नेप्च्यून पर किस तरह का अभियान भेजना चाहता है चीन?

अगर आपको लगता है कि अंतरिक्ष मामलों में चीन (China) केवल चंद्रमा और मंगल ग्रह के लिए अमेरिका से प्रतिस्पर्धा कर रहा है तो गलत है. चीन बहुत गंभीरता से अंतरिक्ष अन्वेषण में आगे बढ़ रहा है और उसने नासा की तरह ही अंतरिक्ष अन्वेषण तंत्र बना लिया है जिसमें पहले कई तरह के गंभीर प्रस्ताव दिए जाते हैं जिन्हें बजटीय आदि विश्लेषण के बाद हरी झंडी दी जाती है या फिर भविष्य के लिए योजना बनाई जाती है. चीन के प्लैनेटरी डेकेडल सर्वे 2023 2032 (Planetary Decadal Survey for 2023–2032) में कई बिलकुल नए तरह के अभियान दिख रहे हैं. इनमें से एक परमाणु ऊर्जा सम्पन्न् नेप्च्यून एक्सप्लोरर (Neptune Explorer) है जिसका लक्ष्य नेप्चयून, उसके ट्रिटॉन सहित अन्य चंद्रमाओं और छल्लों का अध्ययन करना है.

कई और अभियान भी
इस सर्वे में अगले दशक के लिए सौरमंडल के लिए कई और अभियान प्रस्तावित हैं. इममें यूरेनस ऑर्बिटर एंड प्रोब (UOP) जो यूरेनस के वायुमंडल, उसकी आंतरिक संरचना, मैग्नेटोस्फियर, उपग्रह और छल्लों का अध्ययन करेगा. इसके साथ ही शनि के उपग्रह के लिए एनसेलाडस ऑर्बिटर और लैंडर जो इस उपग्रह के दक्षिणी ध्रुवीय इलाके में अन्वेशषण करेंगे.

एक बड़े शोध के बाद प्रस्ताव
ये अभियान अभी तक चीन की नेशनल स्पेस एजेंसी . (CSNA), चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस (CAS), चाइना एटॉमिक एनर्जी अथॉरिटी, द चाइना एकेडमी ऑप स्पेस टेक्नोलॉजी सहित बहुत सी यूनिवर्सिटी और संस्थानों के शोध के विषय थे. इस पड़ताल के नतीजे साइंटिया सिनिका टेक्नोलॉजिका जर्नल में प्रकाशित हुए हैं.

कितना खास है नेप्च्यून
शोधपत्र के अनुसार नेप्च्यून जैसे बर्फीले विशाल ग्रह वैज्ञानिक खोजों के लिए एक खजाना हैं. इसकी आंतरिक संरचना, असामान्य वायुमंडल, वहां हीरों की बारिश जैसे कई शोध के अनोखे विषय हैं. नेप्च्यून के बारे में कहा जाता है कि उसकी सौरमंडल के निर्माण में भी बड़ी भूमिका रही है. इसकी संरचना में विशाल मात्रा में गैस है जो तारों के निर्माण के पहले के नेबुला का हिस्सा थी जिससे सौरमंडल बना था.

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इस तरह के अभियान में नेप्च्यून (Neptune) की संरचना और उसके सबसे बड़े ग्रह ट्रिटॉन का अध्ययन प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

नेप्च्यून का सबसे बड़ा उपग्रह ट्रिटॉन
इसके अलावा नेप्च्यून की सौरमंडल में स्थिति भी हमारे इस तंत्र के ग्रहों के निर्माण में योगदान देने वाली रही है. नेप्च्यून के सबसे बड़ा चंद्रमा ट्रिटॉन भी अपने अंदर कई तरह के रहस्य समेटे हैं. वैज्ञानिकों को आशंका है कि यह उपग्रह वास्त्व में एक प्लैनेटॉइड है जो बाह्य सौरमंडल से अंदर आया था और नेप्च्यून के गुरुत्व में फंस गया था और उससे नेप्च्यून के प्राकृतिक उपग्रह टूट गए थे और नए उपग्रहों का निर्माण हुआ था.

लंबे अभियान की चुनौतियां
नेप्च्यून और उसके उपग्रहों का अध्ययन सौरमंडल के निर्माण और विकास की जानकारी दे सकता है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इस अभियान को इतनी दूर पहुंचाना है. इसमें लॉन्च विंडो, ऊर्जा आपूर्ति और संचार जैसी कई समस्याएं होगी. अभी तक केवल वायजर 2 अभियान ही नेप्च्यून के पास से 1989 में गुजर सका है. हाल ही में नासा में भी नेप्च्यून और ट्रिटॉन के लिए अभियान प्रस्तावित किए गए थे.

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ऊर्जा का स्रोत
लेकिन चीन के अभियान के लिए प्रस्ताव में बताया गया है कि ऊर्जा के लिए कम से कम15 साल तक ऊर्जा आपूर्ति वाले स्रोत की जरूरत होगी. इसके लए उन्होंने रेडियोआइसोटोप थर्मोन्यूक्लियर जनरेटर (RGT) का प्रस्ताव दिया है जिसकी 10 किलोवाट ऊर्जा की क्षमता काफी होगी. इस तरह की न्यूक्लियर बैटरी नासा के क्यूरोसिटी और पर्सिवियरेंस रोवर में भी लगी है जिसे ऊष्मा ऊर्जा और रेडियोधर्मी पदार्थ के विकिरण को विद्युत में बदला जाता है.

इस अभियान के लिए शोधकर्ताओं ने ऊर्जा आपूर्ति तंत्र की विस्तृत जानकारी के साथ वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में जनरेटर, नेप्च्यून एटमॉस्फियरिक प्रोब, ट्रिटॉन पेनीट्रेशन प्रोब जैसे उपकरण भी शामिल होंगे. साथ ही कुछ छोटे उपग्रहों को भी रास्ते में क्षुद्रग्रह पट्टी और सेंटॉर क्षुद्रग्रह के लिए छोड़ा जाएगा. यह अभियान 2028, 2030, 2031 और 2034 में प्रक्षेपित किया जा सकता है जिससे साल 2040 तक नेप्च्यून तक पहुंचा जा सके.