खाना वही, जो दिल ख़ुश कर दे खाना शब्द सुनते ही आप अपने खाने की कल्पना में डूब जाते हैं और बेशक उस दुनिया से बाहर आने में थोड़ा समय लगता है. एक दिलचस्प बात ये है कि कई दफा आपका टेस्टी फ़ूड किसी और का टेस्टी फ़ूड कतई नहीं होता है यानी स्वाद निजी विषय भी है. इसके अलावा, खाना संस्कृति, लोगों और ज़मीन से भी जुड़ा होता है.
हम खाv-पान से जुड़ी कहानियों का एक ऐसा जत्था लेकर आये हैं, जो आपको सुनने में थोड़ी अजीब लगेंगी, लेकिन इसे खाने वालों के लिए बेहद लजीज़ हैं. आज हम चलेंगे ओडिशा की ओर जहां चींटी की चटनी बड़े चाव से खाई जाती है. आपने एकदम सही पढ़ा! चींटी की चटनी, जिसे काई चींटी से बनाया जाता है. यह चटनी इतनी ख़ास है कि इसके लिए GI टैग दिए जाने की मांग भी की जा रही है.
ऐसी डिश जिसके लिए GI टैग दिए जाने की मांग
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दरअसल, वैज्ञानिक इस चटनी के लिए भौगोलिक संकेत (GI) रजिस्ट्री के लिये प्रेजेंट भी कर चुके हैं. GI टैग मिलने से काई चटनी के व्यापक उपयोग के लिये एक संरचित स्वच्छता प्रोटोकॉल विकसित करने में मदद करेगा और साथ ही स्थानीय उत्पादों की वैल्यू और मूल्य को बढ़ाने तथा स्थानीय व्यवसायों को सपोर्ट करेगा.
लाल चींटी की काई चटनी
ओडिशा के मयुरभंज जिले में आदिवासी समुदाय लाल चींटियों और उनके अंडे को चटनी या सूप के रूप में खाया जाता है. इस चटनी का नाम काई चटनी है. हालांकि, सिर्फ ओडिशा ही नहीं बल्कि भारत के पूर्वी राज्य जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़ में भी चींटी को इस तरह खाया जाता है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में इस चटनी को ‘चपड़ा चटनी’ कहा जाता है.
मयुरभंज के जंगलों में रेड वीवर एंट भरपूर मात्रा में पाई जाती हैं. ये चीटियां झुंड में रहती हैं, पेड़ों की पत्तियों से घोंसले का निर्माण करती हैं. इस चटनी में प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन B-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, कॉपर, फाइबर और अमीनो एसिड पाए जाने की बात कही जाती है.
The statesman
कैसे बनती है काई चटनी?
इस चटनी को बनाने के लिए पहले चींटियों और उनके अंडे को सुखाया जाता है. इसके बाद उनमें लहसुन, अदरक, धनिया पत्ते, इमली, नमक, इलायची और स्वाद के लिए थोड़ी चीनी भी मिलाई जाती है. ख़ास बात है कि इसे शीशे की बरनी में रखा जाता है, जो सालभर तक चल सकती है.
इसके अलावा, जब ज़रूरत पड़ती है तब पत्तों पर बने चीटियों के घोंसलों को तोड़कर पानी भरी बाल्टी में डाला जाता है.
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क्या इसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं?
ओडिशा के समुदाय का मानना है कि लाल चींटी की चटनी में औषधीय गुण पाए हैं. उनका मानना है कि इससे कई रोग का इलाज होता है. काई चटनी पीलिया, खांसी, जोड़ों के दर्द, कफ और कमजोर नज़र में फायदेमंद है.
खाने के अलावा, यह समुदाय इन चींटियों के इस्तेमाल से तेल भी बनाते हैं, जिसका इस्तेमाल स्किन से जुड़ी समस्याओं के लिए करते हैं.
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GI टैग क्या है?
GI टैग किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के प्रोडक्ट्स, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है. यह स्पेशल पहचान उन उत्पादों को दी जाती है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं. भारत में चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग की चाय और मलीहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स को GI Tag मिला है.