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क्या है डगयाली और क्या है इसका महत्व…

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में ऐसी कई मान्यताएं हैं, जिन पर यकीन करना आम इंसान के बस में नहीं है. ऐसी ही मान्यता डगयाली (चुड़ैल) की रात के बारे में है. जो आज व कल यानी 26 व 27 अगस्त को आ रही है. हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में आज से 2 दिन तक डगयाली (चुड़ैल) की रात मानी जाती है. इन 2 रातों को उवास व डुवास के रूप में जाना जाता है. हमारा मकसद किसी को डराना या अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है. लेकिन लोग इन दो रातों में खौफ खातें हैं. जिससे बचने के लिए दो दिनों के लिए लोग कई तरह के उपाए करते है.

शिमला में तो लोग अपने दरवाजे में टिम्बर के पत्ते लगाते हैं और अपने देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी करते हैं. भाद्रपद मास को वैसे भी काला महीना कहा जाता है. इस माह अमावस्या में ये डगयाली आती है. वैसे भी अमावस्या को काली शक्तियों के लिए उतम माना जाता है. माना जाता है कि इन 2 रातों में काली शक्तियाँ पुरे चरम पर होती है. इन 2 रातों में लोग खौफ के साये में जीते हैं. तांत्रिक साल में एक बार काली शक्तियों को जागृत करने के लिए इन्ही दो रातों में घोर साधना करते हैं.

ऐसा भी माना जाता रहा है कि इस माह सभी देवी-देवता सृष्टि छोड़ असुरों के साथ युद्ध करने अज्ञात प्रवास पर चले जाते हैं. इस माह की अमावस्या की रात को ही डगयाली या चुड़ैल की रात कहा जाता है. शमशान से लेकर घरों तक काली शक्तियों का राज होता है, जिनसे बचने के लिए ऊपरी शिमला में तो देवता रात भर खेलते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. इस दौरान देवता बुरी शक्तियों से लड़ाई करने चले जाते हैं जिस डर के कारण लोग अपने घरों के बाहर दीये जलाकर बुरी शक्तियों को भगाने का आह्वान करते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है इस देवताओं और बुरी शक्तियों के बीच की लड़ाई में यदि देवता जीत जाते हैं तो पूरा साल सुख-शांति रहती है. यदि देव-दानव के इस युद्ध में देवता हार जाते हैं. तो प्राकृतिक आपदाओं का बोलबाला रहता है. अमावस्या में ये डगयाली आती है जिसमें असुरी व बुरी शक्तियाँ अपनी ताकत बढ़ाने के लिए क्रियाएँ करती है. ऐसे में लोगों को रात में बाहर निकलने से परहेज करना चाहिए. अपने देवी देवताओं का आहवान करना चाहिए.

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