भारत के कानून में मूनलाइटिंग को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया गया है.
नई दिल्ली. दिग्गज आईटी कंपनी विप्रो ने हाल ही में 300 कर्मचारियों को कंपनी से निकाल दिया है. इस फायरिंग की वजह थी कि वे कर्मचारी विप्रो के साथ तो काम कर ही रहे थे, साथ ही वे विप्रो के कंपीटिटर्स के लिए भी काम कर रहे थे. इस टर्म को मूनलाइटिंग का नाम दिया गया है और पिछले 2 महीनों से इसकी खूब चर्चा है. कुछ कंपनियों ने मूनलाइटिंग कर रहे कर्मचारियों को वार्निंग दी है तो कुछ कंपनियों ने इसे इस शर्त के साथ एक्सेप्ट कर लिया है कि उनका काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.
अभी तक की कार्रवाई के हिसाब से देखा जाए तो आईटी कंपनियां इसे स्वीकार करने के पक्ष में कतई नहीं हैं और भविष्य में भी इसे स्वीकार किए जाने के आसार नहीं है. भविष्य में क्या होगा, यह पक्के तौर पर कहना मुश्किल है, लेकिन अभी कि लिहाज से भारत का कानून क्या कहता है, इसे जरूर समझा जा सकता है. मनीकंट्रोल ने इस मामले पर कुछ विशेषज्ञों से बात करके जानने की कोशिश की.
एक्सपर्ट मौटे तौर पर कहते हैं कि भारत में आईटी प्रोफेशनल्स और एडमिनिस्ट्रेटिव या सुपरवाइज़र की पोजिशन पर काम कर रहे कर्मचारियों को लेकर किसी विशेष कानून नहीं है. हालांकि विशेषज्ञों ने इस मुद्दे को बारीकी से समझाने की कोशिश की है, मसलन मूनलाइटिंग पर कंपनियां कर्मचारियों को निकाल क्यों रही हैं और क्या कहीं पर उन निकाले गए कर्मचारियों के लिए कोई उम्मीद की किरण है?
भारतीय कानून में मूनलाइटिंग?
सीधा कहें तो भारत के कानून में मूनलाइटिंग को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया गया है. क्यों? क्योंकि कानून की किताबों में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है. मूनलाइटिंग नाम भी एक-साथ एक से अधिक नौकरी करने वालों को पहचानने के लिए दिया गया है, जोकि भारतीय कानून में नहीं है. हालांकि, कारखाना अधिनियम (Factories Act) 1948 की धारा 60 में कारखानों में काम करने वाले वयस्कों के दोहरे रोजगार पर रोक लगाई गई है.
वर्कर या ‘वर्कमैन’ कौन है? औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, या औद्योगिक संबंध संहिता 2020 के अनुसार, ‘वर्कर’ की परिभाषा का अर्थ किसी भी उद्योग में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति है, जो किसी रिवार्ड के लिए काम करता है, फिर चाहे रोजगार की शर्तें व्यक्त की गई हों या सीधे तौर पर व्यक्त न की गई हों अथवा निहित हों. यहां व्यक्त शर्तें वे हैं, जिनका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है या दो पार्टियों (कर्मचारी और काम देने वाला) द्वारा जिन पर सहमति बनी हो, जबकि निहित (implied) शर्तें वे हैं जो लिखित में नहीं है और माना गया है कि उन पर दोनों पार्टियों की सहमति है.
यहां गौर करने वाली एक बात यह भी है कि वर्कमैन अथवा श्रमिक एक ऐसी टर्म है, जिसमें मैनेजर या एडमिनिस्ट्रेटिव, सुपरवाइजरी करने वालों को छोड़कर बाकी सभी श्रमिक हैं. हालांकि, श्रमिक की परिभाषा आईटी वर्कर्स के लिए है या नहीं, यह साफ नहीं है.
क्या कहा एक्सपर्ट ने?
विक्टोरिया लीगल – एडवोकेट्स और सॉलिसिटर के मैनेजिंग पार्टनर आदित्य चोपड़ा ने बताया कि हालांकि कई नियोक्ता अथवा इम्प्लॉयर दो जगहों पर एक साथ काम करने को प्रतिबंधित करते हुए इसे अनुबंध को स्पष्ट करते हैं. इसका उद्देश्य आराम के लिए दिए गए समय के दौरान कंपीटिटर्स के लिए काम करने पर रोक लगाना है. वैसे भी यह रोजगार (इम्प्लॉयमेंट) की एक निहित (implied) शर्त है, जिसे लिखा नहीं, बल्कि समझा जाता है.
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उन्होंने कहा कि इसी तरह के नियम संबंधित राज्यों द्वारा बनाए गए हैं जो दोहरे रोजगार पर भी रोक लगाते हैं, जैसे बॉम्बे शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1948 की धारा 65 और दिल्ली शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1954. चोपड़ा ने कहा, “निष्कर्ष ये है कि हालांकि भारत में मूनलाइटिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है, फिर भी यह एक ऐसा काम है, जिसके दोषी पाए जाने पर कंपनी अनुबंध के उल्लंघन के लिए कर्चमारी को सेवाओं से बाहर करके दंडित कर सकती है.”
सर्विस लेटर पर सहमति को समझना जरूरी
चोपड़ा ने कहा कि जब किसी कर्मचारी को औद्योगिक रोजगार स्थायी आदेश अधिनियम, 1946 (Industrial Employment Standing Order Act, 1946) के अनुसार एक सर्विस लेटर जारी किया जाता है, जिसमें IT और ITeS क्षेत्र भी शामिल हैं, तो इससे पता चलता है कि कर्चमारी रोजगार शुरू होने की तारीख से लेकर रोजगार की अंतिम तारीख तक नियोक्ता के साथ लाभप्रद पद पर था.
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सर्विस लेटर पर सहमति देने वाले प्रत्येक कर्मचारी को उल्लिखित शर्तों का पालन करना होता है. उदाहरण के लिए, इंफोसिस ने स्पष्ट रूप से कर्मचारियों को चेतावनी दी थी कि मूनलाइटिंग पर बर्खास्तगी हो सकती है. एच आर द्वारा भेजे गए ईमेल में लिखा गया “याद रखें – नो टू-टाइमिंग्स – नो मूनलाइटिंग.” कंपनी ने कहा कि उसकी इम्पलॉई हैंडबुक और आचार संहिता में दो जगह रोजगार करने की अनुमति नहीं है.
कंस्लटेंट्स और एडवाइजर्स के बारे में क्या?
कंस्लटेंट या एडवाइजर के तौर पर काम करना भी एक तरह का रोजगार है. हालांकि यह फुल-टाइम नहीं होता, लेकिन इसमें भी कंस्लटेंट और नियोक्ता कंपनी के बीच हुआ कॉन्ट्रैक्ट बेहद महत्व रखता है. इसमें यदि कंपनी ने लिखा है कि कंस्लटेंट या एडवाइजर किसी दूसरी कंपनी के लिए वही काम नहीं कर सकता तो वह नहीं कर पाएगा. डीएसके लीगल के पार्टनर सुयश श्रीवास्तव ने इस बारे में कहा कि यदि कॉन्ट्रैक्ट एक्सक्लूसिव है और कमर्चारी बिना सहमति के दूसरी कंपनी के साथ काम करता है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जा सकता है. यदि कॉन्ट्रैक्ट एक्सक्लूसिव नहीं भई है तो इसका मतलब यह नहीं कि कर्मचारी को दूसरी कंपनी के साथ काम करने की खुली छूट है.
विप्रो ने कर्मचारियों को कैसे पकड़ा और फायर किया?
हाल ही में, विप्रो के चेयरमैन रिषद प्रेमजी ने कहा कि आईटी कंपनी ने अपने 300 कर्मचारियों को एक ही समय में अपने एक प्रतियोगी के साथ काम करते हुए पाया था, और कहा कि ऐसे मामलों में उनकी सेवाओं को समाप्त करके कार्रवाई की गई थी.
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श्रीवास्तव ने इस पर और विस्तार से बताते हुए कहा, “विप्रो में कर्मचारियों और वेंडर्स की की वार्षिक ऑडिटिंग के समय इम्प्लॉयर के पोर्टल से यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) एक्सेस किए गए. इसमें EPFO की वेबसाइट से पता चला कि कुछ कर्मचारी दूसरी कंपनियों के लिए भी काम कर रहे थे और विप्रो के लिए भी.”
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