“मेरा 15-16 साल का भतीजा मुदस्सिर प्रोटेस्ट में गया था. उसके सिर में गोली लगी है और वो अस्पताल में वेंटिलेटर पर है. हमें नहीं पता कि वो ज़िंदा है या नहीं. डॉक्टरों का कहना है कि वो वेंटिलेटर पर है. लेकिन उसके शरीर में कोई हरकत नहीं है.”
झारखंड की राजधानी रांची में रहने वाले शाहिद शुक्रवार देर रात अस्पताल से अपने भतीजे को देखकर लौटे हैं.
शाहिद कहते हैं, “मैंने वहां 13-14 घायल लोग देखे जिन्हें गोलियां लगी हैं. किसी के पेट में, किसी के सीने पर. कई की हालत नाज़ुक है. प्रशासन घायलों के बारे में पूरी जानकारी नहीं दे रहा है.”
भारत के कई दूसरे शहरों की तरह रांची में भी जुमे की नमाज़ के बाद पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त प्रदर्शन हुआ. इस दौरान भीड़ हिंसक हो गई और पुलिस और भीड़ के बीच झड़पें भी हुईं.
आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने गोली चलाई जिसमें कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. शहर में हालात नाज़ुक हैं, इंटरनेट सेवा बंद है और धारा 144 लगा दी गई है.
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भी जुमे की नमाज़ के बाद बड़ा प्रदर्शन हुआ. इस दौरान शहर के हावड़ा इलाक़े से हिंसक झड़पों की ख़बरें आईं. यहां बीजेपी के एक दफ़्तर को आग लगाने और थाने पर हमले की भी ख़बर आई.
एक टीवी बहस में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी से खड़ा हुआ विवाद अब बड़े तनाव में बदलता जा रहा है.
बीते शुक्रवार (3 जून) को कानपुर में व्यापक प्रदर्शन के बाद हिंसा हुई थी जिसमें अभी तक प्रशासन ने 50 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया है.
अब इस शुक्रवार (10 जून) को भी देश के कई हिस्सों में जुमे की नमाज़ के बाद मुसलमान सड़कों पर उतर आए और नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की मांग की.
इसी बीच मध्य पूर्व के देशों, ख़ासकर क़तर, सऊदी अरब, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात की तरफ़ से आई तीख़ी प्रतिक्रिया के बाद भाजपा ने नूपुर शर्मा को सस्पेंड कर दिया है और नवीन जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर दिया.
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देश के कई हिस्सों में नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की गई है. दिल्ली पुलिस ने भी नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया है लेकिन उन्हें अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है.
लेकिन पैग़ंबर मोहम्मद पर टिप्पणी से आक्रोशित मुसलमान समुदाय का ग़ुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है. आक्रोशित मुसलमान नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की मांग कर रहे हैं.
शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर बड़ा प्रदर्शन हुआ और देश के कई शहरों में पथराव, पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हुआ. पश्चिम बंगाल के हावड़ा, महाराष्ट्र के नवी मुंबई और सोलापुर, उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में लोग सड़कों पर आ गए.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए लाठीचार्ज भी किया. वहीं प्रयागराज में प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाज़ी हुई. यहां रेपिड एक्शन फ़ोर्स ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले चलाए. सहारनपुर में भी पुलिस और प्रदर्शनकारी भिड़ गए.
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उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, रात 9.45 बजे तक शुक्रवार को हुई घटनाओं में लिप्त कुल 136 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. ताज़ा जानकारी के मुताबिक़ यूपी में सुबह तक 227 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस का कहना है कि आगे और भी गिरफ़्तारियां की जा सकती हैं और लोगों पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है.
उधर दक्षिण भारत में हैदराबाद की मक्का मस्जिद के बाहर भी प्रदर्शनकारी जुटे, जिसके बाद शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी पुलिस बल तैनात करने पड़े.
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कैसे शुरू हुए प्रदर्शन
बीते कई दिनों से सोशल मीडिया पर शुक्रवार दस जून को ‘भारत बंद’ करने के मैसेज शेयर किए जा रहे थे.
हालांकि इसके पीछे कोई संगठन या नेता नहीं था. ये मैसेज देशभर में शेयर किए गए और मुसलमानों तक पहुंचे.
संभावित प्रदर्शन के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश पुलिस अलर्ट पर थी और गुरुवार को पुलिस अधिकारियों ने स्थिति की समीक्षा की थी और कई शहरों में पुलिस बल तैनात किए गए थे.
शुक्रवार को प्रदर्शन को लेकर असमंजस की स्थिति थी क्योंकि सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे मैसेज के अलावा प्रोटेस्ट का कोई स्पष्ट कॉल नहीं था.
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धर्मगुरुओं ने की थी प्रशासन से मुलाक़ात
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
ड्रामा क्वीन
समाप्त
उत्तर प्रदेश के कई शहरों में स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने धर्मगुरुओं से मुलाक़ात की थी जिन्होंने शुक्रवार को शांति बनाए रखने का भरोसा दिया था.
उत्तर प्रदेश के संभल में प्रशासन से मुलाक़ात करने वाले धर्मगुरु मुफ़्ती हाजी मोहम्मद मोइनउद्दीन अशरफ़ी कहते हैं, “मुसलमान पैग़ंबर मोहम्मद से बेइंतेहा मोहब्बत करते हैं. पैग़ंबर पर टिप्पणी से मुसलमान ग़ुस्से में हैं. स्थिति को भांपते हुए हमने प्रशासन से मुलाक़ात की थी और अपनी मांगे रखी थीं. संभल में भी मुसलमानों में ग़ुस्सा था लेकिन किसी तरह की कोई घटना नहीं हुई क्योंकि हमने लोगों को समझाया था.”
मुफ़्ती मोइनउद्दीन कहते हैं, “भारत का संविधान सभी धर्मों को बराबर का हक़ और सुरक्षा देता है. संविधान इस बात की ज़मानत भी देता है कि किसी भी धर्म का अपमान ना हो. हमारे पैग़ंबर को कोई तकलीफ़ पहुंचाता है तो हमारे दिलों को तकलीफ़ पहुंचती है. हम ये चाहते हैं कि सभी धर्मों का सम्मान हो. मुसलमानों को अगर तकलीफ़ पहुंची है तो उन्हें शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी बात रखने का हक़ है.”
मुफ़्ती मोइनउद्दीन कहते हैं, “जो लोग धार्मिक भावनाएं भड़काने का काम करते हैं अगर क़ानून उनके ख़िलाफ़ काम करेगा तो सभी का ग़ुस्सा अपने आप ही ठंडा हो जाएगा.”
- नूपुर शर्मा कौन हैं जिन्होंने पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की
सरकार पर भरोसा नहीं कर रहे हैं मुसलमान?
पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी से तनाव बढ़ने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने दो प्रवक्ताओं नुपुर शर्मा को सस्पेंड कर दिया है.
उन पर मुक़दमे भी दर्ज हुए हैं. बावजूद इसके मुसलमानों में आक्रोश बरक़रार है. इसकी वजह बताते हुए वरिष्ठ उर्दू पत्रकार मासूम मुरादाबादी कहते हैं, “कहीं ना कहीं सरकार में मुसलमानों का भरोसा कम हुआ है. अगर सरकार पहले ही विवादित बयान देने वालों पर कार्रवाई करती तो हालात यहां तक नहीं पहुंचते. अरब देशों से आवाज़ उठने के बाद भाजपा ने ज़रूर अपने प्रवक्ताओं से किनारा किया और उन्हें पार्टी से निकाला, लेकिन ये कार्रवाई भी मुस्लिम देशों से आवाज़ उठने के बाद हुई. भारतीय मुसलमानों के प्रोटेस्ट को कहीं ना कहीं नज़रअंदाज़ किया गया.”
मासूम मुरादाबादी कहते हैं, “ये बात जगज़ाहिर है कि मुसलमान दुनिया में चाहें जहां भी रहते हों, वो पैग़ंबर मोहम्मद से बेपनाह मुहब्बत करते हैं. दुनिया में जब-जब भी तौहीन-ए-रिसालत (पैग़ंबर का अपमान) के मामले हुए हैं, मुसलमानों ने प्रतिक्रिया दी है. फिर चाहें वो शार्ली एब्दो का मामला हुआ हो. लेकिन मेरा ये मानना है कि मुसलमानों को सड़क पर नहीं उतरना चाहिए, इससे कहीं ना कहीं उनका ही नुक़सान होता है.”
मासूम मुरादाबादी कहते हैं, “लेकिन यहां फ़िक्र की बात ये है कि ऐसा लग रहा है कि सरकार मुसलमानों की तकलीफ़ को नहीं समझ रही है. अगर ऐसा होता तो इस तरह की घटनाएं हमें देखने को नहीं मिलतीं. जो भी हो रहा है वो बहुत ग़लत है और तुरंत रुकना चाहिए. मुसलमान जिस तरह अपनी जान को ख़तरे में डाल रहे हैं, वो भी इस्लाम के अनुरूप नहीं है. मुसलमानों को अपने जज़्बात पर काबू रखना चाहिए. मुसलमानों को ये समझना चाहिए कि हालात क्या हैं और उनके लिए माहौल कैसा है.”
मासूम मुरादाबादी कहते हैं, “27 मई को डिबेट में पैग़ंबर पर टिप्पणी की गई थी. उसके बाद सरकार और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को जो करना चाहिए था वो उन्होंने नहीं किया. बल्कि मामले को रफ़ा-दफ़ा करने और लीपापोती करने की ही कोशिश हुई. इसी वजह से लोगों का ग़ुस्सा भड़कता जा रहा है. यदि एजेंसियां अपना काम सही से करें तो ये ग़ुस्सा अपने आप शांत हो जाएगा. सरकार को ये दिखाना होगा कि वह निष्पक्ष होकर क़ानून के दायरे में रहकर कार्रवाई कर रही है.”
ये प्रोटेस्ट नहीं शक्ति प्रदर्शन हैं- वीएचपी
वहीं विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल का मानना है कि ये प्रोटेस्ट नहीं हैं बल्कि शक्ति प्रदर्शन हैं.
बीबीसी से बात करते हुए बंसल ने कहा, “ये प्रोटेस्ट नहीं हो रहे हैं, ये शक्ति प्रदर्शन हैं, जो लोग बौखला जाते हैं, जो विदेशी कंधों पर बंदूक रखकर देश पर बमबारी को उतारू हैं, ये उनकी भड़ास और हताशा का ही प्रदर्शन है.”
जुमे की नमाज़ के बाद प्रदर्शनों पर सवाल उठाते हुए बंसल कहते हैं, “इस्लाम को शांति का धर्म कहा जाता है, मस्जिद ख़ुदा का घर है, फिर मस्जिद से निकलने वाली भीड़ हिंसक कैसे हो जाती है. सवाल ये है कि क्या इस्लाम पैग़ंबर मोहम्मद पर उस 31 सेकंड के वीडियो से इस्लाम आहत हो जाएगा?”
नुपुर शर्मा मामले में प्रशासन की कार्रवाई का बचाव करते हुए विनोद बंसल कहते हैं, “नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई हो रही है. प्रशासन अपना काम कर रहा है. भारत में क़ानून का शासन है. भारत ने तो मुंबई के हमलावर अजमल क़साब को भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया था और लंबी क़ानूनी कार्रवाई के बाद ही उन्हें सज़ा दी गई थी, फिर लोग ये क्यों चाहते हैं कि नूपुर शर्मा को एक ही दिन में फांसी पर चढ़ा दिया जाए. नूपुर शर्मा को भी अपने बचाव का मौका मिलना चाहिए?”
विनोद बंसल कहते हैं, “विश्व हिंदू परिषद ये मानती है कि न्याय सड़कों पर नहीं अदालत में होना चाहिए. लोग क़ानून व्यवस्था में भरोसा रखेंगे तो अपने आप हालात सुधर जाएंगे.”
इसी बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि मुस्लिम धर्मगुरुओं को टीवी पर बहस में शामिल नहीं होना चाहिए. पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान जारी कर इस्लामिक विद्वानों (उलेमा) और बुद्धिजीवियों से अपील की है कि वो टेलीविज़न पर आने वाले उन डिबेट में हिस्सा ना लें जिनका एकमात्र मकसद इस्लाम और मुसलमान का मज़ाक उड़ाना और अपमान करना है.
जारी किए गए बयान में लॉ बोर्ड ने कहा है कि माना जाता था कि इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर वे इस्लाम और मुसलमानों की सेवा कर सकते हैं, लेकिन इसके बजाय वे खुद इस्लाम और मुसलमानों के अपमान का कारण बन जाते हैं.
मुफ़्ती मोइनउद्दीन कहते हैं, “टीवी पर धार्मिक मुद्दों पर बहस बंद हो जाए तो इससे भी हालात सुधर सकते हैं और इस तरह के विवाद रुक सकते हैं.”