अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में 18 जून को इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने एक गुरुद्वारे पर हमला किया था.
ऐसा लगता है भारत में पैगंबर मोहम्मद पर भड़काऊ टिप्पणी के बाद फैले गुस्से के बीच किए गए इस हमले के तीन मकसद थे.
दरअसल ये हमला भारत में सत्तारुढ़ पार्टी बीजेपी के दो पदाधिकारियों की पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी से भड़के गुस्से को भुनाने की कोशिश थी.
इसके साथ ही इस्लामिक स्टेट अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी तालिबान की सत्ता को भी चुनौती देना चाहता था.
ये तालिबान की अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने की प्रतिबद्धता को चुनौती तो है ही. इसके जरिये इसने अपने एक और कट्टर प्रतिद्वंद्वी अल-कायदा को भी चुनौती दी है,जो पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी का बदला लेने के मामले में आईएस से ज्यादा मुखर रहा है.
अल-कायदा ने पैगंबर विवाद में ज्यादा तेजी से प्रतिक्रिया दी और भारत में हिंसा भड़काने की कार्रवाई को समर्थन देने के मामले में भी ज्यादा मुखर रहा. जबकि गुरुद्वारे पर हमले से पहले आईएस ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया था.
कुछ आईएस समर्थकों ने इस विस्फोट के बाद इस हमले का श्रेय लिया.
जिहादियों ने पैगंबर मोहम्मद की टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि इसका हिंसक जवाब दिया जाएगा. लेकिन आईएस ने सबसे पहले हिंसक प्रतिक्रिया दी.
इस्लामिक स्टेट ने क्या कहा?
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ड्रामा क्वीन
समाप्त
इस्लामिक स्टेट (आईएसकेपी) के ‘खुरासान प्रांत’ के केंद्रीय बयान में कहा गया है कि 18 जून का हमला पैगंबर मोहम्मद के ‘बचाव’ में किया गया था और ऐसा हमला होना भी ‘चाहिए’. इसका मतलब जवाब देने का यही माकूल तरीका है. ये शब्द कि ‘ऐसा हमला होना चाहिए’ दरअसल सांकेतिक तौर पर उन मुस्लिमों और जिहादियों की आलोचना है जिन्होंने पैगंबर पर टिप्पणी के खिलाफ प्रतिक्रिया देने में तेजी तो दिखाई थी और बहिष्कार का नारा दिखाया था लेकिन कोई सीधी कार्रवाई नहीं की थी.
इस्लामिक स्टेट की न्यूज़ एजेंसी अमक ने ही हमले की जिम्मेदारी लेने की खबर को ब्रेक किया था. इसी के जरिये पता चला कि अफ़ग़ानिस्तान में सिखों के गुरुद्वारे पर इस्लामिक स्टेट ने हमला किया है. इस हमले को लेकर अमक का नजरिया साफ था.
अमक ने कहा, ” ये हमला पैगंबर मोहम्मद पर हुए हमले के जवाब में किया गया है. अपने बयान में इसने भारत सरकार के एक अधिकारी की अफगानिस्तान यात्रा की ओर भी इशारा किया है. दरअसल जून की शुरुआत में भारत का एक शिष्टमंडल तालिबान से द्विपक्षीय रिश्तों पर बात करने के लिए काबुल पहुंचा था.
इस्लामिक स्टेट ने सिखों के गुरुद्वारे पर हमला को सही साबित करने के लिए कहा कि उसने यहां मौजूद सिख और हिंदू श्रद्धालुओं, दोनों को निशाना बनाया है.
इस्लामिक स्टेट ने दावा किया है इसने काबुल में किए गए इस हमले में कुल 30 हिंदुओं और सिखों को मार दिया या घायल किया है. इसके अलावा तालिबान के 20 सदस्य भी मारे गए हैं या घायल हुए हैं. मुख्यधारा के मीडिया की खबरों के मुताबिक हमले में एक सिख श्रद्धालु और तालिबान के एक सदस्य की मौत हो गई है. हालांकि कुछ दूसरी रिपोर्टों मे कहा गया है कि तालिबान की वजह से इस्लामिक स्टेट के हमलावर घटनास्थल पर नहीं घुस पाए.
अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों का एक बहुत छोटा समयुदाय रहता है. इस्लामिक स्टेट लगातार उन पर हमले करता रहा है. 2018 और 2020 पर सिखों पर आत्मघाती दस्तों के जरिये बड़े हमले हुए. हालिया हमले के पहले आईएस के केंद्रीय कमान और मीडिया संगठन ने पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के मामले में कोई टिप्पणी नहीं की थी. जबकि उसके प्रतिद्वंद्वी अल-कायदा और उसके समर्थकों ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी.
हालांकि खुरासान प्रांत की मैसेजिंग पर फोकस रखे हुए अर्द्ध आधिकारिक मीडिया संगठन अल-अजीम ने कुछ दिनों पहले अफगानिस्तान में मौजूद ”हिंदू” समुदाय पर हमले की चेतावनी दी थी. उसने इससे पहले वहां सिखों पर आईएस के हमले की याद दिलाई थी.
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आईएस भारत के अंदर हमले करने में नाकाम रहा है. सिवाय कश्मीर में छोटे-मोटे हमले करने के. लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है उसने अफगानिस्तान में श्रद्धालुओं को निशाना बना कर सॉफ्ट टारगेट चुना. अफगानिस्तान में आईएस का आईएसकेपी शाखा अभी भी सक्रिय है.
ग्लोबल जिहाद के नेतृत्व को लेकर अल-कायदा और आईएस की मौजूदा प्रतिद्वंद्विता में काबुल में गुरुद्वारे पर हमले को आईएस अलकायदा पर बढ़त की तरह पेश करेगा. वह बताएगा कि हम दस्तावेज जारी करने और ऑनलाइन चेतावनी देने के बजाय सीधी और तुरंत कार्रवाई करते हैं. खुद को तेजी से कार्रवाई करने वाले संगठन के तौर दिखा कर वह जिहादियों के बीच अपनी छवि और मजबूत करना चाहता है. इससे उसे अपने संगठन में जिहादियों की भर्ती में भी मदद मिलेगी.
इंटरनेट पर आईएस के कई समर्थकों ने तुरंत कार्रवाई की उसकी पहल को सराहा है. यह एक तरह से अल-कायदा पर हमला भी है.
इस हमले का एक मकसद ये भी रहा होगा.
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तालिबान को नीचा दिखाना चाहता है इस्लामिक स्टेट
जिहादी प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में देखें तो यह एक तरह से तालिबान को भी नीचा दिखाना चाहता था. पिछले साल अफगानिस्तान में सत्ता में आने के बाद वह लगातार तालिबान को कमजोर करने की कोशिश में लगा है.
इस तरह के हमले कर वो ये दिखाना चाहता है कि तालिबान अफगानिस्तान में सुरक्षा और स्थिरता नहीं ला सकता. वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में भी नाकाम रहेगा और अफगानिस्तान को जिहादियों का मैदान बनने से भी नहीं रोक सकेगा.
18 जून के हमले को लेकर आईएस ने तालिबान का ये कह कर मजाक उड़ाया को इसे खत्म करने और हालात काबू करने में उसे तीन घंटे लग गए.
आईएस का तीसरा और अहम मकसद ये है कि वह पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी से पूरी दुनिया के मुस्लिमों के बीच फैले गुस्से को भुनाना चाहता है और खुद को इस्लाम के रक्षक के तौर पर पेश करना चाहता है.
हाल में इसने हिंदुओ और सिखों का हवाला देकर तालिबान को ‘मूर्तिपूजकों के संरक्षक’ कहा था. ये गौर करने वाली बात है कि यह हमला तालिबान सरकार की ओर से भारतीय सरकार के सदस्यों की मेजबानी के कुछ ही दिनों बाद हुआ है. इस तरह ये तालिबान की इस्लामिक विश्वसनीयता पर भी चोट पहुंचाने की कोशिश है.
कुछ जिहादियों ने हाल में तालिबान के उस बयान की निंदा की है, जिसमें अफगानिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता की बात कही गई थी.
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इस्लाम के संरक्षक के तौर पर दिखना चाहता है आईएस
हाल में आईएसकेपी समर्थक मीडिया ग्रुप अल-अजीम ने एक लंबा बयान जारी कर तालिबान की इस बात की निंदा की थी कि उसने पैगंबर मोहम्मद मामले में भारत को कमजोर जवाब दिया है. दरअसल दो दिन पहले तालिबान ने पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी की निंदा की थी और भारत को ऐसी कट्टरता को रोकने के लिए कहा था जो इस्लाम का ‘अपमान’ करती है.
इस हमले के जरिये इस्लामिक स्टेट यह दिखाने की कोशिश कर रहा है वह इस्लाम का एक मात्र असली रक्षक है.
आईएस ने 2020 में सिख श्रद्धालुओं पर हमले करते हुए भी इसी तरह का दावा किया था. उसने कहा था कि कश्मीर में मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है वह उसका बदला ले रहा है.