अग्निपथ योजना के बारे में दो परमवीर चक्र विजेताओं ने क्या कहा

भारतीय सेना के जवान

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सेना में भर्ती की नई योजना ‘अग्निपथ’ को लेकर देश में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे. इस योजना में केवल चार साल का सेवाकाल होने की आलोचना हो रही थी. विरोध प्रदर्शन करने वाले युवाओं को तर्क था कि इससे उनका भविष्य असुरक्षित हो गया है.

हालांकि, सरकार और सेना का कहना है कि अग्निपथ योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों में से 25 प्रतिशत को चार साल के बाद स्थायी किया जाएगा और बचे हुए सैनिकों को सीएपीएफ़, रक्षा मंत्रालय और दूसरी सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. साथ ही अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों में भी नौकरी के लिए उन्हें वरीयता दी जाएगी.

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इस योजना को लेकर पूर्व सैन्यकर्मियों की राय भी बंटी हुई दिखी है. कई सैन्यकर्मी इसे बेहतरीन योजना बता रहे हैं जिससे सेना की औसत आयु घटेगी और देश की सुरक्षा मज़बूत होगी. वहीं कुछ का कहना है कि इससे युवाओं के लिए रोज़गार के मौक़े बढ़ेंगे.

हालांकि, कई पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस योजना से युवाओं के असुरक्षित भविष्य और देश की सुरक्षा को ख़तरे को लेकर भी चिंता जताई है. यहां पढ़ें दो परमवीर चक्र विजेता पूर्व सैनिक इस योजना पर क्या कह रहे हैं.

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अग्निपथ योजना की ख़ास बातें

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  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून 2022 को ‘अग्निपथ‘ योजना की घोषणा की
  • इसके तहत सेना में भर्ती चार सालों के लिए होगी
  • भर्ती होने की उम्र 17.5 साल से 21 साल के बीच होनी चाहिए
  • शैक्षणिक योग्यता 10वीं या 12वीं पास
  • पहले साल की सैलरी प्रति महीने 30 हज़ार रुपये होगी
  • चौथे साल 40 हज़ार रुपये प्रति महीने मिलेंगे
  • चार साल बाद सेवाकाल में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन होगा और 25 प्रतिशत लोगों को नियमित किया जाएगा
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योगेंद्र सिंह यादव

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इमेज कैप्शन,परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव को 15 अगस्त 2021 को स्वतंत्रता दिवस की 75वीं सालगिरह पर मानद कैप्टन बनाया गया था

परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव

परमवीर चक्र विजेता मानद कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव ने राजनीतिक कार्यकर्ता और स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव के साथ बातचीत में कहा कि अग्निपथ योजना से ना सिर्फ़ सैनिकों का मनोबल घटेगा बल्कि इससे देश की सुरक्षा को भी ख़तरा होगा और सैनिक अपने भविष्य को लेकर ही उलझन में रहेगा.

योगेंद्र सिंह यादव ने कहा, “इस योजना का सेना के लिए कोई उपयोग नहीं है. मैं माननीय प्रधानमंत्री और भारत सरकार से निवेदन करना चाहता हूं कि सेना को कोई संस्था मत समझिए. ये हमारा एक सुरक्षा का घर है. इसमें कोई प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है. हमारे देश में जिसे संस्कृति या संस्कार बोलते हैं, वो बाहर कहीं नहीं दिखती सिर्फ़ हमारी सेना के भीतर दिखती है. यही संस्कृति और संस्कार हमारे जवानों को प्रेरणा और शक्ति देते हैं जिससे की वो दुश्मन से लड़ता है.”

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वो कहते हैं, “ये चार साल वाले जवान जब सेना में जाएंगे तो सेना इन्हें अच्छी तरह से नहीं सिखा पाएगी क्योंकि उन्हें भी ये लगेगा कि इसे सिखाकर क्या करना है, ये व्यक्ति तो चार साल बाद चला जाएगा. ये हमारे काम का नहीं है. वहीं सैनिक इसलिए नहीं सीख पाएगा क्योंकि उसको भी ये पक्का नहीं पता है कि उसे सेना में कब तक रहना है. उसे स्थायी होने या अस्थायी होने को लेकर उलझन रहेगी.”

उन्होंने कहा, “चार साल में से छह महीने ट्रेनिंग में, एक साल छुट्टी, अब बचा ढाई साल, इसमें वो क्या करेगा और क्या सीखेगा? वो इन्फैंट्री में राइफ़ल चलाना सीख जाएगा, बड़े हथियार चलाना नहीं सीख पाएगा. हमारी सिग्नल रेजिमेंट में वो कुछ नहीं सीख पाएगा. ये फ़ौज के लिए नुक़सान ही तो है. फ़ौज उनके ऊपर अपनी पूरी स्किल लगा रही है लेकिन वापस कुछ नहीं मिल रहा है. आप बताएं इससे हमारी फ़ौज का भला होगा या नुक़सान.”

सेना का जवान होने के ज़रूरत को लेकर योगेंद्र सिंह ने कहा कि सेना में युवाओं के साथ-साथ अनुभवी लोगों की भी ज़रूरत होती है. वो सवाल करते हैं कि चार साल वाले एक जवान में ये अनुभव कहां से आएगा.

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उन्होंने कहा, “लोग दुहाई दे रहे हैं कि सेना की औसत उम्र कम हो जाएगी. लेकिन नौजवानों से युद्ध नहीं जीता जाता, युद्ध जीता जाता है अनुभवियों की मदद से जिनके पास जानकारी होती है और उसे समझने की सोच होती है. नौजवान सिर्फ़ चल सकता है लेकिन, उसे मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है.”

“ये गांव का युद्ध नहीं है कि लठ्ठ उठाए, चल दिए और फिर पीठ दिखाकर आ गए. ये देश का युद्ध होता है, देश की मान मार्यदा का सवाल होता है. जब सेना युद्ध के लिए जाती है तो इस प्रतिष्ठा का भाव जवान के मन में इस तरह से समाहित होता है कि पलटन का जवान उसे सगे भाई से भी ज़्यादा प्यारा होता है. वो अपने साथी के लिए ख़ुद को कुर्बान करने के लिए तत्पर होता है क्योंकि उसको ये मालूम है कि मैं रहूं ना रहूं मेरा साथी फ़ौज में रहेगा और मेरे परिवार का ध्यान रखेगा. आज तो ये मालूम ही नहीं होगा कि चार साल बाद उसे उसकी पलटन पूछेगी या नहीं. वो उसके साथ भरोसा क्यों कर पाएगा. ये कहीं ना कहीं देश की सुरक्षा को कमज़ोर करने वाली बातें होती हैं.”

सेना को युवाओं की ज़रूरत को लेकर अक्सर योगेंद्र सिंह यादव का उदाहरण दिया जाता है कि उन्होंने 19 साल की उम्र में बहादुरी दिखाई और उन्हें परमवीर चक्र मिला तो सेना में ऐसे ही नौजवानों की ज़रूरत है.

योगेंद्र सिंह यादव

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इस पर योगेंद्र सिंह यादव कहते हैं, “इस योगेंद्र ने 19 साल की उम्र में जब करगिल का युद्ध लड़ा तब उसके साथ 20 साल सेवा वाला प्लाटून हवलदार, 15-15 साल सेवा वाले मेरे पांच सिपाही साथी थे. उनका अनुभव, प्लानिंग उसकी बदौलत ही ये 19 साल का लड़का वहां पांच घंटे तक लड़ पाया. वो लड़का इसलिए भी लड़ पाया क्योंकि उसे पता था कि वो सेना में 32 साल तक सेवा करेगा और अगर वो नहीं रहा तो उसके परिवार को पेंशन मिलेगी.”

सरकार कहना है कि अग्निपथ योजना के तहत जवानों को छह महीने की जो ट्रेनिंग दी जाएगी और वो उसके लिए काफ़ी होगी. इस पर वो कहते हैं, “सेना में बेसिक ट्रेनिंग नौ महीने की होती है. इसमें एक सिविलियन बच्चा एक फ़ौजी माहौल में ढलकर पलटन में पहुंचता है. वास्तविक ट्रेनिंग उसकी पलटन में ही होती है जो उसे तीन या चार साल के अंदर एक सिपाही के ढांचे में ढालते हैं. जब तक सैनिक यूनिट की परंपरा और रीति रिवाज़ में समाहित नहीं हो पाता तब तक वो एक अच्छा सैनिक नहीं बनता.”

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मानद कैप्टन बाना सिंह

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परमवीर चक्र विजेता और सेना के मानद कैप्टन बाना सिंह

परमवीर चक्र विजेता और सेना के मानद कैप्टन बाना सिंह ने कहा है कि अग्निपथ योजना की वजह से सेना को ‘भारी क़ीमत’ चुकानी पड़ सकती है. उन्होंने कहा कि ये योजना सेना को बर्बाद कर देगी और पाकिस्तान-चीन जैसे मुल्कों को फ़ायदा पहुंचाएगी.

उन्होंने कहा, “चार साल की अग्निपथ योजना भारतीय सेना को बर्बाद कर देगी, ख़त्म कर देगी. इसे बिल्कुल लागू नहीं किया जाना चाहिए था.”

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बाना सिंह ने अग्निपथ योजना पर एक ट्वीट भी किया था लेकिन सोशल मीडिया पर इसको लेकर विवाद छिड़ने के बाद उन्होंने इसे डिलीट कर दिया. उन्होंने कहा, “मुझे फ़ोन कॉल आने लगे थे.”

हालांकि, उन्होंने कहा कि वो आगे भी अपनी बात रखते रहेंगे और हमेशा सेना के हक़ और उसके भले के लिए बोलते रहेंगे.

‘सियाचिन हीरो’ के तौर पर पहचाने जाने वाले बाना सिंह ने जून 1987 में 21,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तान की क़ायद-ए-आज़म चौकी पर हमले का नेतृत्व किया था. इस हमले में छह पाकिस्तानी जवान मारे गए थे और इस रणनीतिक पोस्ट पर भारत का नियंत्रण हो गया था.

इस पोस्ट का नाम बाद में बदलकर ‘बाना पोस्ट’ कर दिया गया था और सिंह को साल 1988 में देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान यानी परमवीर चक्र से नवाज़ा गया.

पाकिस्तानी रक्षा से जुड़े कुछ दस्तावेज़ों में भी इस मिशन का ज़िक्र मिलता है. वहां इसे ‘तुलना से परे बहादुरी’ के तौर पर वर्णित किया गया है.

73 वर्षीय सिंह ने कहा कि जिस तरह से अग्निपथ योजना सब पर थोपी गई है वो ‘तानाशाही’ के समान है.

उन्होंने कहा, “एक लोकतंत्र में इस तरह के उग्र फ़ैसले सभी पक्षों और पूर्व सैनिकों के साथ विचार-विमर्श किए बिना नहीं लिए जा सकते हैं, जो सेना के बारे में बहुत कुछ जानते हैं क्योंकि उन्होंने वास्तव में युद्ध लड़ा है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.”

सिंह ने कहा, “ये तानाशाही जैसा है, जैसे मैंने कोई फ़ैसला लिया है और इसे लागू किया ही जाना है.”