prashant kishor jan surajya: प्रशांत किशोर ने कहा है कि उन्हें बिहार में जन सुराज अभियान के लिए अपने पूर्व ग्राहकों से वित्तीय सहायता मिल रही है, जिनमें से कई अब अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री हैं। वह दो अक्टूबर से 3500 किलोमीटर की एक पदयात्रा पर हैं । उनका अभियान पूर्ण राजनीतिक दल का स्वरूप ले, उससे पूर्व वह अपने गृह राज्य के हर कोने में पहुंचकर लोगों की राय लेना चाहते हैं।
पटना: बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की यह कोशिश तो जरूर हो रही है कि आगामी चुनाव में वह एक फैक्टर बन सकें। अब चुकी वह चुनावी रणनीतिकार हैं तो उनके जनसुराज यात्रा का कोई न कोई तो मकसद होगा। इसे किसी आंकड़ेबाज के प्रयास मानना आंखों में धूल झोंकना ही है। और अगर कुछ ऐसी सोच है कि बिहार की कमान उनकी हाथों में हो तो इसके आधार भी है। और वह इस आधार को सगर्व कहते हैं कि छह राज्य के मुख्यमंत्री बनाया है हमने। यहां हमने वो डिफाइन भी करते हैं अपना चुनावी प्रचार, आंकड़ों का खेल और चुनावी प्रबंधन के साथ खड़े होते हैं।
राज्य के छह सीएम बनाया, यह कहने का तात्पर्य क्या है?
दरअसल, जिस छह सीएम बनाने के बयान का मूल्यांकन या राजनीतिक निहितार्थ हम निकाल रहे हैं वह उस सवाल से निकल कर आया है जिसमें उनकी यात्रा पर सवाल खड़े किए गए कि धन कहा से आ रहा है। इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब जनता दल यू (जेडीयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने जनसूराज यात्रा पर सवाल उठाया कि इसके पीछे फंडिंग किसका है। श्री सिंह इस यात्रा की फंडिंग को लेकर इतना गंभीर हो गए कि केंद्रीय एजेंसी से जांच तक की मांग उठा ली। तब प्रशांत किशोर ने बचाव में यह सब कहा कि छह राज्यों के सीएम बनाने में मेरी कंपनी की भूमिका रही है वह हमारी मदद कर रहे हैं। वह भी इसलिए कि तब हमने उनसे मेहनताना नहीं लिया और तब एक वादा लिया कि जब बिहार में एंटी बीजेपी और एंटी लालू की मुहिम चलाएंगे तो हमे मदद करेंगे। और यह यात्रा उन्हीं छह सीएम के मदद की देन है।
राजनीतिक गलियारों में क्या चल रहा है?
राजनीतिक गलियारों में इस यात्रा की कई थ्योरी चल रही है। एक तो यह कि प्रशांत किशोर का यह अभियान एंटी बीजेपी चलाई जा रही है और यह सीधे सीधे कांग्रेस को मदद पहुंचाना है। कहा जाता है कि राहुल गांधी व सोनिया गांधी से मिलने के बाद इस अभियान की नींव रखी गई। और तभी एक रणनीति के तहत राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर और प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा पर निकले। ऐसे भी प्रशांत किशोर जब इस यात्रा को लेकर भूमिका बना रहे थे तब यह बातें क्षण कर आ रही थी कि यह मुहिम एंटी बीजेपी और एंटी लालू प्रसाद है। पीके की नजर में नीतीश कुमार कोई मुद्दा नहीं नजर आते। उनका मानना था कि 2024 के बाद जेडीयू या तो बिखर जायेगी या फिर आरजेडी में विलीन हो जायेगी। आज आरजेडी और जेडीयू को एक सिंबल के नीचे लाने की जो पहल दिख रही है उसे पीके ने बहुत पहले भांप लिया।
पीके आए बचाव के मुद्रा में
पीके गर बचाव की मुद्रा में आए हैं तो इसकी वजह भी है। दरअसल, वो नहीं चाहते कि जन सूरज यात्रा पर किसी का ठप्पा लगे। इसलिए वे कहते भी हैं कि खर्च तो वहां होता है जहां हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल होता हो। जहां गाड़ियों से भर भर के लोग लाए जाते हैं। जहां रैली के लिए मैदान और बड़े मंच की जरूरत हो। जहां बड़े बड़े इश्तहार लगाए जाए और अखबारों को भरी विज्ञापन दिया जाए। यहां तो यह कुछ भी नहीं हो रहा है।
क्राउड फंडिंग का दिया फॉर्मूला
पीके ने राजनीति में एक नया टर्म उसे किया क्राउड फंडिंग। तर्क यह है कि बिहार की आबादी लगभग 13 करोड़ है। आगर इसमें दो करोड़ लोगों से भी 100 रुपए लिए जाएं तो यह 200 करोड़ जा पहुंचेगा। इसलिए जो भी इस यात्रा पर खर्च हो रहा है वह आपसी फंडिंग से हो रहा है और यह क्राउड फंडिंग का एक बहुत छोटा सा अंश है।
क्या है इस संवाद का असली मकसद
दरअसल, छह राज्य के मुख्यमंत्री है इस यात्रा के पीछे। इस संवाद को जनता के बीच लाने का एक बड़ा मकसद है। और यह मकसद है अपने प्रति, जन सूरज यात्रा के प्रति विश्वास पैदा करना। जातीय जकड़न से जकड़ा बिहार के लिए अर्थ भी एक बड़ा फैक्टर होता है। सो, पीके ने बड़ी सावधानी से राज्य की जनता के बीच यह संदेश दिया कि जिसके पीछे राज्य के छह मुख्यमंत्री हैं। उसके लिए एक राज्य का चुनाव लड़ना और एक मुख्यमंत्री को गद्दी से उतरना कितना आसान है। शायद यही वजह भी है कि उन्होंने किसी मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया ताकि जनता अपने सामर्थ्य से ढूंढते रहे।
क्या कहती है बीजेपी
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि प्रशांत किशोर केवल भ्रम फैला रहे हैं। ये कांग्रेस को मदद कर एंटी बीजेपी मूवमेंट चला रहे हैं। इनका असली मकसद बिहार में है कि सवर्ण विशेष कर ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस का दामन थाम ले। पर ऐसा होगा नहीं। पीके अब बीजेपी की मुहिम सबका साथ सबका विकाश के आगे फेल हो रहे हैं। उनका यह अभियान भी एक पार्टी का नहीं बल्कि कंपनी का अभियान हो गया है जिसमें कुछ खास नेताओं का धन लग रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय जी कहते हैं कि पीके बिहार में स्पष्ट विकल्प बनना चाहते हैं। इस रास्ते में वे यह भी बता ना चाहते हैं कि जब वे छह सीएम बना सकते हैं तो खुद को सीएम क्यों नहीं।