महाराष्ट्र की राजनीति में अब आगे क्या होगा? उद्धव रहेंगे या जाएंगे

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महाराष्ट्र में इस बार राजनीतिक संकट की बुनियाद शिव सेना के अंदर से रखी गई है.

शिव सेना नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे बग़ावत कर चुके हैं. साथ ही ऐसा दावा कर रहे हैं कि उनके साथ 40 विधायकों का समर्थन है.

पार्टी में बग़ावत के बीच बुधवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी सामने आए. उन्होंने खुलकर कहा कि उन्हें कुर्सी का कोई मोह नहीं है और त्यागपत्र तैयार है. उद्धव ने कहा कि किसी विधायक ने उनका विरोध किया तो वह इस्तीफ़ा दे देंगे. इस बीच उन्होंने मुख्यमंत्री का सरकारी आवास भी ख़ाली कर दिया और अपने पैतृक घर मातोश्री चले गए.

शिव सेना सांसद संजय राउत साफ़-साफ़ कह रहे हैं, ”ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा, हम सत्ता में नहीं होंगे.”

साथ ही राउत एक ट्वीट कर ऐसे संकेत दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं. राउत ने कहा है, ”महाराष्ट्र का मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम राज्य को विधानसभा भंग करने की ओर ले जा रहा है.”

ऐसे में जानते हैं कि आख़िर महाराष्ट्र की राजनीति में अब क्या-क्या हो सकता है?

विधानसभा को भंग करने की स्थिति

फ़िलहाल, महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ही कोरोना संक्रमित हैं. राज्यपाल को दक्षिण मुंबई के रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, ”राज्यपाल और मुख्यमं,त्री दोनों कोरोना ग्रस्त हैं, ऐसे में पहली बात ये है कि मुख्यमंत्री अगर सदन के विघटन की सिफ़ारिश करते हैं तो राज्यपाल कह सकते हैं कि बहुमत साबित कीजिए उसके बाद सिफ़ारिश पर विचार किया जाएगा.”

कश्यप कहते हैं, ”बहुमत सदन के अंदर ही सिद्ध हो सकता है तो सदन की बैठक बुलानी होगी. सदन में ही ये तय होगा कि बहुमत है कि नहीं.”

सुभाष कश्यप का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री को ये पता है कि वो बहुमत खो चुके हैं तो उन्हें तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए.

विधानसभा का गणित क्या कहता है?

288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में शिव सेना के 55, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं. बीजेपी के पास कुल 106 विधायक हैं, साथ ही कुछ निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन बीजेपी के साथ है. महा विकास अघाड़ी के पास कुल 169 विधायकों का समर्थन है. सरकार के लिए 144 विधायकों का समर्थन ज़रूरी है.

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शिंदे अगर दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेते हैं तो क्या होगा?

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एकनाथ शिंदे ये दावा कर रहे हैं कि शिव सेना के 40 से ज़्यादा विधायक उनके साथ हैं. शिंदे अगर 37 से ज़्यादा पार्टी विधायकों का समर्थन जुटा लेते हैं तो ये बागी विधायक दल विरोधी क़ानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं होंगे.

दरअसल, दल बदल विरोधी क़ानून के तहत ये प्रावधान है कि अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता ख़त्म नहीं होगी.

अगर एक पार्टी के दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी से अलग होकर दूसरी पार्टी में मिल जाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. ऐसी स्थिति में न तो दूसरी पार्टी में विलय करने वाले सदस्य और न ही मूल पार्टी में रहने वाले सदस्य अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.

सुभाष कश्यप कहते हैं, ”अगर शिव सेना का बहुमत शिंदे के साथ है तो नेता परिवर्तन कर सकते हैं और उद्धव की जगह शिंदे पार्टी के नेता बना सकते हैं.”

अब शिंदे अगर ये आंकड़े जुटा लेते हैं तो उन्हें तय करना होगा कि वो बीजेपी में विलय करने जा रहे हैं या बीजेपी को समर्थन करने जा रहे हैं. शिंदे के समर्थन से बीजेपी सरकार बना सकती है और तब शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी को विपक्ष में बैठना होगा.

बीबीसी मराठी के संपादक आशीष दीक्षित कहते हैं, ”मौजूद घटनाक्रम को देखते हुए ये लगता है कि एकनाथ शिंदे के दो तिहाई बहुमत जुटा लेने के अनुमान काफ़ी मज़बूत हैं. इस स्थिति में ये हो सकता है कि वो बीजेपी के साथ जाएं, देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनें और एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री.”

कश्यप कहते हैं कि अभी तक के घटनाक्रम को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने जा रहा है या ऐसी स्थिति बन रही है. वो कहते हैं. ”बहुमत है या नहीं ये सदन में ही तय होगा, तो सदन की बैठक होनी चाहिए और उसमें तय होना चाहिए कि बहुमत का समर्थन उद्धव ठाकरे खो चुके हैं या नहीं. अगर खो चुके हैं तो उन्हें त्यागपत्र देना होगा और अगर बचे हैं तो उन्हें सदन विघटन की सिफ़ारिश करनी होगी.”

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शिंदे बहुमत नहीं जुटा पाते हैं तो क्या होगा?

आशीष दीक्षित कहते हैं कि एक और संभावना ये है कि एकनाथ 37 विधायकों का आंकड़ा नहीं छू पाए. आशीष कहते हैं, ”ऐसी स्थिति में शिंदे ने जो बग़ावत दिखाई है उस पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में बहुमत न उद्धव के पास होगा ना देवेंद्र फडणवीस के पास और राष्ट्रपति शासन की स्थिति आ सकती है.”

ऐसे हालात में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.

ऐसा भी हो सकता है कि शिव सेना के बागी विधायक इस्तीफ़ा दे दें और उपचुनाव में बीजेपी के टिकट ये विधायक जीतकर आए. अगर वो जीतते हैं तो बीजेपी की सरकार बन सकती है. ऐसी स्थिति कर्नाटक में भी आ चुकी है, जब कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के विधायकों ने एक के बाद एक इस्तीफ़ा देना शुरू कर दिया.

इस तरह कुल आठ विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया और इन विधायकों ने बीजेपी से उपचुनाव लड़ा. इनमें से भाजपा के पांच विधायक चुने गए. इसके बाद बीजेपी को स्थिर सरकार के लिए जरूरी ताक़त मिली. कर्नाटक के वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी कहते हैं, “ऑपरेशन लोटस बीजेपी द्वारा किया गया एक नया प्रयोग था.” ऑपरेशन लोटस दल-बदल विरोधी क़ानून से बचने के लिए एक बचाव का रास्ता है.

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उद्धव ठाकरे, शिंदे की सारी शर्तों को मान लें

आशीष दीक्षित एक और संभावना भी बताते हैं कि उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे की सारी बात मान लें और बीजेपी के साथ चले जाएं. इस स्थिति में भी देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री का पद मिलेगा.

हालांकि, आशीष ये भी कहते हैं कि इसकी संभावना बेहद कम है. दरअसल, एकनाथ शिंदे, बग़ावत के बाद से ही हिंदुत्व और बाल ठाकरे का ज़िक्र कर रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि शिंदे, शिव सेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ आने से भी नाराज़ थे.

बुधवार को ही शिव सेना सांसद संजय राउत ये भी कहते नज़र आए कि शिंदे के साथ उनकी बातचीत हो रही है ये बातचीत अब तक सकारात्मक रही है. राउत ने ये भरोसा भी जताया है कि शिंदे और दूसरे बाग़ी विधायक पार्टी के साथ आ जाएंगे.

इस राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने या एक साल की होती है. एक और संभावना ये भी बन सकती है कि शिव सेना सिर्फ़ शिंदे को बाहर का रास्ता दिखा दे और बाक़ी के विधायकों को साथ रखने में कामयाब हो जाए. ऐसी स्थिति में उद्धव सरकार बच सकती है.

कुल मिलाकर महाराष्ट्र की राजनीति के अगले कुछ दिन काफ़ी उथल-पुथल से भरे रहने वाले हैं.