टीवी पर अगर कुकिंग शो की बात हो तो जो चेहरा सबसे पहले ध्यान में आता है, वो है संजीव कपूर का. सफ़ेद कपड़ों में अलग-अलग बरतनों में सजाकर रखी सामग्रियां और दोस्ताना लहज़े में खाना बनाते सिखाता एक शख़्स. शायद ही कोई घर हो जहां टीवी पर उनकी रेसिपी देखकर किचन में मम्मी ने खाना न बनाया हो.
खाने के शोकीन थे, खाना बनाने के नहीं
संजीव कपूर का जन्म 10 अप्रैल, 1964 में अंबाला में हुआ. उनके पिता स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में कर्मचारी थे. पिता की बैंक में नौकरी थी इस वजह से संजीव भारत के कई शहरों- मेरठ, सहारनपुर, दिल्ली में रहे. संजीव कपूर ने स्कूल की पढ़ाई भी कई शहरों में पूरी की. वे पढ़ाई में काफ़ी अच्छे थे और हमेशा टॉप 5 में रहते. दिल्ली के राजौरी गार्डन में रहते थे संजीव कपूर. कक्षा 9वीं में संजीव कपूर ने मुख्य विषय लिया बायोलॉजी. उस दौर में बच्चे या तो इंजीनियर बनते थे या डॉक्टर, डॉक्टर बनना चाहते थे संजीव कपूर. एक बार उन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप बनाने को कहा गया. संजीव ने डायग्राम बनाया और टीचर के पास ले गए, टीचर ने पूरे डायग्राम पर लाल कलम से लेबल इट लिख दिया और संजीव को ये बात पसंद नहीं आई. इस घटना ने संजीव की ज़िन्दगी को नया मोड़ दिया. 12वीं में उन्होंने 80% अंक प्राप्त किए लेकिन वो बाकी छात्रों की तरह रेस में दौड़ना नहीं चाहते थे.
आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, बन गए शेफ़
संजीव कपूर को दिल्ली में आर्किटेक्चर की पढ़ाई के बारे में पता चला, पूरे भारत में सिर्फ़ 15-20 सीटें थीं. उन्होंने परीक्षा दी पर उनका नाम वेटिंग लिस्ट में आया. संजीव कपूर का एक दोस्त, जस्मीत सिंह सनी होटल मैनेजमेंट का फ़ॉर्म भर रहा था. उन्होंने कभी पूसा इंस्टीट्यूट ऑफ़ होटल मैनेजमेंट करने के बारे में सोच भी नहीं था. संजीव ने फ़ॉर्म भरा, इंटरव्यू का फ़ोन भी आया लेकिन वो इंटरव्यू देने नहीं गए.
एक इंटरव्यू में संजीव कपूर ने कहा,
“मैं हमेशा कहता हूं कि मैं ग़लती से शेफ़ बन गया था, मैं कुछ अलग करना चाहता था, मैं आर्किटेक्ट बन सकता था. करियर के रूप में खाना पकाना मेरी बचपन की महत्वाकांक्षा नहीं थी. यह बस हुआ, और फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा! और मुझे बेहद ख़ुशी है!”
जस्मीत के कहने पर संजीव इंटरव्यू देने गए. उनका सेलेक्शन हो गया लेकिन तब भी वो एडमिशन लेने के बारे आशंकित थे. संजीव ने इंस्टीट्यूट में Catering and Nutrition कोर्स में प्रवेश लिया. 3 साल के कोर्स में संजीव ने खाना बनान, खाना परोसना, कैटरिंग, अकाउंटेंसी सबकुछ सीखा.
1984 में पासआउट होने के बाद उन्होंने कई होटल जैसे- ITDC अशोक होटल में ट्रेनिंग की. वाराणसी के ITDC अशोक होटल में वे 6 साल तक एक्जे़केटिव शेफ़ रहे. वाराणसी में वे बतौर अंडरस्टडी शेफ़ काम कर रहे थे लेकिन होटल मैनेजर को लगा कि वो शेफ़ स्टाफ़ के हेड बन सकते हैं, संजीव कपूर की उम्र तब सिर्फ़ 27 साल थी.
खाना खज़ाना ने घर-घर तक पहुंचा दिया
उस दौर में Zee TV लॉन्च किया गया था. एक दिन चैनल से एक शख़्स संजीव कपूर के पास पहुंचा और उसने बताया कि चैनल उनके साथ एक कुकरी शो करना चाहता है.
शो का नाम पहले ‘श्रीमान बावर्ची’ रखा गया था. संजीव कपूर को ये नाम पसंद नहीं आया और उन्होंने शो का नाम बदलकर ‘खाना खज़ाना’ रखवाया.
Hindustan Times को दिए एक इंटरव्यू में संजीव कपूर ने बताया, “शो के हर एपिसोड में अलग-अलग होटल के शेफ़ नज़र आने वाले थे और वो अलग-अलग रेसिपीज़ बताने वाले थे. उस समय शो के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर, हंसल मेहता एक रेडियो स्टेशन में काम करते थे. वो आये मुझ से मिले और मैं खाना खज़ाना का इकलौता शेफ़ बन गया.”
शो को दर्शकों को ग़ज़ब का प्यार मिला और ये कई सालों(लगभग 17 साल) तक भारतीय टेलिविज़न का बेस्ट कुकिंग शो बना रहा. खाना खज़ाना को 2002, 2004 और 2010 में इंडियन टेलिविज़न अकैडमी अवॉर्ड की तरफ़ से बेस्ट कुकरी शो के खिताब से नवाज़ा गया. इसके अलावा भी उन्हें कई पाक पुरस्कार मिले हैं.
संजीव कपूर के अब कई बिज़नेस हैं, प्रीमियम कुकवेयर, अपलायंस ब्रैंड Wonderchef से लेकर टीवी चैनल FoodFood. वो कई ब्रैंड्स के ब्रैंड अम्बैसेडर भी हैं.
2017 में संजीव कपूर को पद्म श्री से सम्मानित किया गया.