ऑरोर से क्या पता चलता है कि ओजोन परत के बारे में?

पृथ्वी की ऊपरी वायुमंडल (Upper Atmosphere of Earth) में सूर्य से आने वाले विकिरणों के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों से लोगों को आसमान में ऑरोर (Aurora) दिखाई देते हैं. वहीं वायुमंडल के निचली परत क्षोभमंडल के ठीक ऊपर स्थित ओजोन परत (Ozone Layer) है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को रोकने का काम करती है जो पिछले कुछ दशकों से घटती जा रही है. क्या ऑरोर का ओजोन परत पर कोई असर पड़ता है या नहीं इसके लिए अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने आसोलेटेड प्रोटॉन ऑरोर का अध्ययन किया और पाया कि ओजोन परत को अब तक के सिम्यूलेशन के पूर्वानुमानों से ज्यादा नुकसान हो रहा है.

ऑरोर से नुकसान
जापान, अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस खास तरह के ऑरोर से ओजोन परत को और नुकसान हो रहा है. सौर विकिरण के साथ खगोलीय विकिरण और आयन और इलेक्ट्रॉन जैसे उच्च ऊर्जा प्लाज्मा कणों की भी पृथ्वी के वायुमंडल पर बारिश होती है. इन कणों में से पृथ्वी के अंतरिक्ष का आवरण करने वाली विकिरण पट्टी में इलेक्ट्रॉन चुंबकीय रेखाओं से होते हुए पृथ्वी के वायुमंडल में गिरती हैं.

नुकसान पहुंचाते हैं आयनीकृत कण
इन इलेक्ट्रॉन के गिरने से उनका आवेश वायुमंडल को आयनीकृत कर देता है. इससे वायुमडंल में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोजन ऑक्साइड बनती हैं. दोनों ही यौगिक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने में योगदान देते हैं. इसके अलावा उच्च ऊर्जा वाले प्लाज्मा कण भी ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं.

एक खास तरह का ऑरोर
इस प्रभाव के बारे में काफी कम समझा जा सका है क्योंकि ऐसा कणों का देख कर अवलोकन नहीं हो सकता है जिससे इनकी स्थिति का अनुमान नहीं लग पाता है. लेकिन जब ये आवेशित कण उच्च वायुमंडल से अंतरक्रिया करते हैं, वे एक अलग सा प्रोटोन ऑरोर उत्सर्जित करते हैं. सामान्यतः ऑरोर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की आसपास एक पट्टी की तरह दिखाई देते है.

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पृथक प्रोटोन ऑरोर का ओजोन परत (Ozone layer) पर सीधा और स्थानीय प्रभाव पड़ता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

पृथक प्रोटोन ऑरोर
निम्न अक्षांशों में ये पृथक प्रोटोन ऑरोर एक विशेष तरह के धब्बे या पट्टे की तरह दिखाई देते हैं. शोधकर्ताओं ने इव पृथक प्रोटोन ऑरोर के नीचे की ओजोन परत में आए उतार चढ़ावों की पड़ताल की जिससे वे विकिरण पट्टी के इलेक्ट्रॉन के प्रभाव का आकलन कर सकें. उनकी पड़ताल के नतीजे साइंटिफिक रिपोर्ट्स मे प्रकाशित हुई हैं.

पहली बार इस तरह के आंकड़े
ऑरोर के ऊपर के इलेक्ट्रॉन को पहचानने के लिए शोकर्ताओं ने सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग, धरती पर स्थापित विद्युतचुंबकीय तरंगों के अवलोकनों, और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के संयोजन का उपयोग किया. ऐसा पहली बार है कि पृथक प्रोटोन ऑरोर से संबंधित वायुमंडल के मध्य में 400 किलोमीटर की ऊंचाई में स्थानीय ओजोन होल के निर्माण के आंकड़ों जारी किए गए हैं.

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पृथक प्रोटोन ऑरोर से ओजोन परत (Ozone layer) को नुकसान तो बहुत होता है, लेकिन ओजोन छेद बड़ा नहीं होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

नुकसान ज्यादा लेकिन
सिम्यूलेशन के तुलना में शोधकर्ताओं ने पाया कि नुकसान अनुमान से कहीं ज्यादा हो रहा है. ऑरोर के नीचे की 10 से 60 प्रतिशत ओजोन ही शुरू होने के 90 मिनट में ही नष्ट हो जाती है. चूंकिं  यह स्थानीय नुकसान पृथक प्रोटोन ऑरोर के ठीक नीचे होता है शोधकर्ता इसे एक पिन की छेद की तरह मानते है. इस अध्ययन में प्लाज्मा भौतिकी, ऑरोर विज्ञान, वायुमंडलीय संरचना संवेदन, विद्युतचुबंकीय तरंग इंजीनियरिंग जैसे कई विशेषज्ञों ने योगदान दिया था.

पृथक प्रोटोन ऑरोर को वैज्ञानिक ऑल स्कायकैमरा द्वारा अवलोकित किया जा सकता है. यह एक कमजोर तरह का ऑरोर होता है. लेकिन इसे साधारण लोग भी देख सकते हैं. यह पहला अवलोकन अध्ययन है जिससे में दुनिया को दर्शाया गया है कि विकिरण पट्टी इलेक्ट्रॉन का अंतरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने का वायुमंडल के बदलावों पर क्या सीधा, तुरंत और स्थानीय प्रभाव होता है.