क्या होता है ‘टू-फिंगर’ टेस्ट, SC ने क्यों लगाई बैन, क्या है एक्सपर्ट की राय, जानें सब

टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो अंगुलियां डाली जाती है, इससे डॉक्टर यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या पीड़िता शारीरिक संबंधों की आदी रही है. (फोटो twitter/@anuj00076006)

टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो अंगुलियां डाली जाती है, इससे डॉक्टर यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या पीड़िता शारीरिक संबंधों की आदी रही है.

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यानी 31 अक्टूबर को रेप के मामले में ‘टू-फिंगर’ टेस्ट को बैन कर दिया है. यह एक ऐसा सवाल है जिसने सोमवार को देश की शीर्ष अदालत को भी परेशान कर दिया. साथ ही कोर्ट ने इसे लेकर सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िता की जांच के लिए अपनाया जाने वाला ये तरीका अवैज्ञानिक है जो पीड़िता को फिर से प्रताड़ित करता है. अपने आदेश में कोर्ट ने इस टेस्ट को मेडिकल कॉलेज की अध्ययन सामग्री से हटाने को भी कहा है.

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘दुर्भाग्य की बात है कि यह प्रणाली अब भी व्याप्त है. महिलाओं का गुप्तांग संबंधी परीक्षण उनकी गरिमा पर कुठाराघात है. यह नहीं कहा जा सकता कि यौन संबंधों के लिहाज से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता.’’ एक रेप मामले में सजा बरकरार रखते हुए न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश हिमा कोहली की बेंच ने ये फैसला सुनाया.

क्या है ‘टू-फिंगर’ टेस्ट?
आइए जानते हैं कि क्या होता है यह टेस्ट जिसे लेकर इतना बवाल हो रहा है. ‘टू-फिंगर’ टेस्ट का इस्तेमाल रेप के आरोपों की जांच के लिए किया जाता रहा है. इसे वर्जिनिटी टेस्‍ट भी कहा जाता था. टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो अंगुलियां डाली जाती है. इससे डॉक्टर यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या पीड़िता शारीरिक संबंधों की आदी रही है. टेस्ट करने का मकसद यह पता लगाना होता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं.

इसमें प्राइवेट पार्ट की मांसपेशियों के लचीलेपन और हाइमन की जांच होती है. अगर प्राइवेट पार्ट में हाइमन मौजूद होता है तो किसी भी तरह के शारीरिक संबंध ना होने का पता चलता है. अगर हाइमन को नुकसान पहुंचा होता है तो उस महिला को सेक्‍सुअली एक्टिव माना जाता है.

अनसाइंटिफिक है टेस्ट
एक्सपर्ट इस टेस्ट को अवैज्ञानिक मानते हैं. एक्सपर्ट्स का टू-फिंगर’ टेस्ट को लेकर कहना है कि संभोग के अलावा कई कारणों से हाइमन टूट सकता है. इसमें कोई खेल खेलना, साइकिल चलाना, टैम्पोन का उपयोग करना या चिकित्सा परीक्षाओं के दौरान शामिल है. वहीं डॉक्टरों का यह भी मत है कि जब प्राइवेट पार्ट की मांसपेशियों में शिथिलता का पता लगाने की बात आती है तो मनोवैज्ञानिक अवस्था एक प्रमुख भूमिका निभाती है. क्योंकि एक व्यथित व्यक्ति के मामले में प्राइवेट पार्ट की मांसपेशियां तनावपूर्ण हो सकती हैं – जैसा कि एक बलात्कार पीड़िता के मामले में होता है.

निर्भया मामले के बाद टेस्ट पर लगी थी रोक
साल 2013 में राजधानी दिल्ली में निर्भया रेप के बाद इसे लेकर बहस छिड़ी थी. उसी समय इस टेस्ट पर रोक लगाई गई थी. केंद्र सरकार ने भी उस समय इसे अवैज्ञानिक बताया था. मार्च 2014 में हेल्‍थ मिनिस्‍ट्री ने रेप पीड़िताओं के लिए नई गाइडलाइन बनाई थी. गाइलाइन में टू फिंगर टेस्ट के लिए साफ तौर पर मना किया गया था. यौन हिंसा के कानूनों की समीक्षा करने के लिए उस समय वर्मा कमेटी भी बनाई गई थी. कमेटी ने भी साफ किया था कि बलात्कार हुआ है या नहीं, ये एक कानूनी पड़ताल है, मेडिकल आकलन नहीं.

कब-कब उठा है सवाल
यह पहली बार नहीं है जब टू-फिंगर टेस्ट पर देश में बहस छिड़ी है. पिछले कुछ सालों से इस पर लगातार बहस हो रही है. इसका दो कारण है एक तो कोर्ट का इसे असंवैधानिक ठहराने के बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों में रेप पीड़िता का यह टेस्ट किया जाना. और दूसरा पीड़िता की निजता और सम्मान के हनन के साथ-साथ रेप के बाद भी इस टेस्ट के नाम पर उनका मानसिक उत्पीड़न करना.

साल 2013 में लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस टेस्ट को असंवैधानिक बताया था. कोर्ट ने इस मामले में भी सख्त टिप्पणी की थी और कहा था कि यह पीड़िता की निजता और सम्मान का हनन करता है. यह उसे मानसिक चोट पहुंचाता है. वर्मा कमेटी ने भी कहा था कि इस टेस्ट से यह बिल्कुल नहीं पता लगाया जा सकता है कि महिला ने रजामंदी के साथ सम्बंध बनाए थे या उसके साथ जोर-जबरदस्ती की गई थी. इसलिए इसे बंद कर देना चाहिए.