सारागढ़ी चौकी का रणनीतिक महत्व और अफगानों के हमले
सारागढ़ी अभी पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत पड़ता है। कहना न होगा कि 1897 में भारत अंग्रेजों के अधीन था। उस वक्त भारतीय सैनिक भी ब्रिटिश सेना के अधीन कार्यरत थे। अफगानिस्तान से लगी सीमा पर सारागढ़ी की चौकी की देखरेख 36वें सिख रेजिमेंट के जिम्मे थी। रेजिमेंट के 21 सैनिक समाना रिज (अब पाकिस्तान में) पर तैनात थे। सारागढ़ी की चौकी, लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले को अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से जोड़ती थी। इस चौकी पर करीब 10 हजार अफगानों ने हमला कर दिया जिनसे भीषण युद्ध करते हुए सिख जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। अमृतसर में शनिवार को आयोजित एक समारोह में पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल जोगिंदर जसवंत सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह लड़ाई दुनिया की शीर्ष 10 प्रमुख लड़ाइयों में शामिल है, क्योंकि इस युद्ध के दौरान केवल 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार कबायलियों का मुकाबला किया था।
21 सैनिकों ने किया 10 हजार हमलावरों से मुकाबले का फैसला
दरअसल, अफगान कबायली सारागढ़ी की चौकी पर अक्सर हमला करते रहते थे। 1897 के सितंबर में उन्होंने 10 हजार लड़ाकों के भारी दलबल के साथ फिर से सारागढ़ी का रुख किया। चौकी पर 20 सिख सैनिक और एक खानसामा थे। कुल 21 की तादाद को 10 हजार हमलावरों का सामना करना था। यानी, करीब 476 हमलावरों पर एक सैनिक। सिख सैनिकों की इस यूनिट का नेतृत्व ईशर सिंह कर रहे थे। 36वें सिख रेजिमेंट के कमांडेंट कर्नल जॉन हॉगटन लॉकहार्ट के किले में तैनात थे। ईशर सिंह ने कर्नल हॉटन को स्थिति की जानकारी देकर सैन्य मदद मांगी। कर्नल ने उनसे कहा कि इतने कम समय में सैनिकों को भेज पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाएगा। ऐसे में सारागढ़ी चौकी पर तैनात सिख सैनिकों को फैसला करना था कि वो आत्मसमर्पण कर दें या फिर 10 हजार खूंखार लड़ाकों से दो-दो हाथ करते हुए वीरगति को प्राप्त हों। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। सभी 21 सिख सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया। लड़ाई शुरू हुई और छह दिनों तक चली। इस दौरान सिपाही भगवान सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। तब हमले में घायल लाल सिंह और जीवा सिंह ने मिलकर सिपाही भगवान सिंह का शव खींचकर चौकी के अंदर किया। हालांकि, चौकी मिट्टी के दीवार से बनी थी। हमलावर करीब आ गए थे।
21 सैनिकों की शहादत से अजेय रहा लॉकहार्ट फोर्ट
कर्नल हॉगटन को पता था कि अब सिख सैनिक हमलावरों के हाथों मारे जाएंगे। वही हुआ भी। अफगान हमलावरों की फौज ने 12 सितंबर 1998 को मिट्टी की दीवार ढहा दी। फिर तो सिख सैनिकों के साथ उनका बंदूकों की जगह हाथों से लड़ाई होने लगी। एक-एक कर सारे सिख सैनिक मारे गए। सिख सैनिक जब एक-एक कर ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा बुलंद करते शहीद हो रहे थे तब आवाज कर्नल हॉगटन के कानों तक पहुंच रही थी। आखिरी सैनिक के मारे जाने के बाद नारा गूंजना बंद हो गए और कर्नल हौटन को पता चल गया कि अब कोई भी भारतीय सैनिक जिंदा नहीं बचा है। बहरहाल, सिख सैनिकों ने अपना बलिदान देने से पहले 600 से ज्यादा अफगान हमलावरों को मार गिराया था। अब हमलावरों को लॉकहार्ट किले की तरफ बढ़ना था। लेकिन उनकी किस्मत अच्छी नहीं थी। छह दिनों की लड़ाई में कर्नल हॉगटन को सैन्य दस्ता बुलाने का मौका मिल गया। जब तक अफगान सैनिक किले की तरफ बढ़ते तब तक अतिरिक्त सैन्य दस्ता किले तक पहुंच गया और अफगानों को मार भगाया। इस तरह, 21 सिख सैनिकों की शहादत से लॉकहार्ट का किला फिर से अजेय रह गया।