Jagannath Puri News, जगन्नाथ पुरी मंदिर में स्थित अरुण स्तंभ में दरार आने के बाद से कई तरह के शकुन अपशकुन की बातें लोग कर रहे हैं। लोग तरह-तरह की आशंका भी जता रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषशास्त्र में इस तरह की घटनाओं को लेकर क्या कुछ कहा गया है।
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ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर के सिंहद्वार के सामने मौजूद 33 फ़ीट 8 इंच ऊंचे अरुण स्तंभ में अभी हाल ही में उभरी दरार आने के बाद वहां श्रद्धालुओं में इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। क्या ओडिशा में कोई राजनीतिक हलचल मचेगी या प्राकृतिक आपदा से ओडिशा में जनता को परेशानी होगी। आखिर स्तंभ में दरार आने के क्या हैं मायने, आइए जानते हैं
ऐस्ट्रॉलजर सचिन मल्होत्रा से मंदिर के स्तंभ में दरार आने को लेकर ज्योतिषशास्त्र में क्या कुछ कहा गया है।
जगन्नाथ मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले 18वीं शताब्दी में स्थापित अरुण स्तंभ के दर्शन करते हैं।
मेदिनी ज्योतिष में शकुन तथा प्राकृतिक उत्पातों के अध्ययन से प्राचीन काल में राज्य तथा राजा के संबंध में शुभ-अशुभ घटनाओं का फलकथन किया जाता था। पांचवी सदी के ग्रंथ बृहत् संहिता के उत्पात-अध्याय में भूमि, आकाश, अंतरिक्ष, देव-स्थान (मंदिर) आदि में प्रकृति व स्वभाव के विपरीत लक्षण दिखाई देने को उत्पात कहा जाता हैl इस अध्याय के आठवें श्लोक में ‘शिवलिंग, देव-प्रतिमा, मंदिर, मूर्तियों आदि के टूटने, फटने, बिना जल के गीले होने, आवाज़ आने संबंधित उत्पातों को राजा के लिए विशेष रूप से अपशकुन माना गया है।
पिछले वर्ष गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर के शिखर पर बिजली का गिरना वहां के मुख्यमंत्री के सिंहासन के लिए अशुभ साबित हुआ। गत वर्ष 13 जुलाई को गुजरात के प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर की गुंबज पर 52 गज की ध्वजा पर बिजली गिरने से उसमें आग लग गयी थी , जिससे मंदिर की कुछ दीवारें काली भी पड़ गयी।
बाद में एक चौकाने वाले घटनाक्रम में 12 सितंबर को मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अपने सभी मंत्रियों के साथ इस्तीफा दिया और केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर भूपेंद्र भाई पटेल के नए मुख्यमंत्री बने l अब यह देखना दिलचस्प होगा की क्या ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर के सामने अरुण स्तंभ में आयी दरार, क्या नवीन पटनायक और ओडिशा के लिए कोई संकेत दे रही है?
नवीन पटनायक की कुंडली और अरुण स्तंभ का शकुन
16 अक्टूबर 1946 को रात 1 बजे कटक ओडिशा में जन्मे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की कुंडली कर्क लग्न की है और इनकी चंद्र राशि मिथुन है। अप्रैल 1997 में अपने पिता और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के निधन के बाद राजनीति में आए नवीन पटनायक जल्द की सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। वह वर्ष 1998 से 2000 तक वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे और बाद में विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को जीत दिलाकर मुख्यमंत्री बने।
नवीन पटनायक के लिए अप्रैल 2023 तक कठिन समय
पिछले 20 वर्षों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर विराजमान नवीन पटनायक की कर्क लग्न की कुंडली में सिंहासन स्थान यानी चतुर्थ भाव में योगकारक मंगल तथा नवमेश गुरु का प्रबल राजयोग बना हुआ है। इनकी कुंडली में विवाह स्थान यानी सप्तम भाव के अधिपति शनि अपने स्वयं के नक्षत्र पुष्य में होकर लग्न में बैठें हैं जिस कारण से वह आजीवन अविवाहित रहे। वर्तमान में केतु की विंशोत्तरी दशा में शनि की अशुभ अंतर्दशा फरवरी 2022 से अप्रैल 2023 तक चलेगी जो इनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है।