एकनाथ शिंदे की बाग़ी चाल में फंसे और सरकार बचाने की चुनौती का सामना कर रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बुधवार शाम एक लाइव भाषण में शिव सेना के विधायकों से कहा कि ‘अगर एक भी विधायक मुझे पद से हटाना चाहता है तो मैं पद छोड़ दूंगा, मेरा इस्तीफ़ा तैयार है.’
उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया कि गठबंधन सहयोगी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन तो उन्हें प्राप्त है लेकिन अपनी ही पार्टी शिव सेना का नहीं.
सियासी रूप से कमज़ोर पड़ चुके उद्धव ठाकरे ने पद छोड़ने से पहले ही सरकारी आवास ‘वर्षा’ छोड़ दिया और वो अपना सामान समेट कर मातोश्री पहुँच गए.
28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में ख़ास असर रखने वाले ठाकरे परिवार के संवैधानिक पद पर बैठने वाले पहले व्यक्ति बने थे.
ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना महाराष्ट्र की राजनीति की ऐतिहासिक घटना थी. विचारधारा के दो विपरीत छोर पर खड़ी पार्टियां सियासी मजबूरियों की वजह से साथ आईं और महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना.
मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ दशकों चला गठबंधन तोड़ा.
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शिव सेना और बीजेपी 1984 में क़रीब आईं और 1989 लोकसभा चुनावों से पहले दोनों दलों का गठबंधन हो गया. बीच में 2014 में कुछ समय के लिए इस गठबंधन में दरार आई.
हिंदुत्व ने शिव सेना और बीजेपी को जोड़े रखा और 2019 विधानसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने मिलकर लड़ा.
लेकिन सरकार गठन से ठीक पहले उद्धव ठाकरे बीजेपी से अलग हो गए और विपरीत विचारधारा वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई.
उद्धव ठाकरे की सरकार ने कई उतार-चढ़ावों से गुज़रते हुए ढाई साल पूरे किए और अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी विधायकों की बग़ावत के बाद उनकी सरकार संकट में है.
अब उद्धव ठाकरे के सामने सिर्फ़ सरकार ही नहीं अपनी पार्टी बचाने की भी चुनौती है क्योंकि बाग़ी एकनाथ शिंदे ने शिव सेना पर ही दावा ठोक दिया है.
महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी घमासान में का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि एकनाथ शिंदे बाग़ी शिव सेना विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिले लें और राज्य में सत्ता बदल जाए.
इसी के साथ उद्धव ठाकरे के लगभग ढाई साल के कार्यकाल का भी अंत हो जाएगा.
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उद्धव ठाकरे जब मुख्यमंत्री बने थे तो लोगों की दिलचस्पी उनमें थी. पहली बार ठाकरे परिवार का कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर बैठा था. इससे पहले ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी ना ही कोई चुनाव लड़ा था और ना ही कभी कोई संवैधानिक पद संभाला था.
उद्धव ठाकरे जब सत्ता में आए थे तब उनकी छवि बेदाग़ थी. उन पर कभी किसी तरह के भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा था.
उद्धव ठाकरे के कार्यकाल को देखा जाए तो उस पर कोविड महामारी हावी नज़र आती है. विश्लेषक मानते हैं कि इन ढाई सालों में उद्धव ठाकरे ने कोविड के ख़िलाफ़ तो जमकर काम किया लेकिन इसके अलावा वो कुछ और उल्लेखनीय नहीं कर पाए.
कोविड में हीरो
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने हुए चार महीने भी नहीं हुए थे कि महाराष्ट्र में कोविड के पहले मामले की पुष्टि हो गई थी. भारत में महाराष्ट्र कोविड से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से एक था.
कोविड महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में सोशल मीडिया पर सुपर एक्टिव थे और जनता से सीधा संवाद कर रहे थे. महामारी के दौरान हुए एक सर्वे में उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ पाँच मुख्यमंत्रियों में शामिल किया गया था.
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ड्रामा क्वीन
समाप्त
लोकमत अख़बार के वरिष्ठ सहायक संपादक संदीप प्रधान कहते हैं, “उद्धव ठाकरे ने सबसे अच्छा काम कोरोना के समय किया. मुंबई के धारावी जैसी झुग्गी बस्ती में कोरोना को नियंत्रित करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. उद्धव ठाकरे ने इन मुश्किल हालात को सही से संभाला.”
बीबीसी मराठी के संपादक आशीष दीक्षित भी मानते हैं कि कोविड के दौरान उद्धव ठाकरे ने फ्रंटफुट पर आकर काम किया. दीक्षित कहते हैं, “महाराष्ट्र कोविड से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में था. जब कोविड के आंकड़े बढ़ रहे थे तब उद्धव ठाकरे ने सोशल मीडिया के माध्यम से जनता से सीधा संवाद स्थापित किया और सरकार की बात लोगों तक पहुंचाई.”
दीक्षित कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि कोविड के दौरान उद्धव सक्रिय दिखे और उन्होंने संवाद बनाए रखा. उस समय लोगों को उद्धव ठाकरे को बहुत अच्छे लग रहे थे क्योंकि उनका बात करने का तरीक़ा बिल्कुल सामान्य था. वो लोगों से ऐसे बात करते थे जैसे दोस्त आपस में बैठकर बात करते हैं. लोगों को लग रहा था कि ये हमारे बीच का ही कोई है जो हमसे बात कर रहा है. उद्धव ठाकरे भले ही एकतरफ़ा संवाद कर रहे थे लेकिन लोगों को ये अच्छा लग रहा था.”
कोविड के दौरान उद्धव सरकार ने जंबो कोविड सेंटर शुरू किए. दूसरी लहर के दौरान जब दिल्ली-लखनऊ जैसे शहरों में ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी, मुंबई में स्थिति नियंत्रण में थी. शिव सेना ये दावा करती रही है कि कोविड महामारी के दौरान उसने मुंबई जैसे बड़ी आबादी वाले शहर में हालात नियंत्रण में रखे.
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घर तक सीमित सीएम
उद्धव ठाकरे ने अपने आप को घर तक ही सीमित रखा और वो बहुत कम बाहर निकले. उद्धव दिल के मरीज़ हैं और 2012 में सर्जरी के बाद उन्हें 8 स्टेंट भी लग चुके हैं. नवंबर 2021 में उद्धव अस्पताल में भर्ती हुए थे और उनकी रीढ़ की सर्जरी की गई थी.
उद्धव ठाकरे ने अधिकतर कैबिनेट बैठकें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए ही कीं. वो बहुत कम बार मंत्रालय गए. सरकारी आवास वर्षा, जहाँ से सरकार चलती है, वहाँ भी वो कम ही रहे और अपने निजी बंगले में ही अधिक रहे.
आशीष दीक्षित कहते हैं, “उद्धव ठाकरे वर्चुअली तो लोगों को दिख रहे थे लेकिन उनकी फिजिकल विज़ीबिलिटी नहीं थी. वो एक तरह से नदारद थे. मुख्यमंत्री हमेशा प्रदेश का दौरा करता रहता है, ज़िलों में होता है, लेकिन उद्धव ठाकरे मुंबई से बाहर एक-दो बार ही निकले. वास्तव में वो अपने घर से बाहर भी नहीं निकले.”
दीक्षित कहते हैं, “उद्धव ठाकरे कई बार विधानसभा सत्रों में भी नहीं गए. ये चर्चाएं होती थीं कि उद्धव सदन में आएंगे या नहीं.”
वहीं संदीप प्रधान मानते हैं कि उद्धव के बहुत अधिक लोगों के बीच में ना जानें की वजह उनका स्वास्थ्य और स्वभाव है.
संदीप प्रधान कहते हैं, “उद्धव जब पार्टी के अध्यक्ष थे तब भी अपनी शर्तों पर ही लोगों से मिलते थे. वो बहुत घुलते मिलते नहीं है और आमतौर पर लोगों के बीच नहीं जाते हैं.”
उद्धव ठाकरे स्वास्थ्य की वजह से भी अपने आप को सीमित रखते हैं. हालांकि महाराष्ट्र में ही शरद पवार जैसे बुज़ुर्ग नेता हैं जो बहुत सक्रिय रहते हैं और आमतौर पर दौरे करते रहते हैं.
संदीप प्रधान कहते हैं, “शरद पवार अलग-अलग ज़िलों में घूमते रहते हैं. लेकिन उनकी तुलना में उद्धव ठाकरे कभी सक्रिय नज़र नहीं आए. इसकी एक ही साफ़ वजह दिखती है कि वो अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं.”
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संदीप प्रधान कहते हैं, “गवर्नेंस (शासन) के मामले में उद्धव बहुत प्रभावी नहीं रहे. उनकी सरकार में फाइलें लंबित पड़ी रहीं. मंत्रियों और विधायकों से संवाद कमज़ोर रहा. संवाद ना होना ही मौजूदा राजनीतिक संकट की जड़ में है.”
उद्धव ठाकरे तीन पार्टियों के गठबंधन की सरकार चला रहे थे. उनके पास अपना पूर्ण बहुमत नहीं था. विश्लेषक ये भी मानते हैं कि जिस तरह का नियंत्रण एक गठबंधन सरकार पर मुख्यमंत्री का होना चाहिए था वैसा वो बना नहीं पाए थे.
संदीप प्रधान कहते हैं, “अलग-अलग विचारों की पार्टियों का गठबंधन है. उन पर नियंत्रण करने के लिए जो अथॉरिटी चाहिए वो उद्धव के पास नहीं रहा. उद्धव के पास प्रशासन या सरकार चलाने का बहुत अनुभव भी नहीं था.”
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कोई ऐसा काम नहीं जिस पर उद्धव की छाप हो
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के अधिकतर समय कोविड हावी रहा. कोविड के दौरान भले ही उन्होंने वाहवाही लूटी हो लेकिन इसके अलावा ऐसा कोई उल्लेखनीय काम महाराष्ट्र सरकार का नज़र नहीं आता जिस पर उद्धव ठाकरे की छाप हो.
आशीष दीक्षित कहते हैं, “कोविड छोड़कर अगर दूसरे कामों की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई बड़ा काम हो जो महाराष्ट्र सरकार ने उद्धव के शासन काल में किया हो. जो पहले से बड़े प्रोजेक्ट चल रहे थे, जैसे नागपुर-मुंबई समृद्धि महामार्ग, ये बड़ा प्रोजेक्ट पिछली सरकार ने शुरू किया था और उद्धव सरकार ने इसे आगे बढ़ाया. पुणे और मुंबई मेट्रो का काम भी चल रहा है. ये भी पिछली सरकारों के शुरू किए प्रोजेक्ट हैं. उद्धव सरकार का ऐसा कोई बड़ा काम या प्रोजेक्ट नज़र नहीं आता जिसमें उनका विज़न या सोच दिखाई दे.”
कई मोर्चों पर नाकाम
उद्धव ठाकरे के शासन काल में महाराष्ट्र में स्टेट ट्रांसपोर्ट की बसों की सबसे लंबी हड़ताल हुई. छह महीनों से अधिक समय तक बसें हड़ताल पर रहीं और उद्धव सरकार इस संकट का समाधान नहीं कर पाई. ये हड़ताल लंबी होती गई और सरकार स्थिति को संभाल नहीं पाई.
महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की परिक्षाओं को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनीं रही. परिक्षाओं की तारीख़ें बदलती रहीं. बेसब्र होकर छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा और ये एक बड़ा मुद्दा बन गया.
आशीष दीक्षित मानते हैं कि उद्धव ठाकरे को काम करने के लिए बहुत अधिक समय भी नहीं मिल पाया. दीक्षित कहते हैं, “उद्धव ठाकरे के कार्यकाल के ढाई साल में से लगभग दो साल कोविड में ही चले गए. सरकार का बहुत अधिक पैसा कोविड प्रबंधन में भी ख़र्च हुआ. दूसरे कामों के लिए सरकार के पास बहुत कम पैसा बचा.”
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केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर
उद्धव ठाकरे ने केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़कर विपक्षी दलों के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी.
विश्लेषक मानते हैं कि इसी वजह से उनकी सरकार केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर भी रही.
“केंद्रीय एजेंसियां महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को ख़ासतौर पर निशाना बना रहीं थीं. पिछले लगभग 6-7 महीनों से शिवसेना के विधायक केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं. हर सप्ताह किसी ना किसी विधायक या मंत्री के घर या दफ़्तर पर छापा पड़ता है. कई आयकर विभाग, कभी नार्कोटिक्स तो कभी प्रवर्तन निदेशालय. किसी राजनेता की पत्नी तो किसी के रिश्तेदारों से पूछताछ की जाती है.”
उद्धव ठाकरे सरकार के दो मंत्री (दोनों ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से) नवाब मलिक और अनिल देशमुख गिरफ़्तार हो चुके हैं. अनिल देशमुख गृहमंत्री थे और इस्तीफ़ा दे चुके हैं. नवाब मलिक अभी भी मंत्री हैं और जेल में हैं.
विश्लेषक मानते हैं कि केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों ने भी उद्धव ठाकरे सरकार को तनाव में रखा.
मंगलवार को जब महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा चल रहा था और शिवसेना संकट में थी तब उद्धव ठाकरे के सबसे भरोसमंद लोगों में से एक अनिल परब ईडी के दफ़्तर में सवालों के जवाब दे रहे थे. अनिल परब उद्धव ठाकरे सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री हैं. प्रवर्तन निदेशालय उन्हें गिरफ़्तार भी कर सकता है.
आशीष कहते हैं, “केंद्रीय एजेंसियां महाराष्ट्र में कुछ अधिक ही सक्रिय थीं. इससे उद्धव ना सिर्फ़ तनाव में थे बल्कि कहीं और ध्यान भी नहीं दे पा रहे थे.”