“इतिहास वो है जिसे हम बदल नहीं सकते. इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने, ये उस समय घटा…. हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना?…. अब हमको कोई आंदोलन करना नहीं है..”
नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग, तृतीय वर्ष 2022 के समापन समारोह के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने जो भाषण दिया उसे लेकर हर तरफ चर्चा है.
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा – हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना?
ये भाषण ऐसे वक्त पर दिया गया जब मस्जिदों, ऐतिहासिक इमारतों के हिंदू अतीत को लेकर अदालतों में याचिकाएं डाली गई हैं, कुतुब मीनार, जामा मस्जिद, ताज महल के अतीत को लेकर बहस चल रही है. बहस ये भी कि 400, 500, 600 साल या और उससे पहले किसने कितने मंदिर तोड़े और क्यों तोड़े और अब आगे क्या हो.
बीबीसी से बातचीत में ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील अभय यादव ने कहा कि बयान का स्वागत होना चाहिए.
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु हरि शंकर का कहना था, “जहां-जहां मंदिर तोड़े गए, उनकी पुनर्स्थापना की लड़ाई हम लड़ेंगे. ज्ञानवापी हमारी आस्था का केंद्र है और उसके लिए सौहार्दपूर्ण रूप से झगड़ा नहीं निपट सकता है, इसलिए हम अदालत गए.”
अपने भाषण में संघ प्रमुख ने ज्ञानवापी मसले को साथ मिल-बैठकर सुलझाने या फिर उस पर अदालत के फ़ैसले को मानने को कहा था.
वरिष्ठ पत्रकार और आरएसएस पर क़िताब लिख चुके विजय त्रिवेदी के मुताबिक़ मोहन भागवत के बयानों का मतलब है कि वो देश में जारी प्रदर्शनों, माहौल का समर्थन नहीं कर रहे हैं.
विजय त्रिवेदी को लगता है कि इस भाषण के मायने है कि “प्रधानमंत्री और आरएसएस प्रमुख सिंक में हैं. क्योंकि उनको (प्रधानमंत्री को) भी लगता है कि देश में ऐसे माहौल बिगड़ेगा तो नुक़सान होगा.”
प्रधानमंत्री मोदी की लगातार आलोचना होती रही है कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ हेट-स्पीट के कई मामलों पर वो चुप रहे हैं.
विजय त्रिवेदी के मुताबिक़ मोहन भागवत का भाषण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये बातें तृतीय वर्ष के चुने हुए स्वयंसेवकों के सामने कही गईं जो आरएसएस के काम को देशभर में आगे बढ़ाएंगे और “यदि वो भी इस संदेश को ले जाकर आगे बढ़ाएं तो हम समझते हैं कि माहौल ठीक होगा.”
संघ विचारक और आरएसएस पर सात क़िताबें लिख चुके रतन शारदा के मुताबिक़ मोहन भागवत कहना चाह रहे थे कि झगड़ों को विराम देना चाहिए क्योंकि देश को लगातार हो रहे झगड़ों से आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
रतन शारदा कहते हैं, “उन्होंने (संघ प्रमुख ने) कहा कि हमें हर मुसलमान को दुश्मन की तरह नहीं देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो लोग यहां हैं वो भारतीय हैं.”
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मोहन भागवत के बयानों के बावजूद…
बातें उन मुश्किलों की जो हमें किसी के साथ बांटने नहीं दी जातीं…
ड्रामा क्वीन
समाप्त
वरिष्ठ पत्रकार और पुस्तक ‘हिंदू राष्ट्र’ के लेखक आशुतोष पूर्व में दिए मोहन भागवत के संदेशों और उसके बाद के हालात पर सवाल उठाते हैं.
वो कहते हैं, “बड़ा सवाल ये है कि मोहन भागवत 2018 से लगातार ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमानों के बग़ैर हिंदुत्व का अस्तित्व नहीं है… लेकिन उसके बावजूद एंटी-मुस्लिम सेंटिमेंट को लगातार उभारा गया है.”
“ऐसे में सवाल ये कि या तो उनकी बातों का कोई मतलब नहीं, या फिर ये लगता है कि दोतरफ़ा बातचीत हो रही है, अच्छा ऑप्टिक्स पैदा करने के लिए वो इस तरह की बातें करते हैं. लेकिन उनके संगठन ज़मीन पर कुछ और काम करते हैं.”
“शोभा यात्राओं में बजरंग दल के लोग हैं. बजरंग दल आरएसएस का संगठन है. शोभा यात्राओं में तलवार, बंदूक लेकर लोग दिखते हैं. उसके लोग मस्जिदों के पास जाकर भड़काऊ नारे लगाते हैं. धर्म स्थल पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं. ये दोनो चीज़ें कैसे हो रही हैं?”
पत्रकार विजय त्रिवेदी के मुताबिक़ ज़रूरी है कि आरएसएस प्रमुख की बातों को अनसुना करने वालों को सख्त संदेश दिया जाए ताकि ज़मीन पर बदलाव दिखे.
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आशुतोष पूछते हैं कि जब आरएसएस प्रमुख का कहा एक-एक शब्द बीजेपी और आरएसएस के हर शख्स के लिए पत्थर की लकीर होती है, उसके बावजूद अल्पसंख्यकों के लिए माहौल बेहतर क्यों नहीं हो पा रहा है?
वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि ये बहुत बड़े डिज़ाइन का हिस्सा है. सबके अपने-अपने रोल बंटे हुए हैं. और वो अपनी-अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं. उसका कोर यही है कि अल्पसंख्यकों के सभी अधिकार छीन लिए जाएं, उनको राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक कर दिया जाए.”
मोहन भागवत के बयानों के बावजूद अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ वायरल होते भद्दे वीडियोज़, बिगड़ते माहौल पर रतन शारदा कहते हैं कि आरएसएस प्रमुख जो कहते हैं वो आरएसएस के लिए कहते हैं, हिंदू समाज के लिए कहते हैं. अब उसमें कितने लोग माने नहीं मानें, लोकतंत्र है.
वो कहते हैं, “हिंदुओं के मन में 70-75 सालों का क्षोभ हैं. उनके पूजा के स्थान उनसे छीने गए. जो कानून बने सेक्युलरिज्म के नाम पर. वो एंटी-हिंदू और प्रो-माइनॉरिटीज़ बने. तो उनके मन में जो क्षोभ है, वो क्षोभ उभर कर आ रहा है.”
आरएसएस के आलोचक इन आरोपों को गलत बताते हैं.
रतन शारदा कहते हैं, “कोई ग़लत भाषा इस्तेमाल कर सकता है, कोई सही इस्तेमाल कर सकता है. मैं सभ्य भाषा इस्तेमाल कर सकता हूं, तो कोई कड़क भाषा इस्तेमाल कर सकता है लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि हिंदुओं के मन में क्षोभ है. क्षोभ सभ्य रहे, बैलेंस रहे, पिछले दो तीन सालों से मोहन जी की लगातार कोशिश रही है.”
कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि मुस्लिम शासकों ने क़रीब 60,000 हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया, लेकिन डीएन झा और रिचर्ड ईटन जैसे इतिहासकारों के मुताबिक़, 80 हिंदू मंदिरों को नुक़सान पहुँचाया गया था.
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आरएसएस विचारक और राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा नरेंद्र मोदी सरकार के कामों को गिनाते हैं.
वो कहते हैं, “चाहे आयुष्मान भारत हो, चाहे मुद्रा योजना हो, चाहे मेक-इन-इंडिया हो, चाहे स्टार्ट अप हों, नरेंद्र मोदी सरकार ने धर्म और जाति का अंतर नहीं किया.”
“आज भारत के मुसलमानों के सामने मैं पहली बार अपील कर रहा हूं कि समय आ गया है कि वे हिंदू संगठनों के साथ आउटरीच करें. हिंदुओं ने आज तक आउटरीच किया है. अब मुसलमानों के सामने अवसर है कि जब वे आउटरीच करके सभी ऐतिहासिक प्रश्नों के समाधान के लिए समन्वय और संवाद का रास्ता अपनाएं.”