अक्टूबर 1962 को भारत और चीन के बीच जंग (India China War) का आगाज हुआ था। दोनों ही देशों के बीच वह पहली जंग थी और इसके बाद से ही रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। चीन और भारत के बीच इस जंग से पहले कई बार तनाव रहा था। सन् 1959 में जब दोनों देशों के बीच बॉर्डर पर तनाव जारी था। इस समय रूस ने भारत का पक्ष लिया और चीन को फटकार लगाई थी।
बीजिंग: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज देश के सबसे ज्यादा ताकतवर नेता बन गए हैं। उन्होंने चीन के संस्थापक माओ त्से तुंग को भी पीछे छोड़ दिया है। हैरानी की बात है कि आज चीन और भारत के बीच बॉर्डर पर तनाव जारी है। यही स्थिति सन् 1959 में भी थी जब माओ चीन के शासक थे। उस समय रूस ने भारत का पक्ष लिया था और माओ को फटकार लगाई थी। रूस उस समय सोवियत संघ का हिस्सा था और इसके नेता निकिता ख्रुश्चेव थे। निकिता ने बॉर्डर पर जारी तनाव के लिए तो माओ को जिम्मेदार ठहराया ही साथ ही उन्होंने तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के भारत पहुंचने के लिए भी उन्हें ही दोषी ठहराया था।
तिब्बत के लिए भी चीन जिम्मेदार
सितंबर 1959 में माओ और निकिता के बीच एक मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में माओ ने बॉर्डर पर जारी स्थिति का जिक्र किया। निकिता ने माओ को दो टूक कहा कि भारत के साथ जो तनाव है और तिब्बत में जो हालात हैं, उसके लिए चीन ही जिम्मेदार है। भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव को एक महीने से थोड़ा ज्यादा समय हो चुका था। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। इस टेंशन की वजह से ही सोवियत नेता को अपने चीन दौरे की समयावधि को कम करना पड़ गया था। इस वाकये का जिक्र विल्सन सेंटर के कोल्ड वॉर इंटरनेशनल हिस्ट्री प्रोजेक्ट में किया गया है।
नेहरु आए मुसीबत में
जैसे ही मीटिंग शुरू हुई निकिता ख्रुश्चेव ने माओ से कहा, ‘कई साल तक आपके भारत के साथ अच्छे संबंध थे। अचानक से एक ऐसी बुरी घटना हुई है जिसके बाद नेहरु एक मुश्किल स्थिति में आ गए हैं।’ उन्होंने माओ को फटकार लगाई और यही नहीं रुके। निकिता ने आगे कहा, ‘अगर आप मुझे मंजूरी दें तो मैं आपको बताता हूं कि एक मेहमान को क्या नहीं कहना चाहिए। तिब्बत में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें आपकी ही गलती है। आपने तिब्बत पर शासन किया आपकी इंटेलीजेंस एजेंसियों को वहां होना चाहिए था। साथ ही आपको यह भी पता होना चाहिए था कि दलाई लामा की मंशा और उनकी योजनाएं क्या हैं।’
माओ ने किया बचाव
माओ, निकिता के इस तरह भड़कने पर हक्का-बक्का थे। उन्होंने जवाब दिया, ‘नेहरु भी यही कह रहे हैं तिब्बत में जो कुछ भी हो रहा है, वह हमारी वजह से हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने भारत के साथ जारी संघर्ष पर सोवियत संघ में तासघोषणा पत्र भी पब्लिश कर दिया है।’ माओ का इशारा सोवियत न्यूज एजेंसी तास में आई उस रिपोर्ट की तरफ था, जिसमें भारत और चीन से अपील की गई थी कि वह किसी समझौते पर पहुंचे। निकिता ख्रुश्चेव ने माओ को जवाब दिया कि वह इस बात से बहुत नाराज हैं कि चीन ने सोवियत संघ को ‘समय-सेवक’ कहा है।
माओ को पड़ी डांट
निकिता ने माओ को फटकार लगाई। उन्होंने कहा, ‘आप अपने आरोपों को वापस लीजिए नहीं तो हमारे देश के बीच संबंध खराब हो जाएंगे। हम दोस्त हैं और सच बोलते हैं। हम किसी के सेवक नहीं हैं।’ इस दौरान वहां पर एक और चीनी नेता चेन यी भी मौजूद थे। उनकी तरफ देखते हुए निकिता ने कहा, ‘अगर आप हमें सेवक समझते हैं तो फिर अपनी दोस्ती की पेशकश मत कीजिए। मुझे यह हरगिज स्वीकार नहीं है।’ इसी घटना के बाद चीन और सोवियत संघ के रिश्ते बिगड़ गए और चीन, अमेरिका के साथ करीबियां बढ़ाने लगा था।
क्या हुआ था 1959 में
अगस्त 1959 में पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) ने एक भारतीय को लोंगजू में बंदी बना लिया था। लोंगजू, अरुणाचल प्रदेश में आता है और मैकमोहन लाइन पर स्थित एक छोटा सा गांव है। इस घटना से पहले तक यहां पर असम राइफल्स की एक पोस्ट होती थी। चीनी सेना ने यहां पर हमला किया और भारतीय सैनिकों को लौट जाने को कहा। वार्ता के बाद दोनों पक्ष इस पोस्ट को खाली छोड़ने पर राजी हो गए थे। 1962 की जंग के बाद चीनी सेना ने इस पर कब्जा कर लिया था। इसके दो महीने बाद ही अक्साई विन में कोंग्का पास पर चीन और भारतीय सेना की झड़प हुई थी जिसमें नौ भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।