केके के लिए संगीतकार ने जब बदल दिए थे गाने के बोल

केके

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हम रहें या ना रहें कल कल…याद आयेंगे ये पल..पल ये हैं प्यार के पल ..

बात दोस्ती की हो या प्यार की, ज़िंदगी के फ़लसफ़े को समेटे ये गाने एक समय जैसे एंथम बन गए थे. मसलन ये गाना .

यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है…

1999 में आई एल्बम ‘पल’ को गाने वाले इस सिंगर का नाम था केके. इस आवाज़ का मालिक कृष्णकुमार कुन्नथ यानी केके यूँ तो इससे पहले हज़ारों जिंगल गा चुके थे लेकिन ‘याद आयेंगे ये पल’ वाले गाने से उन्होंने लोगों के दिलों में जगह बनाई. और अपनी रूहानी आवाज़ को वो एक अलग मकाम पर ले गए जब बिरह को उन्होंने अपनी गायकी में ढाला और गाया -‘तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही’..

और कुछ इस तरह केके फ़िल्म संगीत की दुनिया में आए और छाए. कभी शाहरुख़ की रूमानियत बनकर (आँखों में तेरी अजब सी गज़ब सी अदाएँ हैं), कभी प्यार में सजदा करते रणवीर की आवाज़ बनकर (सजदे में यूँ ही झुकता हूँ , तुम पे आके रुकता हूँ) तो कभी प्यार का अल्हड़पन को आवाज़ दी ( दस बहाने करके ले गई दिल) तो कभी दिल की तड़प बनकर (-‘तड़प तड़प के).

अपने अंदर एक गायक को समेटे 53 साल के केके और भी बहुत कुछ थे – सिंगर, संगीतकार, फूडी, नेचर लवर, रोडी, वांडरर.. अपनी पहचान कुछ ऐसे बताते थे केके. दिल्ली में पले बढ़े केके बचपन से ही संगीत में दिलचस्पी रखते थे और गाते भी थे. संगीत की शिक्षा तो नहीं ली पर सुर-ताल कमाल का था.

महज़ 53 साल की उम्र में कोलकाता में अचानक उनका निधन हो गया है. वो कोलकाता में एक कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने गए थे. वो कोलकाता के एक कॉलेज के समारोह में शिरकत करने यहां गए थे. कार्यक्रम के दौरान ही उन्होंने तबीयत ख़राब होने की बात कही थी. कार्यक्रम से होटल लौटते ही उनको एक निजी अस्पताल ले जाया गया. वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है.

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गायक बनने के बारे में आपने कब और कैसे सोचा?

बचपन से ही मुझे संगीत का शौक़ था, पुराने कैसेट प्लेयर में ख़ूब गाने सुना करता था. कॉलेज में दोस्तों के साथ मिलकर परफ़ॉर्म करता था. लेकिन जब शादी होने वाली थी तो किसी दोस्त ने मार्केटिंग में जॉब लगवा दी. पर काम करते हुए मुझे लगने लगा कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ. बस मुंबई चला गया. मैंने विज्ञापनों में जिंग्लस का काम शुरू किया और हज़ारों जिंग्ल्स गाए.

बॉलीवुड का सफ़र कैसे शुरू हुआ?

विज्ञापनों में काम करते-करते मुझे फ़िल्म माचिस में गाने का मौक़ा मिला- छोड़ आए हम वो गलियाँ. कहने को तो दो ही लाइनें थीं पर विशाल भारद्वाज की फ़िल्म थी. फिर एआर रहमान ने मौक़ा दिया फ़िल्म सपने में. लेकिन टर्निंग प्वाइंट आया 1999 में.

फ़िल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के लिए इस्माइल दरबार ने मुझे ‘तड़प तड़प के इस दिल के लिए’ गाना गंवाया. आमतौर पर इस तरह के गाने के लिए संगीतकार किसी सीनियर गायक को ही लेते हैं.

लेकिन इस्माइल ने मुझ पर भरोसा किया और मैंने भी दिल से गा दिया. वो गाना काफ़ी हिट हुआ. इसी साल मेरी एलबम भी रिलीज़ हुई. इसके गाने ‘जैसे याद आएँगे वो पल’ लोकप्रिय हो गए. आज भी कॉलेज वग़ैरह में जाता हूँ तो ये गाने बजते हैं.

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केके

गाने के बोल पर आजकल काफ़ी बहस होती है. कभी ऐसा हुआ कि आपने बोल की वजह से गाने से मना कर दिया हो?

एक बार एक नए संगीतकार ने मुझसे गाना गंवाया. अचानक मुझे लगा कि ये कैसे बोल हैं. मैं गाना छोड़ कर चला गया. फिर बाद में फ़ोन आया कि गाने के बोल बदल दिए हैं आप आ जाइए. संगीतकार की पहली फ़िल्म थी और प्रोड्यूसर बड़ा था, तो संगीतकार भी न नहीं कह पा रहा था. अब शायद लोगों को पता है कि मैं ऐसे गाने नहीं गाता.

आपके लिए अच्छे सिंगर की परिभाषा क्या है?

मेरे हिसाब से अच्छा सिंगर वही है जो किसी संगीतकार के गाने को अपना बना के गा सके. हो सकता है गाना ख़ुशनुमा हो और आपका मूड कुछ और हो.. इसलिए मैं एक दिन में एक ही गाने की रिकॉर्डिंग रखता हूँ. जब तक गायक ख़ुद गाने को महसूस नहीं कर सकता तब तक श्रोता को कैसे अच्छा लगेगा.