भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अपने सबसे भारी रॉकेट एलवीएम 3 के कामयाब कॉमर्शियल लॉन्च से इतिहास रच दिया है। आधी रात को रॉकेट वनवेब के 36 सैटलाइट को लेकर उड़ा और उन्हें धरती की निचली कक्षा में सफलता से स्थापित किया।
नई दिल्ली : आधी रात को जब लोग सो रहे थे तब इसरो एक नया इतिहास रच रहा था। भारत का सबसे भारी रॉकेट जियोसिन्क्रोनस सैटलाइट लॉन्च वीइकल-मार्क3 ( GSLV-Mk3) जिसे अब LVM3 (Launch Vehicle Mark 3) नाम से भी जाना जाता है, कॉमर्शियल मार्केट में डेब्यू करने जा रहा था। अपने पहले कॉमर्शियल मिशन पर इसे वनवेब के 36 उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करना था, जिसमें वह कामयाब हुआ।
बढ़ी हुई थीं धड़कनें
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर में आधी रात को इसरो के वैज्ञानिकों की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। पहली बार भारत का सबसे भारी रॉकेट कॉमर्शियल मिशन के लिए उड़ान भरने वाला था। पीएसएलवी तो कॉमर्शियल मिशन को सफलता से अंजाम दे चुका है लेकिन जीएसएलवी के लिए ये इम्तिहान की घड़ी थी। घड़ी की सूइयों में जैसे ही आधी रात को 12 बजकर 7 मिनट का वक्त हुआ, GSLV Mk3 अपनी ऐतिहासिक उड़ान पर निकल गया। 5,796 किलोग्राम पेलोड के साथ। भारत में अबतक इतने वजनी पेलोड के साथ किसी रॉकेट ने उड़ान नहीं भरी थी। लिफ्ट ऑफ के करीब 20 मिनट बाद ही 601 किलोमीटर की ऊंचाई पर धरती की निचली कक्षा में सभी 36 सैटलाइट सफलता से स्थापित हो गए। इसके साथ ही इसरो ने कॉमर्शियल स्पेस सेक्टर में एक नया अध्याय लिख दिया। उसका सबसे वजनी रॉकेट अपने पहले कॉमर्शियल मिशन में कामयाब हो चुका था।
हमने पहले ही दिवाली का जश्न शुरू कर दिया है…जब चहक उठे इसरो चीफ
सैटलाइट जब रॉकेट से अलग हुए तो उन्हें श्रीहरिकोटा से देखा जा सकता था। जैसे ही 16 रॉकेट के पहले 4 बैच रॉकेट से अलग हुए, इसरो चीफ एस. सोमनाथ खुशी से चहक उठे। वह बोल उठे, ‘हमने दिवाली का जश्न पहले ही शुरू कर दिया है। अब रॉकेट उसी रास्ते पर है, जैसा हम चाहते थे।’
अगले साल जनवरी में वनवेब के और 36 सैटलाइट लॉन्च करने की योजना
इसरो चेयरमैन सोमनाथ ने आगे कहा, ’36 में से 16 सैटलाइट उन कक्षाओं में स्थापित हो चुके हैं, जहां हम उन्हें डालना चाहते थे…बाकी के 20 सैटलाइट भी अलग होंगे लेकिन हम यहां से उन्हें देख तो नहीं पाएंगे, हां डेटा जरूर मिलेगा। यह एक ऐतिहासिक लॉन्च है क्योंकि LVM3 का ये दूसरा ऑपरेशनल मिशन और पहला कॉमर्शियल लॉन्च है।…हम एवीएम3 के अगले लॉन्च में भी 36 सैटलाइट भेजेंगे।’ दरअसल, वनवेब के 36 उपग्रहों के एक और सेट को जनवरी 2023 में कक्षा में स्थापित करने की योजना है।
ब्रिटेन स्थित प्राइवेट सैटलाइट कम्यूनिकेशन है वनवेब
वनवेब ब्रिटेन स्थित एक निजी उपग्रह संचार कंपनी है, जिसमें भारत की भारती एंटरप्राइजेज एक प्रमुख निवेशक और शेयरधारक है। वहीं, एलवीएम 3 एम2 रॉकेट 43.5 मीटर लंबा और 644 टन वजनी है। यह 8 हजार किलो वजन ले जाने में सक्षम है। इसरो के अनुसार, मिशन में वनवेब के 5,796 किलोग्राम वजन के 36 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में जाने वाला यह पहला भारतीय रॉकेट बन गया है।
पीएसएलवी जैसी साख हासिल करेगा LVM3
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) इससे पहले 345 विदेशी सैटलाइट को लॉन्च कर चुका था। इन सभी सैटलाइट को पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल यानी PSLV से अंतरिक्ष में भेजा गया। इस रॉकेट की विश्वसनीयता और किफायती होने की वजह से दुनियाभर में अपनी एक अलग ही साख है। यहां तक कि इसरो के ज्यादातर मिशन में पीएसएलवी का ही इस्तेमाल होता है।
GSLV-Mk3 की शुरुआती कामयाबियां
Mk3 का रिकॉर्ड बहुत ही शानदार है। इसके अबतक के सभी 5 मिशन पूरी तरह सफल रहे हैं। जीएसएलवी के शुरुआती वर्जन के साथ ऐसा नहीं था।
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-इसका पहला मिशन दिसंबर 2014 में क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फीरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट था। लेकिन 22 जुलाई 2019 को जब इसने चंद्रयान-2 को लॉन्च किया तब इसके ऑपरेशनल होने की औपचारिक घोषणा हुई।
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-बीच में जून 2017 और नवंबर 2018 में इसे डिमॉन्स्ट्रेशन मिशन में इस्तेमाल किया गया जिसने जीसैट-19 और जीसैट-29 को लॉन्च किया।
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-23 अक्टूबर के मिशन के कामयाब होने से अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की धमक और पुख्ता हुई है। इससे लोअर अर्थ ऑर्बिट में ज्यादा वजनी पेलोड्स को लॉन्च करने की भारत की काबिलियत दिखी है। इससे इसरो अपने अंतरिक्ष पीएसयू न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के जरिए कॉमर्शियल कस्टमरों को और ज्यादा आकर्षित कर सकेगा।
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-इसके अलावा यह हायर ऑर्बिट्स में भी लॉन्च की संभावनाओं का द्वार खोलेगा।
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-एक साथ कई रिमोट-सेंसिंग सैटलाइट्स को लॉन्च करने का रणनीतिक फायदा भी होगा।