ट्रांसजेंडर होने पर घर से निकाला गया था, संघर्ष कर जीती वजूद की लड़ाई और सरपंच बन बदल दिया गांव

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ट्रांसजेंडर को लेकर आज भी समाज का नजरिया काफी संकीर्ण है, जबकि सच तो यह है कि वो लगातार कीर्तिमान गढ़ रहे हैं. आज कहानी एक ऐसे ही ट्रांसजेंडर की, जिन्होंने लोगों के ताने सुने, घर वालों ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष कर पहले अपने वजूद की लड़ाई जीती और फिर सरपंच बन एक गांव की तस्वीर ही बदलकर रख दी. हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के जलगांव में ट्रांसजेंडर बनी सरपंच अंजलि पाटिल की, जिन्होंने बीते एक साल में अपने गांव को बदलकर रख दिया है.

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पहले नामांकन हो गया था ख़ारिज

अंजलि पाटिल ने जलगांव के भदली बुद्रुक ग्राम पंचायंत से पहली ट्रांसजेंडर सरपंच बन इतिहास रच दिया था. लेकिन, जब उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए आवेदन किया था तो उनके ट्रांसजेंडर होने की वजह से उनका नामांकन ख़ारिज कर दिया गया था. बावजूद इसके वो पीछे नहीं हटीं. अंजलि इसके खिलाफ कोर्ट पहुंच गईं.

नामाकंन खत्म होने के एक दिन पहले अदालत ने  उनके हक़ में फैसला सुनाते हुए उन्हें महिला कैटेगरी में आवेदन करने की इजाजत दे दी. अंजलि ने चुनाव जीतने के लिए जोर-शोर से प्रचार किया. कई ट्रांसजेंडर भी उनके सपोर्ट में वोट मांगे. ग्राम पंचायत की जनता ने अंजलि को चुना. उन्हें 560 वोट मिले थे.

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घर वालों ने मारा-पीटा, बेसहारा छोड़ दिया

अंजलि चुनाव जीत चुकी थीं. लेकिन उन्हें इस जीत के बाद जिसकी तरफ से बधाई आने का इंतजार था. वो नहीं आया. वो निराश थीं. एक मीडिया इंटरव्यू के दौरान अंजलि बताती हैं. जीत के बाद उन्हें लगातार फोन आ रहे थे. उन्हें बधाइयां दी जा रही थीं. लेकिन जिस कॉल का उन्हें इंतज़ार था. वो नहीं आया. वो सोच रही थीं कि काश एक मर्तबा उनके घर वाले उन्हें कांटेक्ट करें. पर किसी ने नहीं किया.

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अंजलि बताती हैं कि वो सिर्फ कक्षा पांच तक पढ़ाई की हैं. स्कूल में उन्हें बच्चे काफी परेशान करते थे. उन्हें चिढ़ाते थे. काफी कम उम्र में ही अंजलि को एहसास हो गया था कि वो औरों की तरह नहीं हैं. वो लड़कियों के शौचालय इस्तेमाल करती थीं. जब घर वालों को इसकी जानकारी हुई. तो उन्होंने अंजलि पाटिल को मारा-पीटा. अक्सर उनकी आदतों को छुड़ाने के लिए उन्हें खूब मारा जाता था. फिर एक दिन परिवार ने उन्हें घर से ही निकाल दिया. वो बेसहारा हो गईं. तब उनकी बहन ने उन्हें सहारा दिया. जिसके सुसराल में अंजलि को काफी काम करना पड़ता था. घर से लेकर खेती तक उसे करनी पड़ती थी.

गांव वालों के लिए मसीहा बनीं

अंजलि खेती करने के साथ बकरियां चराती थीं. फिर उनके दिमाग में एक आइडिया आया. उन्होंने कई बकरियां खरीद लीं. उनका कारोबार बढ़ने लगा. लेकिन दिल में कुछ करने का जज्बा लिए अंजलि आगे बढ़ना चाहती थीं. वो गांव और अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने सियासत में कदम रखने का फैसला किया. राजनीति में आने के लिए अंजलि ने ग्रामवासियों से मेल-जोल बढ़ाया. उनके सुख दुःख में साथ खड़ी रहीं. फिर वो आधी रात में हो या फिर चिलचिलाती धूप में, वो उनके लिए जो कुछ बन पाया वो करने की कोशिश कीं. लोगों ने उनकी उस मेहनत का फल भी उन्हें सरपंच बनाकर दिया.

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अंजलि पाटिल को सरपंच बने लगभग डेढ़ साल हो गए. उन्होंने अपने गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है. सरपंच रहते हुए सड़क बनवाई, साफ पेयजल की व्यवस्था हर घर तक पहुंचाया. कई और भी काबिले तारीफ़ काम किए. आज वो किन्नर समाज को एड्स जैसी गंभीर बीमारी के बारे में भी जागरूक कर रही हैं. अब अंजलि का मकसद अपने गांव और उनके लोगों की सेवा करना है.