जब अफ़ीम के नशे ने पागल हो गए थे दो देश, छिड़ गई थी जंग, टेकने पड़े थे चीन को घुटने

ये आसानी से माना जा सकता है कि दो नशाखोर आपस में नशे के लिए लड़ सकते हैं. नशे की लत उन पर इस तरह से हावी हो जाती है कि वे इसके लिए लड़ मरने को तैयार हो जाते हैं लेकिन अगर हम कहें कि इसी नशे ने एक बार दो शक्तिशाली देशों के बीच भीषण युद्ध करवा दिया था तो आप क्या आप मानेंगे ? जी हां अफीम जिसके इस्तेमाल पर कई देशों में प्रतिबंध लगा है और जिसे अपने पास रखना गैर कानूनी जुर्म है उसी अफीम के लिए ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के बीच युद्ध ठन गया था . 

प्रथम अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता है 

प्रथम अफीम युद्ध SCMP

यह युद्ध अफीम के लिए लड़ा गया था इसीलिए इसे प्रथम अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध की शुरुआत कुछ इस तरह से हुई. चीन में अफीम का कारोबार एक फायदे का धंधा था लेकिन ये अवैध भी था. स्कॉटलैंड के दो लोग इस कारोबार से जुड़े हुए थे और युद्ध की शुरुआत में इन दोनों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इनमें एक था विलियम जार्डाइन, जो पेशे से एक डॉक्टर होने के साथ साथ कारोबारी भी था. 

चीन के एक वेश्यालय में विलियम की मुलाकात जेम्स मैथेसन नाम के एक और कारोबारी से हुई और पहली ही मुलाकात में दोनों पार्टनर बन गए. 1832 में दोनों ने मिलकर जार्डाइन, मैथेसन एंड कंपनी बनाई जिसका मुख्यालय दक्षिणी चीन का कैंटोन शहर था. कैंटोन को अब चीन के ग्वांझो के नाम से जाना जाता है.

चीन के केवल इसी इलाके में विदेशियों को कारोबार की इजाजत थी. वे चाय के बदले अफीम का कारोबार करते थे. ब्रिटेन में चाय के लिए गज़ब की दीवानगी थी. 18वीं सदी के आखिर तक ब्रिटेन कैंटोन से 60 लाख पाउंड की चाय हर साल मंगाने लगा था.

लेकिन जल्द ही ब्रिटेन को इस कारोबार में दिक्कत पेश आने लगी क्योंकि चीन की शर्त ये थी कि वो चाय की कीमत के तौर पर केवल चांदी लेगा. ब्रिटेन ने चाय की कीमत के तौर पर नक्काशीदार बर्तन, वैज्ञानिक उपकरण और ऊनी कपड़े जैसी चीज़ें देने की पेशकश की. लेकिन चीन ने इसे लेने से इनकार कर दिया.

पचास सालों के दौर में ब्रिटेन ने चीन को 270 लाख पाउंड की कीमत के बराबर चांदी का भुगतान किया और इसके बदले उन्हें केवल 90 लाख पाउंड के सामान उन्हें बेच सका. नतीजन चीन से आने वाली चाय धीरे-धीरे ब्रिटेन के लिए महंगी होने लगी. इस तरह चीन से पैसे बनाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

चीन ने शुरू कर दी कार्रवाई 

प्रथम अफीम युद्ध SCMP

इसका सीधा फायदा हुआ भारत के ब्रिटेन कारोबारियों को. बंगाल के इलाकों में अफीम की पैदावार बड़े पैमाने पर होती थी. हालांकि चीन में अफीम पर प्रतिबंध था लेकिन इसके बावजूद चीनी चिकित्सा पद्धति में अफीम का इस्तेमाल हजारों सालों से होता आ रहा था और इसी के नाम पर ब्रिटेन के कारोबारियों द्वारा भारत अफीम चीन भेजी जाने लगी. लेकिन चीन के लोगों ने इसका इस्तेमाल नशे के तौर पर करना शुरू कर दिया. नतीजन चीन का एक बड़ा हिस्सा इस अफीम का आदि हो गया. वे इस तरह से इसके गिरफ्त में आ गए कि अब इससे निकलना लगभग नामुमकिन था.  इसका सामाजिक दुष्प्रभाव भी सामने आने लगा. अफ़ीम की लत के शिकार हुए लोग इसके लिए अपनी कीमती चीज़ें बेचने लगे. चीनियों की इस लत का सबसे ज्यादा फायदा हुआ ब्रिटेन को, उसने इनका शोषण करना शुरू कर दिया.

चीन का राजकोष ख़ाली होने लगा. इससे छिंग राजवंश की सरकार की आंखें खुलीं और 1839 में चीन के सम्राट डाओग्वांग ने नशीले पदार्थों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए ‘लिन चे-श्यू’ को अफीम के व्यापार पर पाबंदी लगाने के लिए विशेष दूत नियुक्त कर दिया. अगले साल मार्च में लिन चे-श्यू ने दक्षिण चीन के क्वांगचो शहर जाकर समुद्री रक्षा-व्यवस्था कड़ी की और अफीम के व्यापारियों की गिरफ्तारी कराई. 

 

ब्रिटेन ने दिया जवाब 

3 जून से 25 जून के बीच जब्त किए गए 11 लाख, 80 हज़ार किलो अफीम को ‘हुमन’ समुद्र तट पर सार्वजनिक रूप से नष्ट कर दिया गया. इसके साथ ही कैंटोन के 13 फैक्ट्रीज़ इलाके में स्थित गोदामों पर भी रेड डाली गई और चीनी सैनिकों ने इसे सील कर दिया. विदेशी कारोबारियों को सरेंडर करने के लिए चीनियों ने मजबूर कर दिया. चीन की इस कार्रवाई में 20 लाख पाउंड की कीमत के सामान ज़ब्त किए गए. इसमें अफ़ीम की 20 हजार पेटियां और 40 हज़ार ओपियम पाइप्स भी थे.

इसके जवाब में ब्रिटेन ने अमरीका और फ्रांस के समर्थन पर व्यपारियों की रक्षा के बहाने ‘कप ऑफ़ गुट होप ले’ नामक नौ समुद्री पोतों का एक बेड़ा चीन की ओर रवाना कर दिया. इसके साथ ही ब्रिटेन ने 16 युद्धपोत और 27 जहाज भी चीन के पर्ल रीवर डेल्टा की तरफ रवाना कर दिए. इन जहाजों पर 4000 लोग सवार थे. इस बेड़े में लोहे से बना युद्धपोत नेमेसिस भी था जिसपर दो मील तक दागे जा सकने वाले रॉकेट लॉन्चर तैनात थे. इस प्रकार अफीम युद्ध की शुरूआत हुई.

हालांकि चीनी इस हमले के लिए खुद को तैयार समझ रहे थे किन्तु ये उनका भ्रम मात्र था. उनमें इतनी काबिलियत नहीं थी. उनके तोप ब्रिटेन के सामने चार से पांच घंटे तक ही टिक सकते थे. अगले दो सालों तक ब्रिटिश नौसेना चीन के तटीय इलाकों से होती हुई शंघाई की तरफ बढ़ने लगी. अधिकांश चीनी सैनिक अफ़ीम की लत का शिकार थे और उन्हें हर जगह हार का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में 20 से 25 हज़ार चीनी हताहत हुए जबकि ब्रिटेन ने 69 सैनिक गंवाएं. इस युद्ध के बाद चीन पूरी तरह से हिल गया था.

 

आखिरकार करनी पड़ी संधि 

नानकिंग संधि Scotsman

जुलाई में ब्रिटिश नौसेना ने उत्तर की ओर बढते हुए पेइचिंग के नजदीक ताकू बंदरगाह पर कब्जा करके छिंग राजवंश की सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की. इस पर सम्राट ने लिन च-श्यु को पद से बर्खास्त कर दिया और ब्रिटेन के साथ शांति समझौता संपन्न करने के लिए अपना दूसरा अधिकारी क्वांगचो शहर भेजा. 

ब्रिटेन ने अक्टूबर में पूर्वी चीन के तिन-हाई और निनपो आदि नगरों पर कब्ज़ा कर लिया और 1842 की जुलाई में उसकी सेना चच्यांग नगर पर अधिकार कर यांगत्सी नदी के किनारे चीन के भीतरी क्षेत्र की ओर बढ़ने लगी. 29 अगस्त को छिंग राजवंश की सरकार ने ब्रिटेन के साथ ‘नानकिंग संधि’ पर हस्ताक्षर किए और युद्ध की समाप्ति कर दी. तब से चीन एक अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती देश बन गया. इस संधि को दुनिया ‘अनइक्वल ट्रीटी’ या ‘गैरबराबरी की संधि’ के नाम से जानती है. 

अंग्रेज़ों के साथ चीन के इस समझौते के अनुसार चीन को पांच बंदरगाह विदेश व्यापार के लिए खोलने पड़े और अफीम के कारोबार से हुए नुकसान और युद्ध के हर्जाने के तौर पर उसने ब्रिटेन को दो करोड़ 10 लाख सिल्वर डॉलर अदा किए. ब्रिटेन को इस संधि से हांगकांग पर कब्जा मिला जिसका इस्तेमाल चीन में अफीम का कारोबार बढ़ाने के लिए किया जाना था.