अच्छा व्यवहार करना होगा, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा.
स्वेच्छिक सेक्स वर्कर्स के काम में दखल नहीं दे सकती पुलिस
PTI
सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों पर बात की. जस्टिस एल नागेश्वर राव, बी आर गावई और ए एस बोपन्ना ये साफ़ तौर पर कह दिया कि अगर कोई महिला स्वेच्छा से सेक्स वर्क कर रही है तो पुलिस उसके काम में दखल नहीं दे सकती. पीठ ने ये भी कहा कि अगर किसी सेक्स वर्कर के साथ सेक्सुअल असॉल्ट होता है तो उसे भी तुरंत मेडिकल सहायता मुहैया करवानी होगी.
पुलिस और अन्य महकमों को संवेदनशील बनने की हिदायत
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न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि पुलिस और अन्य सरकारी महकमे सेक्स वर्कर्स को अलग दृष्टि से देखते हैं. यूं समझते हैं कि उनके पास कोई अधिकार नहीं हैं. पुलिसवालों और अन्य कानूनी महकमों को सेक्स वर्कर्स के प्रति संवेदनशील बनने की हिदायत दी गई.
सेक्स वर्कर्स की तस्वीर छापना अपराध
The Indian Express
सुप्रीम कोर्ट ने मीडियाकर्मियों को भी कड़े निर्देश दिए. रेड्स या रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पकड़े गए सेक्स वर्कर्स की तस्वीरें छापना, टेलिकास्ट करना अपराध है. कोर्ट ने कहा कि इस देश के बाकि नागरिकों की तरह ही सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों को इज़्ज़त के साथ जीने का अधिकार है. प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को मीडिया के लिए गाइडलाइन्स बनाने को कहा गया.
सेक्स वर्कर्स को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करें
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सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकार को सेक्स वर्कर्स को उनके हक के बारे में बताने को कहा. सेक्स वर्कर्स कानून की सहायता कैसे ले सकते हैं, क्या कानूनी है, क्या गैर कानूनी है आदि विषयों पर भी उन्हें जागरूक करने की ज़िम्मेदारी राज्य और केन्द्र सरकार की है.
न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, हर भारतीय नागरिक को सम्मान के साथ जीने का हक है.