खाने में हम जो भी खाएं लेकिन कौतुहल इस बात का रहता है कि दूसरे क्या खा रहे हैं? रेस्त्रां हो या शादी की पार्टी… दूसरे की थाली का भोजन हमेशा ही आकृषित करता है. ऐसे में कभी-कभी ख्याल ये भी आता है कि हमारे पूर्वज क्या खाते होंगे? इस बारे में हमारी समझ बस उतनी है जितनी वैज्ञानिकों ने समझाई. खाने का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पुराना जीवन का अस्तित्व.
बदलते वक्त के साथ भोजन की प्रक्रिया में कई बदलाव आए हैं. इन्हीं में से एक बदलाव के बारे में हाल ही में वैज्ञानिकों को पता चला. असल में सिंधु घाटी सभ्यता, जो मानव इतिहास की सबसे पुरानी सभ्यताओं में गिनी जाती है. उस सभ्यता के खान-पान को लेकर महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं. जो लोग ये माने बैठे हैं कि उस दौर में इंसान केवल अनाज खाता था, उनका भ्रम टूटा है…क्योंकि अब पता चला है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मांसाहारी भी थे.
बर्तनों से पता चला मेन्यू
आर्कियोलॉजिकल साइंस नामक जर्नल में कैम्ब्रिज यूनिवर्सटी से पुरातत्व-विज्ञान में पीएचडी और अब फ्ऱांस में पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो ए सूर्यनारायण का एक शोध प्रकाशित हुआ है. वे कई साल से सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी विशेषताओं पर शोध कर रहे हैं. हम जिस शोध की बात कर रहे हैं, वो सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों पर आधारित है.
असल में वैज्ञानिकों ने मिट्टी के शोध से ये पता किया कि सिंधु घाटी सभ्यता में जौ, गेहूं, चावल के साथ-साथ अंगूर, खीरा, बैंगन, हल्दी, सरसों, जूट, कपास और तिल की खेती होती थी. इसलिए कुछ लोगों ने जल्दबाजी में यह निर्णय सुना दिया कि उस दौर में लोग शाकाहारी भोजन खाते थे.
किन्तु, इलाक़े में मिले हड्डियों के अवशेषों से ये नतीजा निकला कि 50-60 प्रतिशत अवशेष गाय-भैंस के हैं जबकि लगभग 10 प्रतिशत हड्डियां बकरियों की हैं. जिसके बाद ए. सूर्यनारायण ने दावा किया कि उस दौर में लोगों ने मटन और बीफ़ को मसालों के साथ पकाकर खाना शुरू कर दिया था. इस शोध के लिए हरियाणा में सिंधु सभ्यता के स्थल राखीगढ़ी को चुना गया. आलमगीरपुर, मसूदपुर, लोहारी राघो और कुछ अन्य जगहों से मिले मिट्टी के बर्तनों से ये पता चला कि मसालेदार मटन और बीफ़ का चलन काफ़ी पुराना है.
गुजरात में पिया जाता था दूध
सिंधु घाटी के शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में इस बारे में कोई अंतर नहीं था. हरियाणा से जो बर्तन मिले हैं, उनमें हुए शोध से पता चलता है कि इन बर्तनों में दुग्ध उत्पादों का सीधा इस्तेमाल तुलनात्मक रूप से कम होता था. जबकि, गुजरात में सिंधु घाटी सभ्यता के दौर में बर्तन दुग्ध उत्पादों के लिए अधिक यूज होते थे. साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध के मुताबिक, वहां पर मिट्टी के कई बर्तनों में दुग्ध उत्पाद ही पकाए जाते थे.
ए सूर्यनारायण का कहना है कि अभी शोध खत्म नहीं हुआ है. खाने के तौर तरीकों के बारे में कई राज और खुलने हैं. वे कहते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार भौगोलिक रूप से आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, दक्षिण भारत और अफ़ग़ानिस्तान के इलाकों में था. जिनकी अवधि ईसापूर्व 2600 से ईसापूर्व 1900 के बीच है.
भौगोलिक परिस्थितियां अलग होने के कारण खानपान में भी काफी अंतर रहा. जैसे गुजरात में मांसाहार से ज्यादा दुग्ध उत्पादों पर निर्भरता रही, जबकि अफगान और भारत के उत्तरी इलाकों में भोजन के लिए मटन और बीफ का उपयोग किया गया. शोध के दौरान वैज्ञानिकों को सुअर के अवशेष भी मिले हैं पर उससे यह दावा नहीं किया जा रहा है कि इसे भोजन के लिए उपयोग किया गया. सूर्यनारायण ने शोध में साफ किया है कि भैंस, सुअर जैसे जानवर इंसानों की मदद के लिए उपयोग होते थे.
रहस्यों से भरी है सिंधु घाटी
करीब आठ हजार साल पुरानी सिंधु घाटी की सभ्यता अपने चरम पर पहुंचने के बाद आज से चार हजार से 2900 साल के बीच विलुप्त हो गई थी. सिंधु घाटी के शहर, गांव, जल स्त्रोत, बर्तन, अवशेष सब मिल चुका है पर वो कारण अब तक बस साफ नहीं जो ये बता सके कि आखिर यह सभ्यता गायब कहां हो गई? वैज्ञानिकों के दावे को सच मानें तो उस दौर में लोग पशु पालन और खेती पर निर्भर हो गए थे.
करीब 1100 साल की अवधि में ऐसा सूखा पड़ा कि लोगों का जीवनयापन मुश्किल हो गया. और यही एक कारण है कि लोगों ने पलायन किया. कुछ लोग पलायन के दौरान और कुछ लोग उसके बाद खत्म हो गए. सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान पड़े भयंकर सूखे का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के शोध में किया गया है.
इसके लिए वैज्ञानिकों ने लद्दाख स्थित सो मोरिरि झील की सतह पर 5 मीटर ड्रिल किया और 2000 सैंपल लिए. इसके अलावा जो दूसरा रहस्य है, वो है सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा! जिसे अब तक वैज्ञानिक समझ नहीं पाए हैं. कुछ अक्षरों की पहचान की गई है, जैसे— श्री, अगस्त्य, मृग, हस्त, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, मूषक, अग्नि, गृह, कामधेनु. लेकिन इनसे कोई वाक्य बन जाए, ऐसा होना संभव नहीं हो पाया है.
इसलिए लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े छोटे से छोटे तथ्य को खंगालने में लगे हुए हैं. जिससे शायद हमें यह जवाब मिल सके कि आखिर हमारे पूर्वज कैसे थे! बहरहाल शोध की गाड़ी खान—पान के तथ्यों को तो सुलझाने में सफल हो ही रही है. अब ये बात और है कि सिंधु घाटी के लोगों का बीफ से संबंध होना एक खास वर्ग को आक्रोशित कर सकता है! पर शोध तो यही कहता है.