इतिहास के ‘इन’ अजीबोगरीब फैशन ट्रेंड्स को नहीं जाना, तो क्या जाना!

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कहते हैं जमाना बदल रहा है और उसके साथ ही फैशन की दुनिया में हर रोज नए रंग देखने को मिलते हैं। वर्तमान में फटी जींस का ट्रेंड जहां एक लोगों के तबके को बहुत भाता है, वहीं दूसरे तबके के लोग इसे अजीब तरह का फैशन ट्रेंड समझते हैं।

अगर हम अपने इतिहास के पन्नों में झांककर देखे तो ऐसे ही अजीबो-गरीब फैशन ट्रेंड्स उस समय भी देखने को मिल जाएंगे। कुछ फैशन ट्रेंड्स तो अजीब होने के साथ खतरनाक भी थे, जिनसे लोगों की जान पर भी बन आई थी। कौन से थे वो ट्रेंड्स, आइए जानते हैं-

क्रिनोलाइन

19वीं शताब्दी के मध्य में हूप स्कर्ट को ‘क्रिनोलाइन’ कहते थे। यह लंबी और घुमावदार हुआ करती थी। इन्हें ज्यादा चौड़ा और मोटा बनाने के लिए कपड़े की बहुत सारी लेयर के साथ सजाया जाता था। लेयर्स को गोल आकार में रखने के लिए इनमें स्टील या लकड़ी के हूप लगाए जाते थे। जिसके बाद यह स्कर्ट बनकर तैयार होती थी और यह इतनी ज्यादा लंबी और चौड़ी होती थी कि एक समय में एक कमरे में सिर्फ 3-4 महिलाएं ही आ पाती थीं।

कहते हैं कि इन्हें पहनना बहुत मुश्किल हुआ करता था। ये इतने ज्यादा चौड़े होते थे कि इन्हें पहनकर महिलाएं किसी वाहन में बैठकर सफर करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थीं। यह कॉटन और लिनन के फैब्रिक से बनी होती थी जिसे आग जल्दी पकड़ने का खतरा भी बहुत होता था। 

इसके बहुत महंगे होने की वजह से इसे अमीर घर की औरतें ही पहना करती थीं। इस स्कर्ट को पहनकर बहुत सी दुर्घटनाओं का भी सामना करना पड़ता था। इससे जुड़ा एक किस्सा यह है कि सन 1863 में चिली की राजधानी सैंटियागो के एक चर्च में  आग लग गई, जिसमें 2 से 3 हज़ार लोगों के मरने की खबर आई थी।

कहते हैं उस चर्च में आग लगने की वजह से अफरा-तफरी मच गई थी और क्रिनोलाइन ड्रेस इतनी बड़ी थी ज्यादातर महिलाओं का दरवाजे से बाहर निकलना मुश्किल हो गया और वह वहीं फंसी रह गई। इस घटना के बाद इसके चलन को बंद कर दिया गया था।

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‘लेड और आर्सेनिक’ मेकअप

16वीं शताब्दी में मेकअप करना वेश्या और निचले दर्जे की महिलाओं का काम माना जाता था। इस दौरान कुछ नए तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स आए जिनसे महिलाओं को प्राकृतिक सुंदरता मिला करती थी।

लेकिन, उन ब्यूटी प्रोडक्ट्स में लेड और आर्सेनिक का इस्तेमाल किया जाता था। ये दोनों ही त्वचा के लिए बहुत हानिकारक माने जाते हैं। इसके विषय में कहा जाता है कि ऐसे प्रोडक्ट्स को अपने चेहरे के धब्बे मिटाने के लिए महारानी एलिज़ाबेथ फर्स्ट इस्तेमाल किया करती थीं। 

महारानी को देखकर बाकी महिलाओं ने भी इन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। जिसके बाद उन्हें स्किन की समस्या का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, आर्सेनिक के खतरनाक होने के बावजूद 19वीं शताब्दी में इसके वेफर बनाकर बेचा जाने लगा, इसके लिए उनसे कहा गया कि इसे खाने से उनके चेहरे पर मौजूद पिंपल ठीक हो जाएंगे।

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होबल स्कर्ट

सन 1910 में महिलाएं एक ऐसी ड्रेस यानी होबल स्कर्ट को पहना करती थीं। इस स्कर्ट को पहनकर वह ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। दरअसल, इस स्कर्ट में नीचे रस्सियों का प्रयोग होता था जिसकी वजह से इन्हें पहनकर महिलाएं बेहद धीरे और छोटे-छोटे कदम ही चल पाती थीं।

इसे बनाने का आईडिया फ्रांस के डिज़ाइनर पॉल पॉइरेट को आया था। कहते हैं कि इसे बनाने का विचार उन्हें तब आया जब राइट बंधुओं की प्लेन में सबसे पहले एक महिला सवार हुई, ताकि महिला के कपड़े उड़े नहीं इसके लिए उन्हें नीचे रस्सियों से बाँध दिया गया था।लिहाजा, कहते हैं यहीं से पॉल को होबल स्कर्ट बनाने का आईडिया आया।

ये बहुत ही असुविधाजनक पोशाक थी, लेकिन फिर भी महिलाओं में इसे लेकर क्रेज था। कहा जाता है इससे कई महिलाओं की मौत भी हो गई थी। खैर, पहले विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ ही होबल स्कर्ट का ट्रेंड धीरे-धीरे समाप्त हो गया था।

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चोपीन

आज तो प्लैटफॉम काफी पॉपुलर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लैटफॉम हील सबसे पहले चोपीन के रूप में बाज़ार में आई थीं। चोपीन ऐसे फुटवियर थे, जिन्हें पहनकर महिलाओं का कद तो ऊँचा दिखने लगता था लेकिन इन्हें पहनकर चलना बहुत ही मुश्किल भरा काम था। 

16वीं शताब्दी में स्पेन और इटली से चोपीन मशहूर होना शुरू हुआ था। इसे पहनकर महिलाएं अपने कद के अलावा अपनी लम्बी-लम्बी ड्रेसेस को भी जमीन से टकराने देने से बचाती थीं। इसे पहनकर चलाना इतना ज्यादा मुश्किल हो जाता था, कहते हैं इसके लिए महिलाओं को अपने साथ एक नौकर भी रखना पड़ जाता था।

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फुट-बाइंडिंग का फैशन

चीन के सम्राट ली यू के शासनकाल के दौरान फुट-बाइंडिंग फैशन बहुत चला था। 970 ई में कहा जाता है कि राजा की सबसे प्रिय पत्नी याओ-नियांग ने अपने पैरों को चंद्रमा के आकार में बांधा और राजा के सामने अपने पैर के अंगूठों के सहारे डांस किया।

जिसके बाद राजा की बाकी पत्नियों ने भी राजा को खुश करने के लिए इस तरह की नक़ल की और उसके बाद धीरे-धीरे यह फैशन ट्रेंड बन गया। साउथ चीन में यह उच्च समाज और धन के प्रतीक के तौर पर देखा जाने लगा। पैर मोड़ने की इस प्रक्रिया में पैरों की हड्डियों को तोड़कर उन्हें आकार दिया जाता था। इस प्रक्रिया मेंमुश्किलें थीं, इसे करते समय संक्रमण, गैंग्रीन और कई बार विकलांगता भी हो जाती थी। बाद में चीन में इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा दिया था।

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ओहागुरो

चमकते दांत की कामना हम सभी करते हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जापान के लोगों को अपने दांत काले करने का अजीब शौक चढ़ा था। अपने सफेद दांतों को काला करने की प्रक्रिया को ओहागुरो कहते थे। उस समय यह जापान में महिलाओं के बीच बहुत पॉपुलर हुआ था। 

दांतों को कला रंग देने के लिए महिलाएं आयरन से बना काला रस पीती थीं। इस रस में दालचीनी और दूसरे मसालों को भी मिक्स किया जाता था। कहते हैं कि जापानी की महिलाएं इस काले दांत के लुक के लिए अपने चेहरे को पॉउडर से बिलकुल सफेद कर लेती थीं, जिससे उनके काले दांत अलग ही दिखाई देने लगते थे। मध्य 18वीं शताब्दी में इस काम को बैन कर दिया गया।

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गले का आभूषण

बर्मा के कायन लोग लम्बी गर्दन होने को सुंदरता का प्रतीक मानते हैं। ऐसे में, वहां महिलाएं लंबी गर्दन करने के लिए गले में छल्ले पहनती हैं।

इससे उनके गले पर इतना ज्यादा दबाव पड़ता है कि धीरे-धीरे उनकी गर्दन काफी हद तक लम्बी हो जाती है। इन छल्लों को पहनना बहुत ही दर्दनाक होता है। साथ ही, इसे पहनने से महिलाओं का गला हमेशा के लिए वही आकार ले लेती है।

अब तो वैसे इन्हें पहनना महिलाओं ने बहुत कम कर दिया है। लेकिन, इन्हें देखने के लिए लोग बर्मा जाया करते हैं और इन महिलाओं के साथ फोटो क्लिक कराते हैं। बताते चलें, छल्ले पहनने वाली ये महिलाएं ‘जिराफ़ वुमन’ के नाम से बहुत मशहूर हैं। 

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देखा आपने इतिहास में महिलाएं कैसे सुंदर दिखने के लिए अपनी जान को भी खतरे में डालने से बिल्कुल नहीं कतराती थीं। वह लेड जैसे हानिकारक तत्व के सेवन से परहेज़ नहीं करती थीं

खैर, फैशन एक ऐसा ट्रेंड बन ही जाता है जिसे लोग फॉलो करने से शायद ही खुद को रोक पाते हैं, लिहाज़ा इतिहास में भी ज्यादातर महिलाएं खुद को इसमें शामिल कर ही लेती होंगी।