12 अक्तूबर, 1971 को डाक्टर जगजीत सिंह चौहान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक इश्तेहार छपवाया जिसमें उन्होंने अपने आपको तथाकथित खालिस्तान का पहला राष्ट्रपति घोषित किया.
उस समय बहुत कम लोगों ने इस घोषणा को तवज्जो दी लेकिन 80 का दशक आते-आते खालिस्तान का आंदोलन परवान चढ़ने लगा था.
पंजाब पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 1981 से 1993 तक 12 वर्षों तक खालिस्तान को लेकर चली हिंसा में 21,469 लोगों ने अपनी जान दी और एक ज़माने में भारत के सबसे समृद्ध राज्य रहे पंजाब की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया.
23 जून, 1985 को खालिस्तानी पृथकतावादियों ने मान्ट्रियल से मुंबई आ रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क में एक टाइम बम रखा जिसकी वजह से आयरलैंड के तट के पास विमान में विस्फोट हुआ और 329 लोगों की मौत हो गई.
9/11 से पहले ये इतिहास का सबसे बड़ा चरमपंथी हमला था.
दो व्यक्तियों ने चेक-इन किया पर विमान पर चढ़े नहीं
कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में तलविंदर परमार के पीली पगड़ी पहने एक साथी ने 3,005 डॉलर ख़र्च करके बिज़नेस क्लास के दो हवाई टिकट ख़रीदे. वैंकुवर से उड़ने वाले दो विमानों में डायनामाइट और टाइमर्स से भरे दो सूटकेस चेक-इन कराने में वो सफल भी हो गए.
एक विमान ने पश्चिम में टोक्यो के लिए उड़ान भरी ताकि वो एयर इंडिया की बैंकॉक और मुंबई जाने वाली फ़्लाइट से कनेक्ट कर सके. दूसरा विमान पूर्व की ओर उड़ा ताकि वो टोरंटो और मॉन्ट्रियल से लंदन और नई दिल्ली जाने वाली फ़्लाइट से कनेक्ट कर सके.
किसी का ध्यान इस तरफ़ नहीं किया कि चेक-इन करने वाले दो यात्री एम सिंह और एल सिंह विमान पर चढ़े ही नहीं. चेक-इन करने के बाद वो हवाईअड्डे से ग़ायब हो गए.
हाल ही में छपी किताब ‘ब्लड फ़ॉर ब्लड फ़िफ़्टी इयर्स ऑफ़ ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट’ लिखने वाले कनाडाई पत्रकार टेरी मिलेस्की अपनी क़िताब में लिखते हैं, “एम सिंह के पीछे लाइन में लगे अगले यात्री ने याद किया कि एम सिंह बहुत सावधानी से अपने पैर की उंगली से अपने सूटकेस को धक्का दे रहा था. जैसे-जैसे यात्रियों की लाइन आगे बढ़ रही थी, उसने एक बार भी अपने सूटकेस को अपने हाथ में नहीं उठाया और लगातार अपने पैर की उंगली से उसे आगे बढ़ाता रहा.”
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55 मिनट के अंतराल पर दो विमानों में विस्फोट
टोक्यो पहुंचने वाले विमान में नरिटा हवाईअड्डे पर विस्फोट उस समय हुआ जब सामान को एक विमान से उतारकर एयर इंडिया के विमान पर चढ़ाया जा रहा था.
विस्फोट में सामान चढ़ाने वाले दो लोग मारे गए और चार अन्य लोग घायल हो गए.
शायद इसकी वजह थी कि सूटकेस को या तो धकेला जा रहा था या बम रखने वालों से समय को लेकर अनुमान लगाने में थोड़ी ग़लती हो गई.
नरिटा में हुए विस्फोट के 55 मिनट बाद एयर इंडिया की फ़्लाइट नंबर 182 में आयरलैंड के दक्षिण पश्चिम तट के पास विस्फोट हुआ जिसमें विमानकर्मियों समेत 329 लोग मारे गए.
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ड्रामा क्वीन
समाप्त
शैनन हवाईअड्डे के एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल की ट्रान्सस्क्रिप्ट में बताया गया, “सुबह 7 बजकर 14 मिनट पर एक हल्की चीख सुनाई दी और ऐसा लगा कि हवा के एक तेज़ झोंका पायलट के माइक्रोफ़ोन से टकराया है. इसके बाद सन्नाटा छा गया. ट्रैफ़िक कंट्रोल के कंट्रोलर ने लगातार तीन मिनट तक विमान से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला.”
उसने उसी समय पीछे से आ रहे टीडब्लूए के विमान के पायलट से संपर्क कर पूछा कि क्या उसे अपने आसपास नीचे कोई चीज़ दिखाई दे रही है? पायलट ने जवाब दिया वो कुछ भी नहीं देख पा रहा है.
विमान से संपर्क टूटे 6 मिनट बीत चुके थे. तभी उन्हें कनाडियन पेसेफ़िक एयर का एक विमान आता दिखाई दिया. उसे भी आगे उड़ने वाले टीडब्लू विमान के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया.
कंट्रोलर ने टीडब्लूए विमान से अनुरोध किया कि वो इलाक़े का एक चक्कर लगाए. पायलट इसके लिए राज़ी हो गया और विमान आगे बढ़ने के बजाए एयर इंडिया के विमान की खोज के लिए वापस मुड़ा. कनाडियन पेसेफ़िक एयर के विमान का पायलट भी ग़ौर से नीचे देख रहा था. उसने कंट्रोलर से पूछा, क्या आप एयर इंडिया के विमान को रडार पर देख पा रहे हैं?
जवाब मिला, “नेगेटिव. वो स्क्रीन से ग़ायब है.”
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131 शव ही बाहर निकाले जा सके
अब तक 20 मिनट बीत चुके थे. टीडब्लूए फ़्लाइट का ईंधन ख़त्म हो रहा था इसलिए उसने लंदन की तरफ़ वापस उड़ने की अनुमति मांगी. कंट्रोलर ने टीडब्लूए के पायलट को धन्यवाद दिया.
एयर इंडिया के विमान के नीचे गिरने का पता तब चला जब ब्रिटेन के एक मालवाहक विमान ने सबसे पहले एयर इंडिया के विमान के मलबे को देखा.
विमान 31,000 फ़ीट की ऊँचाई से अटलांटिक सागर में गिरा था. बाद में हुई खोज में सिर्फ़ 131 शवों को बाहर निकाला जा सका.
18 साल बाद वैंकुवर में चल रहे मुकदमे में मरने वालों के रिश्तेदारों के सामने मिस डी ने गवाही देते हुए कहा था कि उन्होंने बब्बर खालसा को धन देने वाले रिपुदमन सिंह मलिक को कहते हुए सुना, “अगर नरिटा हवाईअड्डे पर जहाज़ समय से उतरता तो कहीं ज़्यादा नुकसान होता. कहीं ज़्यादा मौतें हुई होतीं और लोगों को पता चलता कि हम हैं क्या. उन्हें खालिस्तान के मायने पता चलते और उन्हें ये अंदाज़ा लगता कि हम किसके लिए लड़ रहे हैं.”
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पीड़ितों के प्रति आयरिश लोगों का सहानुभूतिपूर्ण रवैया
हादसे में मरने वालों में 268 कनाडाई नागरिक थे, जिनमें से अधिकतर भारतीय मूल के थे. इनमें 27 ब्रिटिश और 24 भारतीय नागरिक थे. इस विमान हादसे में बच्चों ने अपने माता-पिता और अभिभावकों ने अपने बच्चे खो दिए थे, कुल 29 परिवार पूरी तरह से ख़त्म हो गए थे.
फ़्लाइट नंबर 182 में हुए विस्फोट में मारी गई रामवती के बेटे सुशील गुप्ता उस समय सिर्फ़ 12 वर्ष के थे. वो अपने पिता के साथ अपनी मां के शव की तलाश में आयरलैंड गए थे.
जब इस घटना की न्यायिक जांच शुरू हुई तो वो 33 वर्ष के हो चुके थे. बाद में उन्होंने जांच आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा, “कनाडा सरकार के अधिकारियों को हमारी कोई फ़िक्र नहीं थी. उनकी नज़र में ये उनका दुख नहीं बल्कि भारत का दुख था. उनके लिए ये भी मायने नहीं रखता था कि हम कनाडा के नागरिक थे.”
“इसकी तुलना में आयरिश लोगों का रवैया हमारे प्रति बहुत सहानुभूतिपूर्ण था. एक बार वहां बारिश होने लगी. हमारे पास रेनकोट नहीं थे. इस बीच तीन आयरिश लोग हमारे पास आए. हम रो रहे थे. उन्होंने हमे गले लगाया और एक व्यक्ति ने अपना रेनकोट उतार कर मेरे पिता को पहना दिया. दूसरे व्यक्ति ने अपनी जैकेट उतारकर मुझे पहना दी. उसने जैकेट का हुड मेरे सिर पर खींचते हुए कहा कि मैं हमेशा के लिए उस जैकेट को रख सकता हूँ. मेरे पास आज तक मेरे पिता को दिया गया रेनकोट सुरक्षित है.”
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सिर्फ़ एक व्यक्ति को सज़ा
जांच शुरू होने के कुछ समय बाद ही पता चल गया कि विमान में बम कनाडा के नागरिकों ने रखे थे.
कनाडा में बाद में आई हर सरकार ने सफ़ाई दी कि उनको एयर इंडिया के विमान पर हमले की कोई पूर्व सूचना नहीं मिली थी, लेकिन तथ्य इसके विपरीत थे.
टेरी मिलेस्की लिखते हैं, “आज तक नौ संदिग्धों में सिर्फ़ एक शख़्स इंदरजीत सिंह रेयात को सज़ा हुई है, जिसने बम बनाया था. बचाव पक्ष के वकीलों ने सरकारी पक्ष के वकीलों के ख़िलाफ़ ऐसी दलीलें दीं कि चार साल तक चले मुकदमे के बाद बब्बर खालसा के दो लोग बरी हो गए. 21 साल बाद जब न्यायिक आयोग का गठन हुआ तब जाकर लोगों को पता चला कि चूक कहां हुई थी.”
वास्तव में 1982 में ही कनाडा के सुरक्षाबलों को अंदाज़ा हो गया था कि कनाडा में बब्बर खालसा की गतिविधियां जारी हैं. उनके नेता तलविंदर परमार की हत्या के एक मामले में तलाश जारी थी और वो अपने भाषणों में कह रहे हैं कि भारतीय विमान आसमान से नीचे गिरेंगे.
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पहले से मिली ख़ुफ़िया जानकारी
कनाडा की सुरक्षा एजेंसी सीएसआईएस एयर इंडिया के विमान पर बम फटने के तीन महीने पहले से न सिर्फ़ बब्बर खालसा नेता तलविंदर परमार पर नज़र रख रही थी बल्कि उनकी बातें भी टेप कर रही थी.
जांच आयोग की सुनवाई में सीएसआईएस एजेंट रे कॉबज़ी ने गवाही देते हुए कहा था, “हम देख सकते थे कि तलविंदर परमार हिंसा पर तुला हुआ था. जैसे ही मुझे पता चला कि एयर इंडिया की फ़्लाइट 182 हादसाग्रस्त हो गई है, मेरे मुंह से निकला, इसको पक्का परमार ने गिराया है.”
यही नहीं अगस्त, 1984 में एक फ़्रेंच मूल के कनाडा के अपराधी गैरी बूडराओ ने रॉयल कनाडियन माउंटेड पुलिस को बताया था कि वैंकुवर के कुछ सिखों ने उन्हें मॉन्ट्रियल से लंदन जाने वाली एयर इंडिया फ़्लाइट नंबर 182 में बम रखने के लिए 2 लाख डॉलर नकद देने की पेशकश की थी.
बूडराओ ने याद किया कि “एक शख्स मेरे पास एक सूटकेस ले कर आया था जिसमें दो लाख डॉलर भरे हुए थे. मैंने अपने जीवन में बहुत जघन्य अपराध किए हैं लेकिन एक विमान में बम रखना मेरे मिज़ाज में शामिल नहीं था. इसलिए मैंने पुलिस को इसकी सूचना दे दी.”
पुलिस ने बूडराओ की कहानी पर विश्वास नहीं किया लेकिन एक महीने बाद एक दूसरे शख़्स ने पुलिस को इसी योजना के बारे में जानकारी दी. इस बार एक सिख हरमैल सिंह गरेवाल ने वैंकुवर पुलिस को बताया कि उसके कुछ साथी एक व्यक्ति गैरी बूडराओ के ज़रिए भारतीय विमान को उड़ाने की योजना बना रहे हैं. वास्तव में गरेवाल ने दो विमानों और दो बमों की बात कही थी जो बाद में सही साबित हुई.
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कई सुरागों की अनदेखी
वास्तव में एयर इंडिया विमान पर बम विस्फोट से तीन सप्ताह पहले ही एयर इंडिया और रॉयल कनाडा माउंटेड पुलिस को बता दिया गया था कि उन्हें सामान में छुपा कर लाए गए टाइम बम की निगरानी करनी है.
लेकिन इसके बावजूद बिना जांच किए हुए एक सेमसोनाइट सूटकेस को विमान पर चढ़ने दिया गया. जांच आयोग के प्रमुख जस्टिस मेजर ने टिप्पणी की, “ये समझ में न आने वाली बात है कि सुरक्षा एजेंसियों ने इतने सारे सुराग मिल जाने के बाद भी उनकी जांच करने की ज़रूरत नहीं समझी गई.”
4 जून, 1985 को जब परमार ये देखने के लिए वैंकुवर आईलैंड गया कि इंदरजीत रेयात किस तरह से बम बना रहा है तो दो सीएसआईएस अधिकारियों ने उसका पीछा किया. टेरी मेलेस्की लिखते हैं, “उन लोगों ने जंगल में जाकर एक विस्फोट किया लेकिन सीएसआईएस अधिकारियों ने इसकी कोई खबर विभाग को नहीं दी.
उनको बताया गया था कि उनका काम सिर्फ़ परमार की निगरानी करना है, उसके किसी काम में हस्तक्षेप करना नहीं, तो उन्होंने यही किया. उन्होंने कनाडियन पुलिस से कभी नहीं कहा कि वो परमार को रोककर उसकी तलाशी लें और पूछें कि उसके इरादे क्या हैं. सबसे बड़े संदिग्ध ने जंगल में विस्फोट किया लेकिन सुरक्षाबलों के सिर पर जूं नहीं रेंगी.”
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सिखों को एयर इंडिया से सफ़र न करने की सलाह
इस प्रकरण ने ये बात सामने ला दी कि सुरक्षा एजेंसियों के बीच किसी तरह का कोई समन्वय नहीं था.
जांच आयोग के प्रमुख जस्टिस जॉन मेजर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “अगर कनाडियन पुलिस को पता होता कि सीएसआईएस को क्या पता है और अगर सीएसआईएस को पता होता कि कनाडियन पुलिस क्या जानती है तो इस बात की बहुत संभावना होती, बल्कि ये निश्चित हो जाता कि एयर इंडिया के विमान को गिराने की योजना को नाकाम कर दिया जाता.”
विमान गिरने से दो सप्ताह पहले परमार और अजायब सिंह बागड़ी साथ-साथ टोरंटो गए थे और उन्होंने हवाईअड्डे के पास मॉल्टन गुरुद्वारे में प्रवचन देते हुए कहा था यहां मौजूद लोग एयर इंडिया से सफ़र न करें, क्योंकि ऐसा करना सुरक्षित नहीं रहेगा.
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बाद में परकाश बेदी ने एयर इंडिया जांच आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा था, “जब मैं चेक प्वाइंट से वापस हुआ तो मैंने देखा कि ब्रिटिश एयरवेज़ की फ़्लाइट में अधिकतर यात्री सिख थे जबकि एयर इंडिया की फ़्लाइट की लाइन में बहुत कम सिख थे. मैंने अपने दोस्त से भी पूछा कि ब्रिटिश एयरवेज़ की फ़्लाइट से इतने सिख क्यों यात्रा कर रहे हैं तो उसने जवाब दिया कि सिख एयर इंडिया का बॉयकॉट कर रहे हैं.”
12 जून को वैंकुवर नगर पुलिस ने सिख चरमपंथियों की एक बैठक की जासूसी की जहां इंटरनेशनल सिख यूथ फ़ेडेरेशन के मनमोहन सिंह ने परमार के एक समर्थक पुशपिंदर सिंह पर आरोप लगाया कि वो उतने लोगों को नहीं मरवा रहे हैं जितने मरवाए जाने चाहिए.
कान्सटेबिल गैरी क्लार्क मारलो ने एयर इंडिया मुक़दमे मे पेश किए अपने हलफ़नामे में कहा, “मनमोहन सिंह ने पुशपिंदर सिंह की तरफ़ उंगली उठाते हुए शिकायत की कि कोई भी भारतीय राजदूत अब तक मारा नहीं गया है. आप कर क्या रहे हैं? कुछ नहीं. इस पर पुशपिंदर सिंह ने जवाब दिया, आप देखेंगे. दो सप्ताह के अंदर कुछ न कुछ किया जाएगा.”
इसके 11 दिनों के भीतर भारतीय विमान में विस्फोट हो गया.
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चेक-इन काउंटर पर बहस
जब एक संदिग्ध एम सिंह वैंकुवर में सीपी एयर के चेक-इन काउंटर पर पहुंचे तो काउंटर पर मौजूद महिला जेनी एडम्स ने उससे कहा कि टोरंटो से एयर इंडिया से उनकी बुकिंग कन्फ़र्म नहीं है इसलिए वो उनके सूटकेस को चेक-इन नहीं कर सकती, उन्हें टोरंटो में अपना सूटकेस लेकर एयर इंडिया की फ़्लाइट में फिर से चेक-इन करना होगा.
एम सिंह ने काउंटर पर मौजूद महिला से बहस करते हुए कहा कि उसने बिज़नेस क्लास के टिकट खरीदे हैं, उसे इस तरह की परेशानी से नहीं गुज़रना चाहिए.
जेनी एडम्स ने देखा कि सिंह के पीछे यात्रियों की लंबी कतार लगी हुई है, इसलिए वो सिंह की बात मान गईं और उन्होंने उनके सूटकेस को इंटरलाइन्ड कर दिया ताकि उसे टोरंटों में दोबारा चेक-इन करने की ज़रूरत न पड़े.
अगर एयर इंडिया ने इसकी जांच की होती कि सीपी एयर से आने वाले सूटकेस का यात्री भी उसके साथ आया है या नहीं या सीपी एयर को ये भनक मिल जाती कि उसके विमान पर सामान चेक-इन कराने वाला व्यक्ति विमान पर चढ़ा ही नहीं है तो इतिहास कुछ दूसरा ही होता.